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श्वैदिक धर्म के सच्चे अनुयायी एवं निष्ठावान सेवक थे भजन सम्राट पंण् सत्यपाल पथिकश्

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29 Jul 25
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श्वैदिक धर्म के सच्चे अनुयायी एवं निष्ठावान सेवक थे भजन सम्राट पंण् सत्यपाल पथिकश्

मनमोहन कुमार आर्यए देहरादून।

पंडित सत्यपाल पथिक जी का गुरुवार 22 अक्टूबरए 2020 को कोरोना रोग से अस्वस्थ होने के कारण अमृतसर के एक अस्पताल में प्रातः 9ण्15 बजे निधन हो गया था। पंण् सत्यपाल पथिक जी का संसार से जाना आर्यसमाज सहित वैदिकधर्म तथा देश एवं समाज की बड़ी क्षति थी। उनके न रहने से हम पथिक जी के श्रीमुख से साक्षात् उनकी ऋषिभक्ति से ओतप्रोत वाणी में ईश्वरए वेदए आर्यसमाज तथा ऋषि दयानन्द के गुणगान के भक्तिमय गीत सुनने से वंचित हो गये हैं। एक प्रकार से यह हम सबका दुर्भाग्य है कि हमें एक महान ऋषि एवं आर्यसमाज भक्त तथा अद्वितीय देश एवं समाज प्रेमी का वियोग सहन करना पड़ा है। आत्मा की अमरता तथा मृत्यु की निश्चितता को जानते हुए भी मन में पथिक जी के वियोग की स्मृति दूर नहीं हुई है। जब हम आर्यसमाज के कार्यक्रमों में अपने मोबाइल पर रिकार्ड की हुई उनके भजनों को सुनते हैं तो उनकी स्मृति होती है। पथिक जी एक असाधारण सच्चे व सीधे मनुष्य थे। उनके सान्निध्य को प्राप्त होने पर उनकी महानता का तब पता नहीं चलता था जब वह एक सामान्य व्यक्ति के रूप में अपने मित्रों व शुभचिन्तकों से बातें करते थे। हम भी उनके शुभचिन्तक एवं भक्त थे। उनके गीतों के शब्द हमें अमृततुल्य लगते थे। वह कोई भी गीत गाते थे तो उसमें शब्दों का जो चयन होता था उसे श्रोताओं का हृदय सुनकर झूम जाता था। हमने दो तीन दशक पूर्व भी कैसेट में टेप रिकार्डर पर उनके अनेक भजन सुने जिसे बार बार सुनकर भी दिल नहीं भरता था। ष्हमारे देश की महिमा बड़ी पुरानी है सबसे निराली है सबसे सुहानी हैष् यह कव्वाली व भजन हमने पचास बार तो सुना ही होगा। ष्हम कभी माता पिता का ऋण चुका सकते नहीं इनके जो अहसान हैं वो गिना सकते नहींष् यह भजन भी पचास से सौ बार तो अवश्य ही सुना है। उनका एक भजन है ष्कहां हो मॉं तुझे तेरे दुलारे याद करते हैं। इस भजन को स्वर दिए हैं प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक श्री जगत वर्मा जी ने। इस भजन को हमने यूट्यूब पर पच्चीस.तीस बार सुना है। ऐसे और अनेक भजन हैंं। उनके जीवनकाल में हमने टंकारा तथा गुरुकुल गौतमनगर सहित देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन आदि में उनके कुछ भजनों को अपने मोबाइल कैमरे में सुरक्षित व रिकार्ड किया था जिन्हें कई वर्षों से पैन ड्राइव को टीवी में लगाकर सुनते हैं। उनके दो भजनों का उल्लेख कर रहे हैं। एक भजन है ष्जहां ऋषि दयानन्द जन्में टंकारा वही ग्राम है। जिसकी गलियों में खेले बचपन में टंकारा वही ग्राम हैष्। यह भजन हमने 23.2.2017 को प्रातः 10ण्50 बजे टंकारा की यज्ञशाला में रिकार्ड किया था। 5 वर्ष पूर्व हम इस भजन को अपने 1 वर्ष 10 महीने के दौहित्र के साथ दिन में दो तीन बार सुनते थे। बच्चे को यह भजन सबसे अधिक प्रिय था और वह भजन के साथ श्रोताओं की तरह तालियां बजाने के साथ भजन के समाप्त होने पर पथिक जी द्वारा बोली जाने वाली ष्बोलो ऋषि दयानन्द की जयष् से पहले ही जय बोल देता था। हमें उसका ऐसा करना बहुत अच्छा लगता है। भजन चलते हुए यदि वह किसी अन्य खेल व कार्य में व्यस्त होता था तब भी उसके द्वारा ऋषि दयानन्द की जय बोले जाने पर हमें अहसास होता है कि उसका मन भजन में भी लगा रहा है। पथिक जी का एक भजन है ष्प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म होए प्रभु तुम जगत से भी विशाल होए मैं मिसाल दूं तुम्हें कौन सी दुनिया में तुम बेमिसाल हो। प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो।।ष् पंडित जी इस रचना को अपनी सबसे महत्वपूर्ण रचनाओं में स्थान देते थे। इस भजन को हमने पण्डित जी के श्रीमुख से गुरुकुल गौतमनगरए दिल्ली तथा टंकारा के ऋषि बोधोत्सव में सुना था। इसे यदा कदा हम अब भी सुना करते हैं। पंडित सत्यपाल पथिक जी से हमारी देहरादून में वैदिक साधन आश्रम तपोवनए आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौंधाए गुरुकुल गौतमनगरए दिल्लीए ऋषि बोधोत्सव़ पर परोपकारिणी सभाए अजमेर तथा ऋषि जन्म भूमि स्मारक न्यासए टंकारा में आयोजित ऋषि बोधोत्सवों सहित हरिद्वार में गुरुकुल सम्मेलन आदि कार्यक्रमों पर अनेक बार भेंट हुई थी। सभी स्थानों पर उनसे लम्बी वार्तायें होती थी। पंडित जी ने अनेक स्थानों पर हमें अपने अनेक संस्मरण भी सुनाये। कई बार हमने उनके
संस्मरणों को अपने लेखों के द्वारा फेस बुक व व्हटशप आदि के द्वारा प्रचारित भी किया। 21 फरवरीए 2020 को टंकारा में आयोजित ऋषि बोधोत्सव के अवसर भी हम पडित जी से मिले थे। वहां अनेक विषयों पर पंडित जी से लम्बी चर्चा हुई थी। उन्होंने बताया था कि नवम्बरए 2019 में वह अपने न्यूजीलैण्ड निवासी पुत्र के गृह प्रवेश में जाने हेतु दिल्ली आये थे और एक आर्य परिवार में ठहरे थे। जाने से एक दो दिन पहले उन्हें दिल्ली में रात्रि समय में हृदयघात की पीड़ा हुई थी। रात्रि को ही उन्हें अस्पताल भरती कराया गया था। इस कारण वह अपने पुत्र के गृह प्रवेश में नहीं जा सके थे। पंडित जी से यह बात सुनकर हमें कुछ डर लगा था। इसका कारण यह था कि हमें लगता था कि जिसे एक बार हृदयाघात हो जाता है उसका जीवनकाल अनिश्चित सा रहता है। इस वार्ता में अन्य अनेक विषयों पर भी पंडित जी से बाते हुई थी। पंडित जी का एक अन्य भजन है ष्डूबतो को बचा लेने वाले मेरी नयया है तेरे सहारेष्। इस भजन की रचना पंडित जी ने अपने सिंगापुर प्रवास में की थी। उन्होंने बताया था कि एक लड़की समुद्र में नौकायान कर रही थी कि अचानक किसी समुद्री लहर से उसकी नौका पलट गई और वह युवती समुद्र में डूब गई। दूर से एक जलयान के नाविक ने दूरबीन पर यह दृश्य देखा तो वह अपने जहाज को वहां ले गया और कुछ नाविको ने समुद्र में तैर कर उस युवती को ढूंढा और उसे बचा लिया। अगले दिन यह समाचार सिंगापुर के समाचार पत्रों में छपा जिसमें उस लड़की का चित्र व उसकी अनुभूतियां दी गई थीं। इस घटना की प्रेरणा से पडित जी ने एक भजन लिखा जिसके बोल हैं ष्डूबतो को बचा लेने वाले मेरी नय्या है तेरे हवाले। लाख अपनो को मैंने पुकारा सब के सब कर गये हैं किनारा। कोई और देता नहीं दिखाई अब तो तेरा ही है बस सहारा। कौन हमको भवंर से निकालेए मेरी नय्या है तेरे हवाले।ष् ऐसी अनेक घटनायें पंडित जी ने समय समय पर हमें सुनाई और हम उसी दिन व अगले दिन लेख लिखकर उसे प्रसारित कर देते थे। इन घटनाओं को सुनकर व पथिक जी का हमारे प्रति स्नेह देखकर हमें अत्यन्त प्रसन्नता होती थी। कई वर्ष पहले तपोवन के एक उत्सव की
समाप्ति पर हम पथिक जी के साथ भूमि में घांस पर बैठकर लगभग दो घंटे तक बातें करते रहे थे। वह क्षण याद कर उन स्वर्णिम पलों की ओर मन आकर्षित होकर भावनाओं में बह जाता है। ऐसी अनेक यादें हैं जो यदा कदा मन में आती हैं। अब पण्डित जी के वीडियो भजन व बीते क्षणों को याद कर ही हम सन्तोष करते हैं। पंडित जी की ऋषि भक्ति भी अद्वितीय थी। उनमें अहंकार नाम की चीज किंचित भी नहीं देखी गई। वह अत्यन्त विनम्र और सभी ऋषिभक्तों से प्रेम करने के साथ सबका आदर भी करते थे। गुरुकुल के आचार्य धनंजय जी ने बातचीत में हमें बताया था कि पथिक जी गुरुकुल के उत्सव में आते थे। निवास की अनुकूल सुविधा न होने पर भी वह कहते थे कि कहीं भीतर या बाहर बिस्तर लगा दो जिससे थोड़ा आराम कर सकें। कमरे व पृथक शय्या का आग्रह उन्होंने कभी नहीं किया। दक्षिणा पर भी उन्होंने कभी किसी समारोह में अधिकारियों से विवाद नहीं किया। दक्षिणा मिल गईए कम व अधिक मिली व नहीं मिलीए सब स्थितियों में वह सन्तोष करते थे। हमने ऐसा भी देखा कि पंडित जी किसी उत्सव में पहुंचे। वहां दूसरे भजनोपदेशकों कोबुलाया गया था। पंडित जी को वहां किसी भी कार्यक्रम में भजन प्रस्तुत करने का समय नहीं दिया गया। हमें इस बात से पीड़ा हुई परन्तु पंडित जी ने किसी से कुछ नहीं कहा। 5 वर्ष पूर्व दिनांक 24.10.2020 को हमें आगरा के आर्य विद्वान श्री उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का फोन आया था। उन्होंने बताया था कि पथिक जी का निधन का समाचार सुनकर वह दुःखी हैं। उन्होंने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा था कि तपोवनए देहरादून में उन्होंने ;पंण् उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी नेद्ध प्रवचन में कोई सिद्धान्त विषयक अशुद्ध बात कह दी थी। कार्यक्रम के बाद पथिक जी व कुलश्रेष्ठ जी आश्रम की पर्वतीय इकाई से नीचे वाले आश्रम में लौटे और अपने कमरे में गये। दोनों का कमरा एक ही था। पथिक जी ने अपने थैले से सत्यार्थप्रकाश निकाला और ऋषि के कुछ वाक्य पढ़ने को कहा। कुलश्रेष्ठ जी ने वह वाक्य पढ़े तो उन्हें ज्ञात हुआ कि वस्तुतः उन्होंने सिद्धान्त विरुद्ध कुछ कहा है। कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि मैंने अपनी गलती स्वीकार कर ली और भविष्य के लिए सुधार कर लिया। इस सैद्धान्तिक दृणता का वर्णन कर कुलश्रेष्ठ जी ने पथिक जी की प्रशंसा की और उनकी विनम्रता व सरलता को स्मरण किया था। पथिक जी ने कुलश्रेष्ठ जी को अपने साथ सत्यार्थप्रकाश रखने की प्रेरणा भी की थी।

पंण् सत्यपाल पथिक जी का संक्षिप्त परिचय भी हम अपने मित्र पाठकों के लिये प्रस्तुत कर रहे हैं। पंडित सत्यपाल पथिक जी का जन्म 13 मार्चए 1938 को ग्राम दुलभ कालवां तहसील पसरूरए जिला स्यालकोटए जो अब पाकिस्तान में हैए हुआ था। पंडित जी के पिता का नाम श्री लालचन्द जी तथा माता जी का नाम श्रीमती कर्मदेवी था। देश विभाजन होने पर पंडित जी अपने परिवार सहित भारत आ गये और अमृतसर में निवास किया। बालक सत्यपाल जी के ग्राम में श्री देसराज जी आर्य एक आर्यसमाजी बन्धु थे। पंडित जी के पिता पर श्री देसराज जी आर्य का कुछ कुछ रंग चढ़ गया जो पंडित सत्यपाल जी के लिए वरदान सिद्ध हुआ। पंण् बनवारीलाल जी शारदा ने लगभग चैदह वर्ष की आयु में पंण् सत्यपाल जी का यज्ञोपवतीत संस्कार करवाया था और उन्हें आर्यसमाज की दीक्षा दी थी। अनेक आर्यसमाजों के उत्सवों पर शारदाजी ने पंडित जी को अपने साथ रखा तथा उन्हें वैदिक विद्वानों तथा संन्यासियों के दर्शन करवाये। इसी से पंण् सत्यपाल जी की ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज में निष्ठा उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होती गई। आपने लगभग 60 वर्षों तक वैदिक धर्म व आर्यसमाज का प्रचार कार्य किया। पंडित जी का अमृतसर में अपने निवास पर निजी पुस्तकालय अत्यन्त समृद्ध था। उस पुस्तकालय में 3500 से अधिक पुस्तकें थी। आपने हिन्दीए संस्कृतए अंग्रेजीए उर्दूए पंजाबीए गुजरातीए मराठी आदि भाषाओं में वैदिक धर्म विषयक साहित्य का अध्ययन किया था। वेद मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण पर आप विशेष बल देते थे। पंडित सत्यपाल पथिक जी का विवाह 10 अप्रैलए 1962 को अमृतसर वासी श्री कृपाराम एवं श्रीमती नन्तीदेवी जी की सुपुत्री माता कृष्णावन्ती जी के साथ हुआ था। माता कृष्णावन्ती जी पथिक जी से कुछ वर्ष पूर्व दिवंगत हो गईं थीं। पंडित जी के तीन पुत्र हैं। पंडित जी ने सभी पुत्रों को उत्तम शिक्षा एवं संस्कार दिये हैं और संस्कारित परिवार की कन्याओं से उनके विवाह कराये हैं। पंडित जी ने अपने परिवार का पालन पोषण करते हुए अपनी संस्कृत की योग्यता को भी बढ़ाया और संस्कृत की कुछ परीक्षायें भी दीं थी। सन् 1982 में आपने पौरोहित्य का काम छोड़ दिया था और गीत व भजनों की रचना करने के साथ भजनोपदेशक के रूप में पूर्णकालिक आर्यसमाज की सेवा आरम्भ की थी। आपने देशभर की आर्यसमाजों में जाकर भजन व प्रवचनों सहित यज्ञ के ब्रह्मा बन कर भी आर्यसमाज की सेवा की। वैदिक साधन आश्रम के अक्टूबरए 2019 के शरदुत्सव के वेद पारायण यज्ञ के ब्रह्मा आप ही थे। हमें भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। पंडित सत्यपाल पथिक जी ने आर्य गीतकार व भजनोपदेशक पंण् श्री प्रकाश जी कविरत्नए कुंवर सुखलाल आर्यमुसाफिरए पंण् देशराज जी आर्यए पंण् नन्दलाल आदि आर्य कवियों से प्रेरणा प्राप्त कर सन् 1956 से भजन लिखना प्रारम्भ किया था। आपके भजनों के बिना आर्यसमाजों के उत्सव पूर्ण नहीं होते थे। आपने हिन्दी तथा पंजाबी भाषा में जो भजन लिखे व गायेए वह सब आर्य वैदिक सिद्धान्तों पर खरे उतरते हैं। आर्यसमाज में विगत तीन चार दशकों में आपकी कैसेट्स तथा सीडी भी बहुत लोकप्रिय हुईं। यह हम सबकी प्रसन्नता का विषय है कि आपके पुत्र श्री दिनेश आर्य पथिक जी भजनोपदेशक का पूर्णकालिक दायित्व लेकर पिछले लम्बे समय से आर्यसमाज का प्रचार कर रहे हैं। श्री दिनेश पथिक जी आर्यसमाज के उच्च कोटि के प्रतिष्ठित भजनोपदेशक हैं। हमने दिनेश जी के भजन टंकाराए तपोवन तथा गुरुकुल देहरादून सहित यूट्यूब पर सुने हैं तथा उनसे वार्ता भी की है। पथिक जी का समय समय पर अनेक आर्यसमाजों में सम्मान किया गया है। इसमें श्री घूडमल प्रहलादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यासए हिण्डौन सिटी भी सम्मिलित है। स्वामी रामदेव जी ने पतंजलि योगपीठ की ओर से भी आपको एक लाख की धनराशि देकर सम्मानित किया था। पथिक जी के सभी भजनों का संग्रह ऋषिभक्त कीर्तिशेष श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने ष्पथिक भजन सर्वस्वष् नाम से दो खण्डों में प्रकाशित किया है। इस ग्रन्थ से पंडित जी अमर हो गये हैं। हम आशा करते हैं कि समय समय पर इस ग्रन्थ के नये संस्करण प्रकाशित होते रहेंगे और आर्य पाठकगण पथिक जी के प्रति अपनी श्रद्धा को इस ग्रन्थ को खरीदकर व इसे पढ़कर व्यक्त करेंगे। आर्यसमाज में अमर स्वामी परिव्राजक तथा स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती आर्यसमाज के दो प्रमुख संन्यासी हुए हैं। अमर स्वामी जी की पंण् सत्यपाल पथिक जी के विषय में सम्मति थी ष्मैं कई वर्षों से पंण् सत्यपालजी ष्पथिकष् को जानता हूं और उनके गीतों को कई वर्षों से सुनता रहा हूं। मैंने उनको कई बार प्रेरणा की है कि वे अपने गीतों की पुस्तकें अधिक संख्या में छपाया करें जिससे वह बहुत मनुष्यों के पास पहुंच सकें। उनके गीत मुझ को बहुत पंसद आते हैं।ष् स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी ने पथिक जी के विषय में लिखा है ष्ष्मैंने ष्पथिक भजनानन्दष् पुस्तक के भजनों का अवलोकन किया है। मुझे वह अच्छे प्रतीत हुए। सीधी सादी भाषा में मानव जीवन को उन्नत करने वाले सन्देश इन भजनों में भरे हुए हैं। निश्चय ही ये भजन जन कल्याण में सहायक होंगे।श् हम परम ऋषिभक्त एवं वैदिक धर्म के अनन्य सेवकए प्रचारक एवं समर्पित विद्वानए गीतकारए भजन गायक एवं पुरोहित पंण् सत्यपाल पथिक जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आर्यसमाज के अधिकारी व सदस्य पंडित जी के जीवन एवं व्यवहार से शिक्षा एवं प्रेरणा ग्रहण कर शुद्ध व पवित्र आचरण के धनी बनेंए ऐसा करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि प्रतीत होती है। ओ३म् शम्।


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