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फूल सजीले आम रसीले

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13 Jun 25
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फूल सजीले आम रसीले

बाल कविताओं का लेखन कठिन कार्य है। इन कविताओं के लिए रचनाकार को स्वयं बच्चा बन कर उस के बाल मन की सोच के धरातल पर उतर कर लिखना होता है। बच्चों की भावनाएं, मनोवृत्ति, रुचि, को ध्यान में रखना होता हैं। इन सभी मापदंडों पर इस कृति की कविताएं खरी उतरती हैं। सभी रचनाकारों ने बाल सुलभ वृत्ति का पूरा ध्यान रखा है और उनकी कविताओं से बच्चों का मनोरंजन होने के  के साथ - साथ उन्हें कोई न कोई सीख भी मिले , जो उनके भावी जीवन पथ में मार्गदर्शक बने।  साहित्यकार सुरेश चंद्र निगम द्वारा संपादित इस कृति में झालावाड़ जिले के 22 महिला और पुरुष रचनाकारों का संक्षिप्त परिचय के साथ उनकी तीन - चार प्रतिनिधि बाल कविताएं शामिल की गई है। कृति बाल साहित्यकार स्व. कवि शिवचरण सेन "शिवा" की जयंती पर प्रकाशित की जा कर उन्हें समर्पित की गई है।
      बच्चों का विविध प्रकार खेलों से मनोरंजन करना, आपस में लड़ना झगड़ना, रूठना - मानना और एक मिनट में ही फिर एक हो जाते हैं।  प्रेम, ममता, वात्सल्य, लाड़, प्यार अपनापन जैसे भावों को वे सहज ही भाँप
लेते हैं। जात- पाँत, , ऊँच-नीच, छोटे-बड़े के भाव से कोसों दूर होता है उनका निर्मल मन। हर चीज को जानने की जिज्ञासा रहती है। उड़ती रंगबिरंग तितली , बरसात में टर्र ..टर्र.. करते मेढक, नटखट बंदर, नाचता भालू, आसमान से बातें करती पतंग, छोटी-छोटी साइकिल चलना, चंदामामा की कहानियां सुनना, बरसात में नहाना और कागज की नाव बना कर पानी में चलना, बादलों में बने इंद्र धनुष को देखना, चिड़ियाघर में कई प्रकार के पक्षी और जानवरों को देख कर बच्चें खूब मनोरंजन करते हैं बच्चें।  मां, बहिन,दादा, दादी, नाना, नानी का वात्सल्य  सुख उन्हें खूब आनंदित करता हैं। साथ ही इन सब का बच्चों को नियमों की पालन करना, सड़क पर देख कर चलना, कसरत - योग का महत्व बता कर संस्कारित भी करता है। गुरु से शिक्षा का ज्ञान पाते हैं और देशभक्ति के गीत भी गाते हैं।
      बच्चों के इस मनोविज्ञान से ही रचनाकारों 
अदिति शर्मा, कन्हैयालाल राठौर, अब्दुल मलिक खान, जगदीश नारायण, चैतन्य कुमार शर्मा "चेतन", तुलसीराम "तुलसी", नरेन्द्र कुमार दुबे ,नारायणलाल "सुहाना", प्रखर कवि राज ,
बलराम निगम , भवानी शंकर वर्मा, मुराद खान "मुराद" , मोना शुक्ला,  मोहनलाल वर्मा, राकेश कुमार नैयर, राजेन्द्र  शांतेय, डॉ. राजेश पुरोहित, रेखा सक्सेना "अरूणिम", वीरेन्द्र कुमार श्रृंगी, शैलेन्द्र "गुनगुना",सुरेश चन्द्र निगम और  हेमराज "केसरी" ने इन विषयों को अपनी बाल कविताओं का माध्यम बनाया है, जो बाल मन को सीधे छू कर उनके विकास में भी सहायक हैं और जग में सब से प्रेम करने का  संदेश देती हैं।
    " यह पर्यावरण हमारा है" में अदिति शर्मा ' सलोनी ' संदेश देती हैं ( पृष्ठ १२).....
जीवन का आधार यही है / निराकार साकार यही है / ईश्वर का उपहार अनुपम / धरती का शृंगार यही है / सौंदर्य इसी से सारा है / यह पर्यावरण हमारा है / जल- थल- आकाश यही है /  सूरज का दिव्य प्रकाश यही है / फूलों से सजे-धजे उपवन/ जीवों की हर श्वास यही है /
नदियों की कल-कल धारा है / यह पर्यावरण हमारा है।
" खेल पुराने " को ले कर ये लिखती हैं ( पृष्ठ १४).......
गिल्ली डंडा खेल कबड्डी /अपने पास बुलाते हैं/ चंदा मामा संग तारों के/  आसमान में आते हैं/ वीर बनो तुम ऐसे जिनको / देख के सब रह जाएं दंग / आओ बच्चों खेलें खेल पुराने/ जिनमे भरी उमंग ।
"मेला तो बस मेला है" में  अब्दुल मालिक खान के भाव देखिए ( पृष्ठ १९).......

 देख खिलौने तरह-तरह के /  बच्चे भँवरों से मँडराते  / दुकानों पर हलवाई की /  चाट पकौड़े खूब उड़ाते / हाथ किसी के है गुब्बारा / कोई खाता केला है / मेला तो बस मेला है /
कहीं हँसाता जोकर सबको /  कहीं झूमते चकरी झूले / बाजीगर के खेल तमाशे / मेले में आकर घर भूले / वो भी साहब बने फिरते हैं / जेब न जिनके धेला है / मेला तो बस मेला है।

 जाति, धर्म, भाषा के भेदभाव को भूला कर देश प्रेम का संदेश दिया है कन्हैया लाल राठौर ने अपनी कविता " हमें तिरंगा फहराना है" में ( पृष्ठ २३).......

जाति- धर्म भाषा के घेरे तोड़ / अन्याय- अत्याचार की बाँह मरोड़ / कमजोर हाथ को दे सहारा / अपना हमसफर बनाना है / हमें तिरंगा ........ / गाँधी के बन अनुयायी / सत्य मार्ग अपनाना है /  विश्वबंधुत्व की करके बात/ वसुधैव कुटुंबकम् कहना है / हमें तिरंगा फहराना है / गीत देश प्रेम के गाना है।

हिंदी भाषा के महत्व का पाठ दिखाती चैतन्य कुमार शर्मा ' चेतन ' की कविता "हिंद देश की प्यारी हिन्दी " ( पृष्ठ २८)......

हिंद देश की प्यारी हिंदी /सबके मन को भाती है / हिंदू-मुस्लिम सिख इसाई / सब में प्यार बढ़ाती है / हिंद देश की प्यारी हिंदी / जीवन के अँधियारे पथ में / ये आशा दीप जलाती है/ तेरी भाषा मेरी भाषा / स्वाभिमान जगाती है/ हिंद देश की प्यारी हिन्दी।

"  चिड़िया " कविता में जगदीश नारायण सोनी
ने कितना मनभावन लिखा है ( पृष्ठ ३१)

फुदक-फुदक कर आती चिड़िया/ डाल-डाल पर जाती चिड़िया/ चीं-चीं कर गाती चिड़िया/ मन को खूब लुभाती चिड़िया/ खतरा भाँप उड़ जाती चिड़िया /बच्चों के हाथ न आती चिड़िया/ तिनका-तिनका चुनर्ती चिड़िया/ सुन्दर नीड़ बनाती चिड़िया/ सबके मन को भाती चिड़िया / ईश्वर की अनुपम थाती चिड़िया।
  बंदरों के करतब और अठखेलियां बच्चों को ही नहीं बड़ों को भी खूब रिझाती है, तब ही तो 
" बंदर आया " कविता में तुलसी राम ' तुलसी ' लिखते हैं ( पृष्ठ ३४)..........

बंदर आया बंदर आया / सब बच्चों ने शोर मचाया / बच्चे दौड़े-दौड़े आए /उन्हें देख बंदर घबराया / लगा कूदने छत के ऊपर / दाँत दिखाकर उन्हें डराया / खाने का जब उसे दिखाया /बंदर दौड़ा-दौड़ा आया/ बंदर ने उनको समझाया / भूखा हूँ मैं पेट दिखाया/ कोई लाया रोटी बाटी / कोई दौड़ा केला लाया।
बच्चों ने अपने हाथों से /चना मूँगफली उसे खिलाया / खाकर चढ़ा पेड़ के ऊपर /  जोर-जोर से पेड़ हिलाया / इस डाली से उस डाली पर / कूद-कूद करतब दिखलाया /बंदर की अठखेलियाँ देख / सब बच्चों का मन हर्षाया।

 " चुन्नू मुन्नू गये बाजार " कविता के माध्यम से  बलराम निगम ने बच्चों को यातायात नियम पालन करने की सीख देते हुए लिखा है ( पृष्ठ ५०)..........
चुन्नू मुन्नू गये बाजार / लेकर आये छोटी कार/
घूमा उससे गाँव मोहल्ला / हॉर्न बजाकर करते हल्ला / सौ के पार हुई रफ्तार/ सिग्नल तोड़े बारम्बार / पुलिस मिली रस्ते में यार / खूब पड़ी थाने में मार/ ट्रैफिक नियम समझकर सार/  तभी चलाना फिर से कार।
 पुस्तक की शीर्षक कविता " फूल सजीले आम रसीले " में सुरेश चंद्र निगम लिखते हैं ( पृष्ठ ९४).........

बगिया में है फूल सजीले मीठे-मीठे आम रसीले / फूलों पर भँवरे है डोले / आम्रतरू पर कोयल बोले /मन को मोहे स्वर सुरीले / मीठे-मीठे आम रसीले / कलियों पर तितली मँडराती/ सखियाँ आम रसीले खाती / नाच रहे हैं मोर रंगीले / मीठे-मीठे आम रसीले ।
  कतिपय रचनाकारों की बाल कविताओं की यह बानगी अन्य रचनाकारों की कविताओं की सरसता, मिठास, भाव और भाषा शैली का प्रतिनिधित्व करती हैं। सभी ने बाल मन को लेकर जो सृजन किया है वह बच्चों के दिल में गहराई यह छू लेने वाला है।
       संपादकीय में सुरेश चंद्र निगम लिखते हैं बच्चों में हर्ष और खुशी का संचार करती, प्रेम और कर्म का भाव जगाती, प्रकृति से जोड़ती एवं नए सोच का संचार करती कविताओं का यह संग्रह अपने उद्देश्य को पूरा करेगा ।" प्राक्कथन में प्रकाश चंद्र सोनी लिखते हैं, " बच्चों में आनंद के साथ - साथ सद्भावों का संचार करने में कविताएं सार्थक हैं।"


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