आर्यसमाज सत्य सनातन वैदिक धर्म का प्रचारक एवं प्रसारक है। वैदिक धर्म ईश्वर प्रदत्त धर्म है जो संसार के न केवल मनुष्यों अपितु सभी प्राणियों के किये कल्याणकारक है। वेदों से इतर व भिन्न मान्यताओं वाले सभी मत-मतान्तर धर्म न होकर मत एवं सम्प्रदाय हैं। वेदों के अध्ययन व आचरण से ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास वा उन्नति होती है जबकि मत-मतान्तरों की शिक्षाओ ंसे मनुष्य का सर्वांगीण विकास न होकर उसकी आत्मोन्नति एवं परजन्म में उन्नति सहित मोक्ष का मार्ग अवरुद्ध होता है। वैदिक धर्म को तत्वतः जानने व समझने में वैदिक वा आर्ष संस्कृत भाषा के ज्ञान का विशेष महत्व है। इस उद्देश्य की पूर्ति वैदिक गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली से होती है। संस्कृत भाषा का विश्व की अन्य सब भाषाओं के अध्ययन से अधिक महत्व है। वेद एवं इतर ऋषिप्रोक्त प्रामाणिक शास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन आर्ष संस्कृत व्याकरण का अध्ययन कर ही किया जा सकता है। सृष्टि के आरम्भ से महाभारत तक भारत में संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन आजकल हिन्दी व अंग्रेजी भाषाओं एवं साहित्य के अध्ययन के समान सर्वत्र हुआ करता था। महाभारत के दुष्परिणामों में से एक दुष्परिणाम यह भी था कि हमारी संस्कृत एवं शास्त्रीय अध्ययन की वैदिक गुरुकुलीय प्रणाली शिथिल व अप्रचलित हो गई थी। ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में इस गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को पुनर्जीवित किया था। इसी पद्धति का सर्वप्रथम उद्धार स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी ने किया और उसके बाद अनेक विद्वानों ने इसका पोषण किया। गुरुकुलीय आर्ष शिक्षा प्रणाली पर आधारित कासगंज का गुरुकुल ‘‘श्रीमती चन्द्रवती कन्या गुरुकुल संस्कृत विद्यापीठ” है। यह गुरुकुल देवरी के निकट प्रह्लादपुर ग्राम में सोरों थाने के अन्तर्गत तहसील एवं जिले कासगंज-207403 में स्थित है। मोबाइल नं0 09680674789, 09880674789 एवं 09414533951 पर गुरुकुल विषयक किसी जानकारी लेने सहित इसकी आथिक सहायता की जा सकती है। ईमेल [email protected]m पर भी गुरुकुल से सम्पर्क किया जा सकता है।
गुरुकुल की स्थापना सन् 1965 में प्रह्लादपुर ग्राम के प्रधान श्री लाखन सिंह जी आर्य ने की थी। श्री आर्य ऋषिदयानन्द, वेद और आर्यसमाज के दीवाने व भक्त थे तथा वैदिक मान्यताओं पर आपका दृण विश्वास वा निष्ठा थी। गुरुकुल की संस्थापक आचार्या आर्यजगत की प्रवर वेदविदुषी डॉ0 सूर्यादेवी चतुर्वेदा जी हैं। एक समिति के द्वारा गुरुकुल का संचालन किया जाता है। गुरुकुल वर्तमान समय में गतिशील है। सितम्बर, 2017 में इस गुरुकुल का पुननिर्माण हुआ है। पाठ्यक्रम में आर्ष व्याकरण के अध्ययन को प्राथमिकता है। सरकारी परीक्षाओं का अध्ययन भी गुरुकुल में कराया जाता है। गुरुकुल किसी भी सरकार या उसकी संस्थाओं से मान्यता प्राप्त नहीं है। यहां गुरुकुल में सीमित संख्या में ही छात्राओं को अध्ययन कराया जाता है। गुरुकुल 20 बीघा भूमि में संचालित है एवं यह भूमि गुरुकुल के अपने नाम पर पंजीकृत है।
गुरुकुल द्वारा संचालित अन्य प्रकल्प निम्न हैं:
1- संस्कृत प्रशिक्षण शिविर,
2- यज्ञ याग आदि का प्रशिक्षण,
3- संस्कत प्रतियोगितायें,
4- गोशाला का संचालन,
5- पुस्तकालय का संचालन,
6- गायन व वादन का प्रशिक्षण,
7- शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण,
8- आर्यसमाज का प्रचार व प्रसार।
शिक्षणेतर गतिविधियों में राष्ट्र हितार्थ जन जागृति, कुरीति निवारण आन्दोलन, आपदग्रस्त लोगों को सहयोग, नागरिक सभा सम्बोधन, वेदपाठ कार्य, पारायण यज्ञों का संचालन, भजन, प्रवचन, लेखन व मंगलाचरण आदि कार्य किये जाते हैं। गुरुकुल की प्रमुख उपलब्धि यह हैं कि इस गुरुकुल को आर्यजगत की शिरोमणी वेद-वेदांग विदुषी आचार्याओं डॉ0 सूर्यादेवी चतुर्वेदा एवं डॉ0 धारणा याज्ञिकी जी की सेवायें उपलब्ध हैं। इस गुरुकुल की स्थापना से ही यह दोनों शीर्ष वेद-वेदांग विदुषी आचार्यायें देश व समाज को मिली हैं। यही इस गुरुकुल की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह गुरुकुल आर्यसमाज व देश के लोगों के संज्ञान में नहीं आया, यह इसकी एक विडम्बना है। गुरुकुल में शिक्षित स्नातिकायें आर्यसमाज के प्रचार व प्रसार में सक्रिय हैं। वस्तुतः आर्यसमाज के संगठन से जुड़ कर वेदप्रचार वा आर्यसमाज का प्रचार व प्रसार ही गुरुकुलों का मुख्य उद्देश्य है। गुरुकुल के सभी कार्य दान में प्राप्त धनराशि से सम्पन्न किये जाते हैं। इसके लिये गुरुकुल की आचार्यायें प्रयत्न व पुरुषार्थ करती हैं। गुरुकुल को प्रदेश व केन्द्र किसी सरकार से किंचित भी आर्थिक सहायता व मानदेय प्राप्त नहीं हैं। गुरुकुल को भवन निर्माण कार्य में आर्थिक सहयोग देने वाले दानी महानुभावों से सहयोग की प्रतीक्षा है। गुरुकुल की आचार्यायें सरकार से अपेक्षा करती हैं कि वह आर्ष शिक्षा प्रणाली को मान्यता प्रदान करें और गुरुकुलों का अन्य सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों की तरह आर्थिक पोषण करे। सरकार से यह भी अपेक्षा है कि वह ऐसा कोई मानक तय न करे जो आर्ष संस्कृत शिक्षण प्रणाली के प्रचार में बाधक व घातक बने। गुरुकुल की संचालन समिति के कुछ प्रमुख अधिकारी निम्न हैं:
1- आचार्या डॉ0 सूर्यादेवी चतुर्वेदा एवं आचार्या धारणा याज्ञिकी- प्राचार्य/आचार्य (मो0 9680674789-9414533951)
2- आचार्या डॉ0 सूर्या देवी चतुर्वेदा जी - प्रधान
3- श्रीमती साधना आर्या - प्रबन्धक
4- श्री यशोमित्र आर्य - कोषाध्यक्ष।
कासंगज का यह कन्या गुरुकुल आचार्या डॉ0 सूर्यादेवी जी एवं आचार्या डॉ0 धारणा याज्ञिकी जी के कीर्तिशेष पिता श्री लाखन सिंह आर्य जी द्वारा वेद विदुषी डॉ. प्रज्ञादेवी जी की प्रेरणा से अपनी निजी भूमि दान में देकर स्थापित किया गया है। इस गुरुकुल की स्थापना के पीछे श्री लाखन सिंह आर्य जी का ऋषि दयानन्द, आर्यसमाज और वैदिक परम्पराओं से असीम प्रेम होने सहित ईश्वर की प्रेरणा भी कारण प्रतीत होते हैं। हम श्री लाखन सिंह आर्य जी की पुण्य स्मृति को सादर नमन करते हैं। इन्हीं दिव्य भावनाओं में भरकर उन्होंने अपनी सन्तानों को आर्य संस्कारों से सुशोभित किया। हम इस गुरुकुल की उन्नति की कामना करते हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121