नई दिल्ली। भारतीय रेल ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज करते हुए, आजादी के बाद पहली बार मिजोरम की राजधानी आइजोल को देश के रेल मानचित्र से जोड़ा है। बइरबी-सायरंग रेल परियोजना के पूरा होने से पूर्वोत्तर भारत की चौथी राजधानी को रेल संपर्क प्राप्त हुआ है। यह परियोजना न केवल भौगोलिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण मानी जाती है, बल्कि इंजीनियरिंग और निर्माण की दृष्टि से भी भारतीय रेल के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
पूर्वोत्तर में नई रेल क्रांति
अब तक पूर्वोत्तर क्षेत्र की तीन राजधानियाँ-गुवाहाटी (असम), ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश) और अगरतला (त्रिपुरा) सीधे रेल नेटवर्क से जुड़ी थीं। मई 2025 में सायरंग तक सफल ट्रायल रन के साथ आइजोल इस सूची में चौथी राजधानी बन गई। यह ऐतिहासिक कदम न केवल मिजोरम के लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करता है, बल्कि क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
परियोजना का स्वरूप और लागत
बइरबी-सायरंग रेल परियोजना की कुल लंबाई 51.38 किलोमीटर है। यह बइरबी से शुरू होकर आइजोल के निकट स्थित सायरंग तक जाती है। परियोजना को चार प्रमुख सेक्शनों में बांटा गया है, जिसमें बइरबी-हरतकी सेक्शन 16.72 किलोमीटर., हरतकी-कावनपुई सेक्शन 9.71 किलोमीटर, कावनपुई-मुअलखांग सेक्शन 12.11 किलोमीटर तथा मुअलखांग-सायरंग सेक्शन 12.84 किलोमीटर। पूरे प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत लगभग 8071 करोड़ रुपये से अधिक है। इस परियोजना के तहत चार नए स्टेशन हरतकी, कावनपुई, मुअलखांग और सायरंग का निर्माण किया गया है।
इंजीनियरिंग और निर्माण की चुनौतियाँ
मिजोरम का भौगोलिक स्वरूप कठिन और पहाड़ियों वाला है। यहाँ रेलवे ट्रैक बिछाने के लिए अनेक पुलों और सुरंगों की आवश्यकता थी। इस परियोजना में कुल 55 बड़े पुल और 87 छोटे पुल बनाए गए हैं। इसके अलावा 48 सुरंगों का निर्माण किया गया है, जिनकी कुल लंबाई 12.8 किलोमीटर से अधिक है। परियोजना का सबसे उल्लेखनीय इंजीनियरिंग चमत्कार है पुल संख्या 196 का पियर पी-4, जिसकी ऊँचाई 114 मीटर है। यह कुतुब मीनार से भी 42 मीटर ऊँचा है। इसके अतिरिक्त, यात्रियों और माल ढुलाई की सुगमता के लिए 5 रोड ओवरब्रिज और 6 रोड अंडरब्रिज का भी निर्माण किया गया है।
निर्माण कार्य की उपलब्धियाँ
रेलवे इंजीनियरों ने अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में इस परियोजना को पूरा किया। नरम मिट्टी, बरसात से भरे मौसम और दुर्गम पहाड़ियों पर काम करना बिल्कुल भी आसान नहीं था। इसके बावजूदए ऑटोमैटिक टनलिंग मेथड जैसी आधुनिक तकनीकों, सुरक्षा उपायों और सटीक निर्माण योजना की मदद से सुरंगों की ड्रिलिंगए पुलों की नींव डालने तथा ऊँचाई पर विशाल संरचनाएँ खड़ी करने जैसे जटिल कार्य सफलतापूर्वक पूरे किए गए, ताकि यात्रियों की रेल यात्रा न केवल तेज और आरामदायक हो, बल्कि सुरक्षित भी हो।
मिजोरम को मिलने वाले लाभ
बइरबी-सायरंग रेल परियोजना मिजोरम की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के लिए मील का पत्थर साबित होगी। कृषि और स्थानीय उद्योग के लिए नए बाजार मिजोरम के किसान, बुनकर और स्थानीय उद्योग अब अपने उत्पादों को आसानी से देश के अन्य हिस्सों तक पहुँचा पाएंगे। माल ढुलाई की दक्षता रेल मार्ग से माल परिवहन तेज और सस्ता होगा, जिससे व्यापार और उद्योग को बल मिलेगा। समय की बचत, सड़क मार्ग पर ज्यादा समय लेने वाली यात्रा अब ट्रेनों के जरिए कम समय में पूरी होगी। पर्यटन को बढ़ावा, मिजोरम की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर तक पहुँच आसान होगीए जिससे पर्यटन उद्योग को गति मिलेगी।
पूर्वोत्तर का भविष्य और रेल संपर्क
भारतीय रेल की यह परियोजना केवल मिजोरम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूर्वोत्तर भारत के लिए एक नई विकास गाथा लिखती है। बेहतर रेल संपर्क से इस क्षेत्र में निवेश की संभावनाएँ बढ़ेंगी और रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। यह परियोजना ‘‘कनेक्टिंग नॉर्थईस्ट टू- द नेशन’’ के संकल्प को मजबूत करती है।
बइरबी-सायरंग रेल परियोजना भारतीय रेल की इंजीनियरिंग दक्षता, दूरदर्शी योजना और विकास के प्रति प्रतिबद्धता का जीवंत उदाहरण है। कठिन पहाड़ियों और चुनौतीपूर्ण भौगोलिक परिस्थितियों को पार करते हुए यह परियोजना पूर्वोत्तर भारत की जीवनधारा को नई गति देती है। आइजोल का रेल मानचित्र से जुड़ना मिजोरम के साथ पूरे देश के लिए गर्व का विषय है।