उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी कृतार्थ प्रभा श्रीजी ने कहा कि सम्यकत्व की यात्रा छोटे छोटे स्टेधन से होकर बढ़ रही है। अनंतकाल सर अनंत भवों में भटकते हुए इस मनुष्य गति को प्राप्त किया। एकेन्द्रिय से यहां तक पहुंचे। चार इन्द्रिय वाले जीवों के पास कान नाही होते हैं सो वो परमात्मा की वाणी नाही सुन पाते। पंचेन्द्रिय यानी हम। क्या, क्यों, कैसे और किसलिए सुनना जरूरी है। हम भाग्यशाली हैं कि सुन सकते हैं।
सुनना एक कला है। अगर ये जीव में आ जाये तो सदगति की ओर ले जा सकती है। सुनना आत्म कल्याण का कारण भी है तो दुर्गति का भी। क्या सुनना चाहिए? हमने अब तक क्या क्या न जाने सुन लिया। किसी के मुंह से निंदा सुनी, हमारे कान से टकराए और मन में कुविचार आये तो कर्म बंधन कर लिया। फिल्मी गीत सुने, गाए। नही सुनना था। परमात्मा की वाणी, आगम को सुनना चाहिए। पुण्य श्रावक, श्रेणिक राजा की कहानी सुनो। किसलिए सुनना है? कहीं कुछ बुराई हो रही हो तो हमने कान खड़े हो जाते हैं। सुनकर आगे बताई तो फिर गलत किया। देशना सुनने से कर्मों की निर्जरा हुई। यहां से सुनकर घर पर 4 लोगों को सुनाया। अगर एक ने भी सुनकर मान लिया और यहां आना शुरू किया तो आप भी धन्य और वो खुद भी धन्य हो जाएगा। क्यों सुनना है? वाणी सुनकर जीव दया के भाव आएंगे जीवों की विराधना होगी। पवित्र स्थान पर जाना है। पांव से नही चल पा रहे हैं तो गाड़ी पर चलकर आ रहे हैं। वाणी सुनना जरूरी है। पूजा या तो पहले कर लो या बाद में करना। चौथा पॉइंट कि कैसे सुनना है? एकाग्रचित्त होकर सुनना है। बैठे यहां हैं लेकिन ध्यान कहीं और है। प्रसन्न मन से सुनना है तभी कल्याण हो पायेगा। पुण्य का उदय होगा। सुनो ध्यान से और बोलो तो प्यार से।