मन की पगडंडियों पर..काव्य संग्रह कोटा की लेखिका रश्मि वैभव गर्ग की एक ऐसी कृति है जिसमें लेखिका ने मन के भीतर की भावनाओं से जीवन को उकेरने की कोशिश की है। एकांत में जब मन यात्रा करता है तो जीवन के कई पहलू आंखों के सामने चलचित्र की भांति घूमने लगते हैं। समाज और जीवन की सच्चाई के अनछुए प्रसंगों से साक्षात् होने लगता है। रचनाकार ऐसे ही साक्षात्कारों को अपनी अभिव्यक्ति में ढाल कर रचना संसार का सृजन करती है। यह कृति जीवन की गहरी अनुभूतियों को काव्य सृजन के माध्यम से पाठक के सामने लाती है। यह कृति राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित है।
रचनाओं में समाया है नारी का संघर्ष, सशक्तिकरण का हौंसला, प्रकृति का प्रेम, मन की उलझन, आकांक्षाओं, पीड़ा, राष्ट्र भक्ति, अध्यात्म, प्रेम और सपनों में सजी आशाएं। रचनाकार की सृजनशीलता इन्हीं संदर्भों को लिए हुए है। अपने अंतर्मन के भावों को शब्दबद्ध कर काव्य के रूप में "मन की पगडंडियों पर..." उतार दिया है।
पुस्तक की शीर्षक कविता "मन की पगडंडियों पर" में प्रेम भाव की अभिव्यक्ति की गहराई देखते ही बनती है ......( पृष्ठ 15 )
"मन की पगडंडियों पर / सदा उग आते हो तुम, पुष्प गुच्छ की तरह../ छूना चाहती हूं तुम्हें और तुम ओझल हो जाते, / बदली में चांद की तरह.../ एक टक देखना चाहती हूं मैं /तुम चले जाते हो /पानी में प्रतिबिंब की तरह../ मन की पगडंडियों को मैं सींचती../ यादों की फुहारों से.. और तुम/ विस्मृत हो जाते पर्दे के पात्र की तरह../ सँजोना चाहती थी, मन की देहरी पर../ यादों के पुष्प गुच्छ को /तुम लिपट जाते मुझसे, अमलतास की तरह../ ठहरना नियति नहीं, / न यथार्थ में, नही यादों में! पर ये क्या !/
तुम तो चले गए / सदा के लिए, बुद्ध की तरह./. स्वप्न से भी ओझल होने लगे हो अब, स्मृतियां ही शेष हैं,/ आचमन की तरह..।"
प्रेम के ऐसे ही उड़ात भाव यादों के पिटारे, वेदनाओं का कुसुमासव, तुम्हारे कदमों की आहट पर, तिनका तिनका भर प्रेम, तुम्हारे चेहरे की अनुभूतियाँ, मैं पूछती हूँ चाँद से, प्रेम में प्रतीक्षारत चिराग, और उग आते हो तुम, मैं और तुम, एहसास मेरे, आँसुओं के कोहरे ने, मौन आँखों से संवाद, सावन की तरह, नदी और समुद्र, प्रेम तो अपरिमेय है, बारिश की बूँदों की आस आदि काव्य रचनाओं में रचनाकार की प्रेम की प्रकृति की अनुभूति और उसके अनुभव के साथ पाठक के सामने आते हैं। वेदनाओं के कुसुमासव कविता के अंश देखिए.......... ( पृष्ठ 55 )
"सब कुछ अलिखित था / हृदय की शिराओं पर/ पर फिर भी/ तुम्हारे भीतर का प्रेम/ लिख रहा था/ मेरे विरह की गीतिकाऐं/ तब मैं देख रही थी /पीछे मुड़कर / तुम्हारे संवेग मिश्रित / मानस पटल को / तुम्हारे रास्तों के परिक्रमण ने / घोल दी है मुझमें / अजीब सी मिठास,/ तुम लिख देना / मेरी संभावनाओं का गणित/ आहटों पर मुखरित /वेदनाओं का कुसुमासव !"
रचनाकार के अंतर्मन के भावों में प्रेम का विस्तार प्रेम की परिभाषा से ऊपर उठ कर देश प्रेम तक पहुंचता है। इनकी संवेदनाओं में राष्ट्र प्रेम की बानगी सैनिक की अद्धांगिनी, एक दीप ऐसा जलाना, तिरंगे के तीन रंग, आन, बान, शान है तिरंगा कविताओं में शिद्दत से अभिव्यक्त होती दिखाई देती है। एक दीप ऐसे जलाना है के भावों को देखिए......( पृष्ठ 77)
"जो रोशन कर दे उनका घर, /जो सीमा पर खड़े हैं,/ प्रहरी बनकर../ तुम उनके प्रहरी बन जाना.. / एक दीप ऐसा जलाना../ जो रोशन कर दे उनका घर, / जिनकी माँग का सिंदूर/ उजड़ा है, मेहंदी छूटी है, /तुम उनके रक्षक बन जाना../ एक दीप ऐसा जलाना../ जो रोशन कर दे उनका घर, / जिनके माँ, पिता का साया उठ गया, / तुम उनके संरक्षक बन जाना../
एक दीप ऐसा जलाना.. /जो रोशन कर दे उनका घर/ जिनके घरों के चिराग बुझ गये,/
तुम उनके दीपक बन जाना./. एक दीप ऐसा जलाना../ जो रोशन कर दे तुम्हारा अंतस्, /तुम स्वयं के भीतर / चिर रोशनी का, /एक दीप जरूर जलाना !"
रचनाकार की कविताएं वृक्ष, साँझ, सूर्योदय,
नारी, बेटी, बहू, मुस्कान, दोस्ती, जीवन मृत्यु, किसान , नदी, पिता और बारिश कविताएं प्रकृति और सामाजिक प्रेम के भावों पर आधारित काव्य रचनाएं हैं। सांझ की बेला काव्य रचना देखिए क्या कहती है......( पृष्ठ 138)
" पंछियों का कलरव, पशुओं का लौटना../ साँझ का दीपक, आरती की ध्वनि../ देती है, एक पुरसुकून सी खामोशी../ साथ में एक संदेश भी../ कि जो उदय हुआ है, वो अस्त भी होगा../ दिन हो या जीवन ! "
किसान की प्रकृति पर निर्भरता और किसान की पीड़ा को कविता में कितनी सुन्दरता से भावप्रधान बनाया है देखते ही बनता है.......( 147 )
" बंजर भूमि को /अपने पसीने से /सींचकर,/ कभी अलवृष्टि, /कभी अतिवृष्टि /को नियति मान कर,/ करता रहता, /निश्छल आँखों/ से,/ बारिश का इंतजार !/ कभी देखता आसमान,/ कभी देखता जमीन../ जिसपर टिकी, /भविष्य की बुनियाद !/ सबका अन्नदाता, / अपने पेट के लिए / इंद्रदेव की, /करता रहता मनुहार !"
भाषा शैली की दृष्टि से कविताएं सरल, सहज और हृदय को छू लेने वाली हैं। उनके भाव और संवेदना सृजन शिल्प को बताती है। कृति में 77 कविताओं के माध्यम से अपने
पाठकों तक अपने मंतव्य को पहुंचाने के लिए प्रतीकों का सहारा लिया गया है। वैचारिक चिंतन और संदर्भों को शब्दों की मणिमाला के मोतियों की तरह पिरोना लेखिका का अपना ही सृजन कौशल है।
पुस्तक की भूमिका लिखते हुए कथाकार और समीक्षक विजय जोशी लिखते हैं ," कवयित्री के यही भाव उनकी काव्य रचनाओं का मर्म है जिसमें वे अपने अतीत के पन्नों पर अंकित अध्यायों को स्मृतियों की दिशाबोधक आभा से वर्तमान समय के साथ कदम बढ़ाते हुए समन्वित ही नहीं कर रहीं वरन् सावचेत होकर उन्हें संवर्धित करने में अपनी आन्तरिक शक्ति और आत्मविश्वास से भविष्य को गढ़ने का कर्म भी कर रही हैं। " फ्लैप पर झुंझुनूं के जितेंद्र सिंह सोम लिखते हैं," इस कविता संग्रह ने साहित्य समाज में, नारी लेखकों विशेष रूप से युवा कवयित्री की आधुनिक समाज में व्याप्त साहित्यिक संघर्ष, नारी सशक्तिकरण और हौसलों को पाठकों तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया है। निश्चित रूप से यह कविता संग्रह है, युवा कवयित्री की साहित्यिक उड़ान को और भी ऊंचा ले जाएगा।"
मेरे मन की बात में रचनाकार लिखती है,"
मन की अथाह सतह पर, पगडंडी के समान लिखा, ये कविता संग्रह नहीं बल्कि उन पगडंडियों पर खिले पुष्प हैं ...। वे पुष्प जो अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों में खिले और जीवन का राग कहना चाहते हैं... मन की बगिया को महकाना चाहते हैं। ये खिलते हुए समीप रहें ऐसे एक स्थान, जहाँ ये शीर्ष पर भी न रखे जाएँ और निर्माल्य भी न बने बस सुरक्षित रहें मन की पगडंडियों पर। सदा सदा के लिए... ।"
पुस्तक : मन की पगडंडियों पर...
लेखिका : रश्मि वैभव गर्ग, कोटा
प्रकाशक : ज्ञान गीता प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य : 495 रुपए
हार्डबाउंड : पेज 150
ISBN : 978 - 93-6088- 378 -2
साहित्यिक परिचय:
विज्ञान की शिक्षा के बावजूद, साहित्यिक अभिरुचि... जो संवेदनशील मन की पहचान है। विधाओं से रहित साहित्य सृजन, जो जीवन रश्मियों से अपने साहित्य को अलोकित करना चाहती हैं। देश के विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्र और पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। आपने एमएससी (रसायन शास्त्र), एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) की शिक्षा प्राप्त की। अंतर रश्मियाँ (भाव संग्रह) और प्रतिबिम्ब (कहानी संग्रह) प्रकाशित पुस्तकें हैं।