मेवाड़ की पारंपरिक लोकसंस्कृति गवरी इन दिनों पूरे जोश और उत्साह के साथ खेली जा रही है। गांव-गांव में गवरी का मंचन हो रहा है और लोग बड़ी संख्या में इसे देखने पहुँच रहे हैं। मंगलवार को माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की ओर से फतहसागर पाल देवाली छोर पर गवरी का भव्य आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में दर्शक उमड़ पड़े।
गवरी का शुभारंभ संभागीय आयुक्त सुश्री प्रज्ञा केवलरमानी और टीआरआई निदेशक ओ.पी. जैन के आतिथ्य में हुआ। संभागीय आयुक्त और टीआरआई निदेशक ने गवरी कलाकारों और गौरज्या माता का माल्यार्पण कर स्वागत किया। झाडोल पंचायत समिति के ढडावली गांव के कलाकारों ने गवरी का मंचन किया। निदेशक श्री जैन ने बताया कि गवरी केवल लोकनाट्य ही नहीं, बल्कि मेवाड़ की आत्मा और लोकजीवन का प्रतीक है। यह उत्सव हर वर्ष भव्य रूप से आयोजित किया जाता है। गवरी कलाकार महीनों तक साधना कर समाज के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ देते हैं। गवरी के मंचन से पूरा वातावरण गीतों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुनों से गुंजायमान हो उठा। कलाकारों के प्रदर्शन ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। तालियों की गड़गड़ाहट से प्रांगण गूंज उठा और कलाकारों का उत्साह दोगुना हो गया। कार्यक्रम का संचालन भगवानलाल कच्छावा और दिनेश कुमार उपाध्याय ने किया।
स्थानीय लोगों ने कहा कि गवरी मेवाड़ की संस्कृति और धार्मिक आस्था का अद्वितीय संगम है। यह केवल लोकनाट्य नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, आस्था और परंपरा का सजीव प्रतीक है। ग्रामीण हर वर्ष गवरी का बेसब्री से इंतजार करते हैं और पूरे मन से इसमें भागीदारी निभाते हैं। इस अवसर पर निदेशक सांख्यिकी सुधीर दवे, सहायक निदेशक बनवारीलाल बुम्बरिया, प्रशासनिक अधिकारी जुगल किशोर, पुस्तकालय अध्यक्ष मुकेश पारगी सहित जनप्रतिनिधि और गणमान्य लोग उपस्थित रहे।