बांसवाड़ा, वागड़ अंचल में शिव भक्ति का दिग्दर्शन कराने वाला चार माह तक चलने वाला मंछाव्रत चौथ का व्रत श्रावण शुक्ल चतुर्थी 28 जुलाई, सोमवार को शुरू होगा।
मंछाव्रत चौथ व्रत की परम्परा से दशकों से जुड़े रहे शिवभक्त एवं श्री वनेश्वर महादेव सायंकालीन सेवा मण्डल के सचिव शान्तिलाल भावसार ने बताया कि समूचे वागड़ अंचल में सदियों से जारी शैव उपासना की परम्परा का प्रसिद्ध मंछाव्रत चौथ व्रत हर साल श्रावण शुक्ल चतुर्थी से प्रारंभ होता है और चार माह तक प्रत्येक सोमवार को शिव पूजा के साथ कथा श्रवण का दौर जारी रहता है।
इस व्रत के अन्तर्गत अपनी मनोकामना को लेकर बांसवाड़ा और डूंगरपुर दोनों जिलों में हर सोमवार को शिवालयों पर व्रती नर-नारियों का मेला उमड़ता है।
इस व्रत में किसी भी शिवालय पहुंचकर कच्चे सूतर का पांच वेत का धागा लेकर उसकी चार आवृत्ति के साथ व्रत का संकल्प लिया जाता है। प्रथम दिन चार धागों में चार गठान लगा कर, एक पैसा या महादेवजी का फोटो लगा एक रुपया और एक सुपारी ली जाती है। इन पर चन्दन, इत्र, अबीर, गुलाल लगाकर अक्षत, बिल्व पत्र फूलहार चढ़ा कर एक डिब्बी में रखकर मंछाव्रत चौथ की कथा का श्रवण किया जाता है।
इसके उपरान्त कार्तिक माह की चतुर्थी तक प्रत्येक सोमवार को व्रती नर-नारियों द्वारा अपने समीपवर्ती शिवालय पहुंचकर मंछाव्रत की कथा का श्रवण किया जाता है। व्रत के चारों माहों में पवित्रता और सादगी के साथ शिवभक्ति का अवलम्बन किया जाता है और भगवान भोलेनाथ के समक्ष सुख-समृद्धि भरी अपनी मनोकामना निवेदित की जाती है।
उन्होंने बताया कि प्राचीन काल से चली आ रही मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और शिव व्रतियों की वांछित मनोकामना को पूरी करते हुए अपनी कृपा बरसाते हैं। यही कारण है कि आज भी वागड़ में हजारों शिवभक्त चार माह तक इस व्रत का पालन करते हैं। चार माह चलने वाले इस व्रत का समापन दीपावली के बाद आने वाली कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होगा।