कविता -‌ जाग हिन्दू,उठ हिन्दू 

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14 Aug 25
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कविता -‌ जाग हिन्दू,उठ हिन्दू 

अरे!जाग हिन्दू,उठ हिन्दू,

अस्तित्व बचा नस्लों का,तान‌ ले अब बन्दूक बंधू।

अरे!जाग हिन्दू, उठ हिन्दू।

 

खतरे का साया धर्म पर मंडरा रहा,

तिल-तिल कर हिन्दू कट रहा।

आजादी की लौ भभक रही,

देश मेरा आज फिर सुलग रहा।

 

इतिहास गवाह है जब-जब हिन्दू बंटा है,

तब-तब तड़प-तड़प कटा है।

रे! सुन हिन्दू!मत भूल,तू है सिर्फ हिन्दू,

अस्तित्व बचा नस्लों का, तान‌ ले अब बन्दूक बंधू।

 

(पहलगाम की खूबसूरत घाटियों में हिन्दूओं पर आंतकी हमला हुआ।तब लिखती हूं)

 

कौन कहता है आंतक‌ का धर्म नहीं होता,

धर्म पूछकर मारना ही आंतक का धर्म होता है।

जात न जानी, सीधा धर्म जाना,

बली का बकरा बना वही जो कलमा पढ़ना न जाना।

बेड़ियां तोड़ जाती की अब तो आजाद हो हिन्दू,

अरे!जाग हिन्दू,उठ हिन्दू,

अस्तित्व बचा नस्लों का, तान‌ ले अब बन्दूक बंधू।

 

सहसा सिंध में ज्वार उठा था,

समझ में किसी के न कुछ आया था।

आव देखा न ताव देखा, बौछारें‌ गोलियों की तड़ातड़ कर दी,

कल की‌ नई‌ ब्याहता आज ही विधवा कर‌ दी।

 

(तब आक्रोश के साथ पूछती हूं)-

कब तक बहन-बेटियों का सुहाग यूं ही उजड़ता रहेगा?

कब तक मां का लाल तिरंगे में यूं ही लिपटता रहेगा?

कब तक हिन्दू यूं ही बर्बाद होता रहेगा?

कुचल डाल नफरती कीड़े का बागान अब बन्धू,

अरे!जाग हिन्दू!उठ हिन्दू!

 

चटकी चट्टानें, तड़की बर्फ,फटी धरती,बादल चीखा था,

खौफनाक खेल खूनी था, नारंगी सूरज भी आज इसमें डूबा था।

 

शर्मसार हैवानियत भी हो गई,

बहन के सामने भाई‌ के कपड़े उतार जान‌ जब हलाल हो गई।

अपमान के इस घूंट को अब तो अपना अभिमान बना हिन्दू,

स्वाभिमान बचा अपना,तान ले अब बन्दूक बंधू।

अरे!,उठ हिन्दू !जाग हिन्दू!

 

अजगर का डंक था, मासूम लोगों को डसा था,

घोड़े-खच्चर वालों ने भूख से बिलख-बिलख दम तोड़ा था।

गहरी साज़िश, जहरीली रंजिश, नापाक इरादों की तपिश थी,

अधमरी वीर सपूताएं हो गई,जान जिनकी जालिमों ने बख्शी थी।

 

(तब गहरे रोष के साथ लिखती हूं)

मां भारती का बंटवारा है जिनकी मंषा में,

वे समझेंगें अर्जुन की गांडिव धर्म की भाषा में।

कह दो दिल्ली वालों को, बात पहुंचा दो‌ सियासत के‌ गलियारों को 

देशद्रोह के गर्म तवे पर आंतक की रोटियां सेंकना बंद करो,

बहुत हो चुका भैंस के‌ आगे बीन‌ बजाना बंद करो,

बहुत हो‌ चुका‌ भेड़ियों को चिकन बिरयानी खिलाना बंद करो।

 

हम हिंदू क्यों नहीं समझते -

भेड़ियों की जात कभी शाकाहारी नहीं हो सकती,

बबूल पर कभी बेला-चम्पा नहीं उग सकती।

हिंदू ही नहीं सैयद भी हलाल हुआ, नाम कहीं न इसका गाया गया,

शकुनी की चौपड़ थी,पासा फूट का फैंका था,

रौद्र राणा-शिवा बन,घौंप भाला अब तो चीर डाल‌ बन्धू,

अरे!उठ हिन्दू!जाग हिन्दू!

 

गोलियों की गूंज थी, दुश्मन समझा था हम डर जाएंगे,

बुजदिलों को क्या पता-

सिंदूर किसी के बाप की बपौती नहीं होता,

हिंदू कट-कट गिर जाता है, तिरंगा नही झुकने देता।

 

कुरूक्षेत्र के कण-कण से पंचजन्य हुंकार उठा,

आजादी का‌ गणपति ललकार उठा।

चल पड़े मां भारती के रणबांकुरे,हर बम‌ में था प्रतिशोध भरा,

अड्डे पर अड्डे दुश्मन के नेस्तनाबूद कर दिए,

शहीद हुई हर सांस पर वन्दे मातरम् का नारा था।

 

रंग गया था आसमां लहू में,

जिसमें चमका मां का सिंदूर था।

अरे!उठ हिंदू!जाग हिन्दू!

अस्तित्व बचा नस्लों का,तान ले अब बन्दूक बंधू।


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