उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में रविवार को गिरी वधमाणा और श्री शत्रुंजय तीर्थ के 16 उद्धार का भव्य महोत्सव हुआ। जब तीर्थ की हालत तहस नहस हो जाती है उसे वापस बनाने, जीर्णाेद्धार करने को उद्धार कहते हैं। जिन शासन का यह महत्वपूर्ण तीर्थ है। शत्रुंजय एक शाश्वत तीर्थ है। अब तक पालीताणा स्थित इस तीर्थ के 16 उद्धार हो चुके हैं। इसके 5 शिखर देवताओं द्वारा निर्मित है। पहला उद्धार भरत चक्रवर्ती सम्राट ने किया था। यहां दिलीप सिरोहिया परिवार ने आज लाभ लिया। इसके बाद अष्ट प्रकारी पूजा हुई जिसमें सभी श्रावक श्राविकाओं ने झूमते हुए नाच-गाकर भाग लिया।
साध्वी विरल प्रभा श्री जी म.सा आदि ठाणा 3 की निश्रा में हुए शत्रुंजय महातीर्थ के 16 उद्धारों में भरत चक्रवर्ती राजा, दण्डवीर्य राजा, इशानेंद्र, महेंद्र, ब्रहमेंद्र, चरमेंद्र, सगर चक्रवर्ती राजा, व्यंतर इंद्र, चंद्रयश राजा, चक्रधर राजा, राम राजा, पांच पांडव, जावडसा सेठ, बाहड मंत्री, समरासा और करमासा दोशी शामिल हैं। सभी उद्धारों का अलग अलग परिवारों ने लाभ लिया। अंतिम उद्धार 1587 ईस्वी में हुआ जिसे करवाने वाले दोशी परिवार के वंशज आज भी उदयपुर में निवासरत हैं।
साध्वी श्री ने बताया कि उद्धार यानि क्या? जिर्णाेद्वार किस कारण हुए। साथ में शत्रुंजय तीर्थ की महिमा बताई। अलग अलग परिवारो ने लाभ लिया । लाभार्थी परिवार ने परमात्मा पर पुष्पवृष्टि, अष्टप्रकरी पूजा की । अंत में गिरिराज वधामणा 108 दिपक से महा आरती , शांति कलश हुआ। पूरे कार्यक्रम में लोगों ने बहुत ही उत्साहपूर्वक भक्ति की। पूरे उद्धार महोत्सव का विस्तृत वर्णन साध्वी विरलप्रभा श्रीजी, साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी और साध्वी कृतार्थ प्रभा श्रीजी ने किया। कार्यक्रम में देश भर से आये श्रावक श्राविकाओं ने हिस्सा लिया।
ट्रस्ट सह संयोजक दलपत दोशी ने बताया कि कार्यक्रम में इंदौर से संगीतकार चिराग भाई ने अपनी मधुर प्रस्तुतियों से मन मोह लिया। सभी समाजजनों के लिए स्वामी वात्सल्य का आयोजन किया गया।