उदयपुर : इतिहास विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर की दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी अतुलनीय उदयपुरः विरासत, समाज एवं दृष्टि का आयोजन मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के अतिथि ग्रह में 13 -14 अगस्त को किया जा रहा है । विभाग के सहायक आचार्य डॉ. पीयूष भादविया ने बताया कि यह राष्ट्रीय संगोष्ठी रूसा 2.0 के तहत आयोजित की जा रही है। उद्घाटन सत्र के मुख्य -वक्ता इतिहास विभाग, मीरा कन्या महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो. चंद्रशेखर शर्मा ने अपने मुख्य उद्बोधन में कहा कि उदयपुर के शासनकर्त्ता एकलिंगनाथ से उदयपुर की विरासत का प्रादुर्भाव होता है और श्रीनाथजी का भी इस क्षेत्र को चुनना दैवीय शक्ति है।उन्होंने कहा कि अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा उदयपुर शहर अपनी विविध विरासतों के लिए विख्यात हैं, हालांकि आज अरावली सुरक्षित नहीं हैं। उदयपुर की मुख्य विरासत स्वतंत्रता और स्वाभिमान है। मांझी के मंदिर को अमरई घाट बना देने से हमारी धरोहरों का ज्ञान लुप्त हो रहा है। उदयपुर के पर्यटन को सतत् एवं टिकाउ बनाने पर ध्यान देना चाहिए। राजतंत्र की धरोहरों की प्रजातांत्रिक काल की धरोहरों से तुलना नामुमकिन हैं।
मुख्य अतिथि प्रो. नारायण सिंह राव, विभागाध्यक्ष, इतिहास विभाग, केंद्रीय विवि. हिमाचल प्रदेश ने अपने उद्बोधन में महाराणा उदयसिंह के उदयपुर स्थापना की दूर-दृष्टि को रेखांकित किया। उदयसिंह ने उदयपुर की स्थापना ऐसे स्थान पर की, जिससे इसकी प्राकृतिक सुरक्षा हो सके। यह शहर अपने व्यापार एवं वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए भी जाना जाता है।यहां के अपशिष्ट पदार्थ प्रबंधन को बेहतर बनाना चाहिए।
विशिष्ठ अतिथि डॉ. अनिल मेहता, प्राचार्य, विद्याभवन पॉलोटेक्नीक महाविद्यालय ने उदयपुर की शौर्य विरासत, सांस्कृतिक विरासत एवं अन्य विरासतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने उदयपुर को जिंक सिटी, लेक सिटी, टेम्पल सिटी, मिलेट सिटी के नाम से जानने की बात कही। उन्होंने उदयपुर को वेड़िग सिटी, रोमैंटिक सिटी, ड्रग सिटी, इनफर्टिलिटी सिटी के नाम से पहचाने जाने का विरोध किया। उदयपुर शहर जिसे रामसर कंवेन्शन के तहत वेटलैंड सिटी भी घोषित किया हैं जिसमें 100 प्रवासी पक्षियो की प्रजातियां आती है, जिनके लिए भी चिंतन आवश्यक है। हरित ऋषि की विरासत संजोए रखने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. सुनीता मिश्रा, कुलगुरू, मोहनलाल सुखाड़ि़या विश्वविद्यालय ने झीलों के संरक्षण, रायता पहाड़ी को इकों पर्यटन के रूप में विकसित करने, शहर को और स्वच्छ बनाने एवं इस शहर के पारम्परिक ज्ञान को संरक्षित करने की बात कही।
प्रारम्भ में प्रो. प्रतिभा विभागाध्यक्ष एवं संगोष्ठी संयोजक ने स्वागत उद्बोधन में संगोष्ठी के विभिन्न आयामो को स्पष्ट किया। धन्यवाद प्रो. दिग्विजय भटनागर, संकाय अध्यक्ष, सामाजिक विज्ञान, मो.ला.सु.वि. ने प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन स्वाति लोढ़ा एवं सपना मावतवाल ने किया। कार्यक्रम में प्रो. सुशीला शक्तावत, प्रो. विमल शर्मा, प्रो. सरोज गुप्ता, प्रो. अनिता कावडिया, डॉ. पीयूष भादविया, डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, डॉ. महेश शर्मा, विलास जानवे, डॉ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित, डॉ. वारसिंह, डॉ. जे.के. ओझा, डॉ. विवेक भटनागर, डॉ. हेमेन्द्र चौधरी, डॉ. हंसमुख सेठ, डॉ. मनोज दाधीच, सतीश शर्मा, सतीश श्रीमाली, डॉ. नीतू परिहार, डॉ. नवीन नन्दवाना, डॉ. राजूसिंह, डॉ. देवेन्द्र सिंह, डॉ. दीपक सालवी, डॉ. अल्पनासिंह, डॉ. अजय मोची, मोहित शंकर सिसोदिया, जयकिशन चौबे, हरीश तलरेजा, चेनशंकर दशोरा, गणेश नागदा, हाजी मोहम्मद, दिलावरसिंह, उमेश, मुरली मनोहर, राहुल, कृति, श्वेता, अनामिका, निशा आदि विद्वान एवं शहर के गणमान्य मौजूद थे।