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सीपी राधाकृष्णन भारत के नए उपराष्ट्रपति निर्वाचित 

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10 Sep 25
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सीपी राधाकृष्णन भारत के नए उपराष्ट्रपति निर्वाचित 

उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आ गए हैं। एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने विपक्ष के बी.क सुर्दशन रेड्डी को हराकर यह चुनाव जीत लिया है। सीपी राधाकृष्णन को 452 वोट मिले जबकि रेड्डी को 300 वोट ही मिल पाए। राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल पीसी मोदी ने नतीजों की घोषणा की। निवर्तमान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जुलाई 2025 में स्वास्थ्य कारणों से अपना पद त्याग दिया था इसलिए यह चुनाव कराने पड़े। संविधान के अनुच्छेद 67 (अ) के तहत उपराष्ट्रपति को पांच वर्ष के कार्यकाल से पूर्व भी त्यागपत्र देने की अनुमति है। धनखड़ का इस्तीफा देश की राजनीति में एक अप्रत्याशित स्थिति बनाकर आया था। इसके बाद उपराष्ट्रपति का पद रिक्त हुआ और नए चुनाव की घोषणा की गई। दक्षिणी भारत से ताल्लुक रखने वाले सीपी राधाकृष्णन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आरएसएस पृष्ठभूमि से है। वे बहुत विद्वान है। संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार उपराष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचन मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के निर्वाचित तथा नामित सदस्य मतदान करते हैं।

 

इस चुनाव में दो प्रमुख उम्मीदवार मैदान में थे 

एनडीए के उम्मीदवार सी. पी. राधाकृष्णन। उनका जीवन आरएसएस से जुड़ा रहा है तथा उन्हें गैर-विवादित और सौम्य छवि वाला नेता माना जाता है। दूसरी ओर इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार जस्टिस बी. सुधर्शन रेड्डी। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश।विपक्ष ने उन्हें संविधान, न्याय और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के प्रतीक के रूप में आगे बढ़ाया। यह चुनाव केवल दो व्यक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा नहीं था, बल्कि यह भारतीय राजनीति के दो ध्रुवों – सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और विपक्षी इंडिया ब्लॉक के बीच वैचारिक टकराव और शक्ति संतुलन का भी परिचायक था।

9 सितंबर 2025 को संसद भवन में मतदान संपन्न हुआ।मतदान का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक निर्धारित था। कुल 781 सांसदों में से लगभग 98 प्रतिशत ने मतदान किया। उसी दिन शाम 6 बजे से मतगणना शुरू हुई और रात  में परिणाम घोषित कर दिए गए। सी. पी. राधाकृष्णन (एन डी ए) को 452 वोट मिले।जस्टिस बी. सुधर्शन रेड्डी (इण्डिया ब्लॉक) को 300 वोट मिले।इस प्रकार राधाकृष्णन ने 152 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की। यह परिणाम न केवल संख्यात्मक रूप से एनडीए की बढ़त को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि विपक्षी दलों की एकजुटता अभी भी चुनौतियों से घिरी हुई है।

 

भारत का लोकतंत्र अपने संवैधानिक ढाँचे और विधानों के कारण विश्व में सबसे बड़ा और सशक्त लोकतांत्रिक प्रयोग माना जाता है। इस लोकतंत्र का एक अहम स्तंभ है । राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का पद। जहाँ राष्ट्रपति राज्य का सर्वोच्च संवैधानिक प्रमुख होता है, वहीं उपराष्ट्रपति न केवल उच्च पदस्थ संवैधानिक दायित्व निभाते हैं, बल्कि वे राज्यसभा के सभापति के रूप में विधायी प्रक्रिया की गरिमा और सुचारु संचालन के लिए भी उत्तरदायी होते हैं।सितंबर 2025 में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव भारतीय राजनीति और लोकतंत्र की परिपक्वता का ताजा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

 

राजनीतिक जानकार उपराष्ट्रपति परिणाम का महत्व और विश्लेषण कुछ इस प्रकार करते है।यह 

राजनीतिक संतुलन का प्रतिबिंब इस चुनाव ने संसद में सत्तापक्ष की मजबूत स्थिति को और स्पष्ट किया। एनडीए के पास संख्यात्मक बहुमत है, और इसी का लाभ उन्हें उपराष्ट्रपति चुनाव में भी मिला। इसे राधाकृष्णन की छवि का प्रभाव: भी माना जा रहा है। उनके विनम्र और गैर-टकराववादी स्वभाव ने उन्हें व्यापक स्वीकार्यता दिलाई। उपराष्ट्रपति जैसे पद पर यह गुण अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह पद दलगत राजनीति से ऊपर माना जाता है।

विपक्ष की रणनीति इस चुनाव में विफल हुई।इंडिया ब्लॉक ने न्यायपालिका से जुड़े उम्मीदवार को सामने रखकर लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती का संदेश देने की कोशिश की, परंतु अपेक्षित सफलता नहीं मिली।चुनाव की पूरी प्रक्रिया शांतिपूर्ण और गरिमामय रही। इससे यह स्पष्ट हुआ कि भारतीय लोकतंत्र में उच्च संवैधानिक पदों के चुनाव निष्पक्षता और नियमों के अनुसार होते हैं।

 

भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है। यह भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि सदन में विभिन्न विचारों, दलों और नेताओं को एकजुट रखकर चर्चा को रचनात्मक दिशा देना सभापति का कार्य है। राधाकृष्णन का अनुभव और उनका शांत स्वभाव इस पद के लिए उपयुक्त माना जा रहा है।साथ ही, राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति ही कार्यवाहक राष्ट्रपति का दायित्व निभाते हैं। इस दृष्टि से भी उपराष्ट्रपति का चुनाव राष्ट्रीय राजनीति और प्रशासन में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

 

उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं था, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता, राजनीतिक दलों की रणनीति और जनता के प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी का भी आईना था। सी. पी. राधाकृष्णन की विजय ने न केवल एनडीए को मजबूती प्रदान की है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि भारतीय राजनीति में सौम्यता, अनुभव और गैर-टकराववादी दृष्टिकोण आज भी सम्मान और स्वीकृति पाते हैं। इस चुनाव ने एक बार फिर साबित किया कि भारत का लोकतंत्र निरंतर विकसित हो रहा है और संवैधानिक पदों की गरिमा को बनाए रखने के लिए सभी राजनीतिक दलों की समान जिम्मेदारी है।

 

 


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