उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि अनंतकाल से आत्मा भटक रही है। कभी तिर्यंच, देवलोक गतियों में भटक रहे हैं। कर्म के कारण आत्मा इधर से उधर दुखी होती हुई भटक रही है। कर्मबन्ध 4 वजह स्पष्ट, बद, निदढ, निकाचित से मिलते हैं।
उन्होंनें कहा कि पहला स्पष्ट कर्म यानी कर्म आये आपने भोगा और नष्ट कर दिया। कर्म निरन्तर आते हैं। प्यास लगी कर्म बन्ध हुआ और आपने पानी पीया और वो नष्ट हो गया। दूसरा बद इसमें कर्म क्षय होने में थोड़ा सा समय लगता है। ये सबके हो रहा है। तीसरा निदढ़ यानी नौकर को गाली दी, शाम को प्रायश्चित कर लिया। तपस्या कर ली और उस कर्म का क्षय कर लिया। निकाचित यानी अगर थोड़ा सा भी कर्म बन्ध का अंश रह गया और अगले जन्म में चले गए तो ये तब तक चलेगा।
उन्होंने कहा कि परमात्मा के उपकारों को याद करो। जो मिला है उसके लिए परमात्मा का धन्यवाद करो। आप 2 रुपये मंदिर में खर्च करो वो आपको 4 रुपये लौटाएगा। जो खा रहे हैं उसमें से परमात्मा को चढ़ाने का भाव कभी मन में आया? खुद पर खर्च करेंगे लेकिन मंदिर में फटा नोट चढ़ाएंगे। श्रेणिक राजा प्रथम तीर्थंकर बनने वाले हैं। उनके भाव के कारण ही वे बन पाए। कर्म बन्ध के कारण उन्हें नरक में जाना पड़ा। 72 वर्ष का आयुष्य मिला। श्रद्धा रखी, परमात्मा को अपना माना इसी से उन्हें इतना कुछ मिल गया। उच्च कोटि के भाव रखोगे तो भाव भी उच्च आएंगे। देने वाला भी वही है। उसी में से उसे देना है लेकिन वो भाव ही नहीं आता। साध्वी कृतार्थ प्रभा श्रीजी ने गीत प्रस्तुत किया।
ट्रस्ट सह संयोजक दलपत दोशी ने बताया कि पर्युषण की तैयारियां जोर शोर से चल रही है। श्रावक-श्राविकाओं में पर्वाधिराज के लिए काफी उत्साह है।