संस्कार, संस्कृति और सभ्यता की आत्मा है संस्कृत: राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों का आह्वान

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12 Aug 25
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संस्कार, संस्कृति और सभ्यता की आत्मा है संस्कृत: राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों का आह्वान

उदयपुर, श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन एवं संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य में संस्कृत भारती उदयपुर के तत्वावधान में मनाए जा रहे संस्कृत सप्ताह के अंतिम दिन “संस्कृतम् – संस्कार-संस्कृति-सभ्यतायाश्च आधार:” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन हुआ। संगोष्ठी संयोजक डॉ. चंद्रेश छातलानी ने बताया कि इसमें देशभर से जुड़े विद्वानों ने संस्कृत भाषा को भारतीय संस्कार, संस्कृति और सभ्यता की मूल आत्मा बताते हुए इसके संरक्षण और संवर्धन का सामूहिक संदेश दिया।

मुख्य वक्ता संस्कृत भारती के अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख हुलास चंद्र ने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं, बल्कि यह भारतीय जीवन मूल्यों और सांस्कृतिक धरोहर की संवाहिका है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संस्कृत का संरक्षण ही हमारी सांस्कृतिक पहचान और राष्ट्रीय अस्मिता की सुरक्षा है।

मुख्य अतिथि आलोक संस्थान, उदयपुर के निदेशक डॉ. प्रदीप कुमावत ने अपने संस्कृत उद्बोधन में कहा कि प्राचीन से लेकर आधुनिक युग तक संस्कृत ने ही भारतीय जीवन की नैतिकता, मर्यादा और ज्ञान-विज्ञान की परंपरा को जीवित रखा है। उन्होंने युवाओं से संस्कृत अध्ययन की दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान किया।

अध्यक्षता करते हुए पूर्व संभागीय शिक्षा अधिकारी व संस्कृत विद्यालय सवीना के प्राचार्य डॉ. भगवती शंकर व्यास ने कहा कि देशभर से आए विद्वानों ने अपने शोध पत्रों के माध्यम से स्पष्ट किया कि संस्कृत केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा भी है। चरित्र निर्माण, सामाजिक समरसता और वैश्विक शांति में संस्कृत की भूमिका पर बल दिया गया।

इससे पूर्व, संगोष्ठी का शुभारंभ वैदिक मंगलाचरण और दीप प्रज्वलन से हुआ, दीप प्रज्वलन का कार्य डॉ. रेणू पालीवाल ने किया। ध्येय मंत्र का वाचन रेखा सिसोदिया ने किया, जबकि संचालन नरेंद्र शर्मा और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. चंद्रेश छतलानी ने किया।

कार्यक्रम में आलोक हिरण मगरी प्राचार्य शशांक टांक, बांसवाड़ा विभाग संयोजक डॉ. प्रदीप भट्ट, चैन शंकर दशोरा, डॉ. विकास डांगी, मीनाक्षी द्विवेदी, कुलदीप जोशी, भूपेंद्र शर्मा, सागर डांगा सहित कई शिक्षाविद एवं संस्कृत प्रेमी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का समापन महानगर शिक्षण प्रमुख श्रीयांश कंसारा द्वारा कल्याण मंत्र के साथ हुआ। 


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