उदयपुर। अरिहंत भवन न्यू भूपालपुरा में आयोजित धर्मसभा में बोलते हुए आचार्य ज्ञानचन्द्र महाराज ने कहा कि ठोकर इसलिए नहीं लगती कि व्यक्ति गिर जाए, बल्कि इसलिए लगती है कि व्यक्ति संभल जाए। ठोकर खाकर भी जो ना संभले, वो इंसान कैसा,समझदार तो वो है जो दूसरों की खाई ठोकरों से समझ जाए।
उन्होंने कहा कि कोई जहर खाकर मरता है तो आप जहर को चखकर देखेंगे क्या? खाने से तो मरेंगे, इसलिए देखकर या जानकर ही जहर को छोड़ दिया जाता है। नंदीषेण मुनि एवं जमालि की घटनाओं से अनुभव लेकर सांसारिक आसक्ति एवं दुराग्रह से दूर रहना समझदारी है। जब राग आता है तो वो जाति पाति, रिश्ते कुछ नहीं देखता। वैसे ही किसी को अंदर का वैराग्य आ जाए तो फिर उसे साधु बनने से कौन रोक सकता है। कई लोग तो ऐसे कहते पाए जाते हैं कि आजकल साधु भी ढंग के नहीं रहे।