उदयपुर ठाकुर अमरचंद बड़वा स्मृति संस्थान ने महादराव (माधवराव) सिंधिया को 6 माह तक उदयपुर के बाहर रोक कर आज ही के दिन 21 जुलाई को पुनः लौटने पर मजबूर करने वाले "विजय दिवस" पर गोष्ठी का आयोजन कर ठाकुर अमरचंद बड़वा की कुशल युद्ध नीति पर उन्हें नमन किया गया। संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर विमल शर्मा के आवास पर आयोजित इस गोष्ठी में मुख्य वक्ता डॉ राजेंद्रनाथ पुरोहित ने बताया कि मेवाड़ की विद्रोही सरदार फितरती रतन सिंह को मेवाड़ की गद्दी पर आसीन करने के लिए मेवाड़ राजधानी उदयपुर पर जनवरी 1769 मे सिंधिया ने आक्रमण कर उदयपुर के बाहर डेरा डाला। सेनापति व प्रधान ठाकुर अमरचंद बड़वा ने नगर के मुख्य द्वारों, गढियों पर राजपूत योद्धाओं सहित तोपों को स्थापित कर सिंधिया से डटकर मुकाबला किया । माछला मंगरा स्थित दुश्मन भंजन तोप की मार द्वारा बाघ सिंह (कजराली) ने सिंधिया को सूरजपोल में घुसने नहीं दिया। शेष द्वारों पर नियुक्त योद्धाओं ने भी सिंधिया को शहरकोट के नजदीक फटकने नहीं दिया । लम्बे संधर्ष के चलते उदयपुर में भोजन सामग्री की कमी होने पर मजबूरी मे मराठा से संधी करने का प्रस्ताव करना पड़ा। कुराबड के रावत अर्जुन सिंह की मध्यस्थता में ठाकुर अमरचंद बड़वा ने सिंधिया से संधि प्रस्ताव बनवाया । संधि प्रस्ताव मे हस्ताक्षर पश्चात सिंधिया द्वारा लोभवश 20 लाख रुपयों की बढोतरी करने पर उद्वेलित होकर ठा. अमरचंद बड़वा ने संधि पत्र फाडते हुए कहा कि जब तुम अपनी जुबान पर ही कायम नहीं रहे तो अब हमारी शर्तें ही चलेगी। अंततोगत्वा 6 माह के असफल डेरे के बाद 21 जुलाई 1769 को मराठों की सेना उदयपुर से प्रस्थान कर मालवा लौट गई । 21 जुलाई 1769 का यह दिन संक्रमण कालीन मेवाड़ मे विजय दिवस के रूप में मनाया जाकर ठाकुर अमरचंद बड़वा को कुशल युद्ध नीतिकार के रुप मे नमन करता है।
संगोष्ठी में प्रोफेसर विमल शर्मा ने कहा कि सिंधिया की कुचेष्टा को विफल कर ठा. अमरचंद बड़वा ने हमारी मेवाड़ी पहचान को अक्षुण्ण रखा| गोष्ठी मे डॉ जे के ओझा, जय किशन चौबे , डा रमाकांत शर्मा ने बड़वा कालीन इतिहास पर अपने विचार व्यक्त किये। धन्यवाद मनोहर लाल मुंदड़ा ने दिया। संस्थान के सुरेश तम्बेली, ओम प्रकाश माली, गोविन्द लाल ओड़ सहित अन्य सदस्य उपस्थित थे।