GMCH STORIES

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप है शौर्य, वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता के प्रतीक

( Read 1159 Times)

29 May 25
Share |
Print This Page
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप है शौर्य, वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता के प्रतीक

*-वासुदेव देवनानी-

भारत में प्रत्येक वर्ष वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती बड़े गर्व के साथ अंग्रेजी तिथि अनुसार 9 मई को मनाई जाती है लेकिन, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इसे प्रति वर्ष ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया को श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है। जोकि इस वर्ष 29,मई 2025 के दिन है ।महाराणा प्रताप जयंती पर उनके महान जीवन और बलिदान का सम्मान करने के लिए देश दुनिया में विभिन्न श्रद्धांजलि कार्यक्रम और अन्य विविध समारोह आयोजित किए जाते हैं। 

महाराणा प्रताप भारत के इतिहास में शौर्य, वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता एवं राष्ट्र की एकता और अखंडता के प्रतीक हैं। वे न सिर्फ एक महान योद्धा थे,बल्कि आत्मसम्मान और देश भक्ति की बेजोड़ मिसाल है। विशेष कर हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप की युद्ध शैली आज भी प्रासंगिक है। भारत-पाकिस्तान के वर्तमान संदर्भ में भी इसे देखा और परखा गया है।

हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन सिन्दूर और भारत पाकिस्तान के मध्य चार दिनों तक चली सैन्य कार्यवाही में मिली ऐतिहासिक कामयाबी के बाद पंजाब से सटी भारत-पाक सीमा पर स्थित आदमपुर एयरबेस पर भारतीय सैनिकों को अपने जौश भरे संबोधन में महाराणा प्रताप के बहादुर घोड़े चेतक की गति और सटीक वार से आधुनिक भारतीय  हथियारों से दिलचस्प तुलना की और कहा कि ‘ये पंक्तियां चेतक के लिए लिखी गई थीं – ' कौशल दिखलाया चालों में, उड़ गया भयानक भालों में…राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था' लेकिन ये बात आज के आधुनिक भारतीय हथियारों पर भी फिट बैठती हैं। उनका इशारा साफ था कि भारत की टेक्नोलॉजी, उसकी रणनीति और उसकी सेना अब सिर्फ ‘रक्षात्मक’ नहीं रही, बल्कि ‘आक्रामक रक्षा’ की नई परिभाषा बन गई है । इतिहासकारों ने भी महाराणा प्रताप को हिंदुआ सूरज के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने बताया कि महाराणा प्रताप आज भी हमारे आन, बान और शान के प्रतीक हैं। भारत-पाकिस्तान के वर्तमान संदर्भ में भी कहा गया है कि भारत आज भी महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की तीव्र गति और सटीक प्रतिघात तथा छापामार गुरिल्ला युद्ध शैली को अपना रहा है।

महाराणा प्रताप का जीवन हर किसी को यह सिखाता है कि स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए किया गया संघर्ष हमेशा इतिहास में अमर रहता है। वे आज भी भारतवासियों के दिलों में जीवित हैं। महाराणा प्रताप की नीतियां शिवाजी महाराज से लेकर ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष करने वाले प्रत्येक स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई नेताओं ने महाराणा प्रताप को प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया। वीर सावरकर, बाल गंगाधर तिलक  और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता उनके बलिदान से प्रभावित थे। उन्होंने महाराणा प्रताप को भारत के स्वराज्य और आत्मसम्मान की सबसे बड़ी मिसाल माना। आज भी विभिन्न राजनीतिक दल,सामाजिक संगठन और राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़ा हर व्यक्ति महाराणा प्रताप के नाम का आदरपूर्वक उल्लेख करते हैं। इस प्रकार आधुनिक भारत में भी महाराणा प्रताप की प्रासंगिकता लेशमात्र भी कम नहीं हुई है।यही कारण है कि महाराणा प्रताप का जीवनकाल भले ही सोलहवीं सदी में सीमित रहा हो, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारत के जन-मन में जीवित है। उनका नाम मात्र सुनते ही शौर्य, स्वतंत्रता,आत्मसम्मान और राष्ट्रप्रेम की भावना जाग जाती है। उन्होंने जो श्रेष्ठ आदर्श स्थापित किए, वे न केवल इतिहास में अमर हैं, बल्कि आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। महाराणा प्रताप के संघर्ष और बलिदान ने भारतीय इतिहास की दिशा ही बदल दी। 1576 में  हुए इतिहास में प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध के बाद उनका जीवन मुगलों के विरुद्ध लगातार संघर्ष की मिसाल बन गया। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध  दिवेर युद्ध (1582 ) विजय कर यह दिखा दिया कि कोई भी शक्ति,चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो,सच्चे संकल्प और स्वतंत्रता के जज़्बे को पराजित नहीं कर सकती। आज जब दुनिया समझौतों और सुविधा की ओर भाग रही है, महाराणा प्रताप की विरासत हमें  कर्तव्यों पर टिके रहने, अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने और मातृभूमि के लिए बलिदान देने का संदेश देती है। उन्होंने नेतृत्व का ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया कि वे खुद भूखा रहे लेकिन अपनी प्रजा को सदैव सुरक्षित रखा। राजनीतिक स्वाभिमान की ऐसी मिसाल रखी जिसमें कई त्याग और बलिदान देने के बावजूद अपना और राष्ट्र का आत्मसम्मान कभी नही छोडा। सामाजिक समरसता को मजबूत बनाते हुए वे हर वर्ग और हर धर्म और हर जाति को साथ लेकर चले। प्रताप को केवल योद्धा नहीं, एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। उनकी छवि एक ऐसे शासक की है जिसने कला और संस्कृति का सम्मान किया। युद्ध में नैतिक मर्यादाओं का पालन किया और कभी पराजय को स्थायी नहीं माना।

महाराणा प्रताप की विरासत केवल अतीत की धरोहर नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए दिशा देने वाली एक बेजोड़ मशाल है। उनकी गाथा हमें याद दिलाती है कि सच्चा नेतृत्व वही होता है जो अपने लोगों के लिए,अपनी धरती के लिए और अपने मूल्यों के लिए अडिग खड़ा रहे  चाहे उसके सामने कैसी भी ताकत खड़ी हो।महाराणा प्रताप केवल एक ऐतिहासिक योद्धा नहीं थे, वे भारत की आत्मा, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की चेतना का अमर प्रतीक हैं। उनके जीवन का हर पहलू संघर्ष, धैर्य, आत्म बलिदान और अडिग संकल्प एवं स्वाभाविक का परिचायक है। उन्होंने भले ही राजनीतिक रूप से बड़े मुगल सम्राट अकबर के साम्राज्य को चुनौती दी हो, पर उनका असली युद्ध अपने सिद्धांतों को जिंदा रखने का था और वह युद्ध उन्होंने पूरी निष्ठा और आत्मबल से लड़ा। महाराणा प्रताप ने उस दौर में स्वतंत्रता की अलख जगाई, जब अधिकांश राजाओं ने समर्पण को अपनी नीति मान लिया था। उन्होंने किसी सम्राट की अधीनता स्वीकार नहीं की, चाहे इसके लिए उन्हें जंगलों की खाक छाननी पड़ी,भूखे रहना पड़ा, अपने परिवार को जंगलों में छिपा कर रखना पड़ा या फिर राजमहलों की सुख-सुविधाए छोड़नी पड़ी। उनकी सोच थी “राजा वही जो स्वतंत्र रहे, न कि वह जो केवल नाम का राजा हो।” यह भावना आगे चलकर भारत की आज़ादी की लड़ाई की आधारशिला भी बनी।

महाराणा प्रताप का जीवन इस बात का उदाहरण है कि आत्मसम्मान के लिए जीना और मरना ही सच्चे शासक की पहचान है। जब उनके पास अकबर के दरबार से संधि के प्रस्ताव आए, तो उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया क्योंकि वे जानते थे कि यह संधि उनके आत्मसम्मान की कीमत पर होगी। यह संकल्प आज भी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो कठिनाइयों से डरता है या सुविधा की खातिर समझौता करता है। महाराणा प्रताप ने दिखाया कि एक सच्चा नेता वह होता है जो सबसे आगे खड़ा रहता है, सबसे पहले त्याग करे और सबसे अंत तक डटा रहे। उन्होंने न केवल ऐतिहासिक युद्ध लड़े, बल्कि अपनी प्रजा के लिए हर तकलीफ को भी सहा। वे खुद भूखे थे, लेकिन अपनी सेना को भोजन देना नहीं भूले। उन्होंने सत्ता को सेवा का माध्यम बनाया, स्वार्थ का नहीं।

राजस्थान में ही नहीं संपूर्ण भारत और विश्व में महाराणा प्रताप को जिस श्रद्धा से देखा जाता है, वह केवल उनकी वीरता के लिए नहीं, बल्कि उनके जीवन मूल्यों और अडिग सिद्धातों के लिए माना जाता है। उन्होंने अपनी मातृभूमि, अपनी संस्कृति और अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए हर वो त्याग किया जिसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता। वे न केवल राजपूत गौरव के प्रतीक थे, बल्कि सच्चे अर्थों में भारतीयता की आत्मा के भी संरक्षक हैं। राजस्थान के लोकगीतों, कहावतों और किस्सों  कहानियों में महाराणा प्रताप की वीरता अमर है। उनका जीवन पाठ्यक्रमों में केवल इतिहास का विषय नहीं, बल्कि नेतृत्व, संकल्प और नैतिकता की शिक्षा देने के लिए शामिल किया गया है। उनका नाम बच्चों के नामकरण से लेकर कविताओं और नाटकों तक में लिया जाता है। 'ऊंचो थारो नाम रे मेवाड़ रा राणा’ जैसे गीत सभी को राष्ट्र प्रेम के लिए  प्रेरित करते है।

दक्षिणी राजस्थान  के मेवाड़ अंचल में उदयपुर राजसमंद के मध्य स्थित ऐतिहासिक हल्दीघाटी में चेतक स्मारक,आदिवासी अंचल चावंड में उनकी समाधि और झीलों की नगरी उदयपुर में महाराणा प्रताप स्मारक संग्रहालय उनकी स्मृति को जीवंत बनाए हुए हैं। भारत के संसद भवन परिसर में महाराणा प्रताप की चेतक घोड़े पर सवार अपने प्रमुख साथियों झाला मान,राणा पूंजा,सेनापति हकीम खा सूर और दानवीर भामाशाह के साथ प्रतिमाएं हम सभी को गौरवांवित करती है।

राजधानी नई दिल्ली सहित भारत के कई स्कूलों,कॉलेजों और विश्वविद्यालयों, बस, रेल, हवाई अड्डा और अन्य प्रमुख भवनों के नाम महाराणा प्रताप के नाम से रखे गए हैं जिसमें महाराणा हवाई अड्डा, उदयपुर, महाराणा प्रताप विश्वविद्यालय, उदयपुर, कई राज्यों में स्थापित महाराणा प्रताप कॉलेज और यूनिवर्सिटी आदि प्रमुख है । एनसीईआरटी और राज्य बोर्ड की किताबों में महाराणा प्रताप पर विशिष्ट अध्याय शामिल किए गए है। मैने भी अपने शिक्षा मंत्री के कार्यकाल में राजस्थान के स्कूल पाठ्यक्रम में मुगल सम्राट अकबर के स्थान पर महाराणा प्रताप महान और अन्य महापुरुषों के अध्याय शामिल कराए थे।

 

आज जब दुनिया सुविधाओं और तात्कालिक लाभों की ओर भाग रही है, महाराणा प्रताप का जीवन हमें ठहरकर सोचने को मजबूर करता है कि क्या हम अपने नैतिक जीवन मूल्यों पर टिके हुए हैं तथा क्या हम अपने सिद्धांतों की रक्षा कर रहे हैं? क्या हम अपने समाज और राष्ट्र के लिए कुछ त्याग कर पा रहे हैं? महाराणा प्रताप का जीवन हमें यह सीख देता है कि सफलता केवल जीत में नहीं, बल्कि अपने सही रास्ते और सिद्धानों पर टिके रहने में है।महाराणा प्रताप कोई संग्रहालय का विषय नहीं हैं। प्रताप आज भी हर देशवासी के दिल दिमाग में ज़िंदा हैं । हर छात्र की किताब में, हर सेनानी की प्रेरणा में, और हर उस व्यक्ति के मन में जो अन्याय से लड़ना चाहता है। महाराणा प्रताप के  नाम पर बने स्मारक, सड़कें, संस्थान सिर्फ इमारतें नहीं बल्कि, एक विचार हैं कि कोई भी दृढ़ संकल्पित व्यक्ति परिस्थितियों से भी बड़ा बन सकता है। महाराणा प्रताप का जीवन एक सीधा और स्पष्ट संदेश देता है:“सच्चा राजा वह है जो न झुके, न टूटे और न बिके।”

मैरे राजस्थान के शिक्षा मन्त्री के अपने कार्यकाल जे दौरान स्कूल शिक्षा पाठ्यक्रम में अकबर के स्थान पर महाराणा प्रताप महान चैप्टर को शामिल करवा कृतज्ञ राष्ट्र की भावनाओं को उजागर करने का प्रयास किया था और मैरा महाराणा प्रताप के साथ ही देश के अन्य महापुरुषों की जीवनी को भी स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का एक स्तुत्य प्रयास भी रहा था ।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने भारत के इतिहास में जो बेजोड़ और अनूठा स्थान बनाया है, वह केवल अपनी तलवार और भाले की धार से नहीं, बल्कि अपने आत्मबल, संकल्प, निष्ठा और राष्ट्र प्रेम से बना है।  महाराणा प्रताप का जीवन आज भी सभी को प्रेरणा देता है। देश की नई पीढ़ी को महाराणा प्रताप के शौर्य, वीरता, स्वाभिमान और स्वतंत्रता एवं राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए मर मिटने और उनके आदर्शों को आत्मसात करने की शिक्षा लेनी चाहिए। आज जब हम राष्ट्र और समाज के निर्माण और विकास में जुटे हैं, तब महाराणा प्रताप की तरह निडर, आत्मसम्मानी और न्यायप्रिय बनना ही उनके प्रति हम सभी की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like