श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, देहरादून का तीन दिवसीय रजत जयन्ती समारोह शुक्रवार दिनांक 30 मई, 2025 को सोल्लास आरम्भ हुआ। प्रातः 7.00 बजे से गुरुकुल की भव्य यज्ञशाला में चार यज्ञ वेदियों पर आचार्य योगेन्द्र याज्ञिक जी के ब्रह्मत्व में चतुर्वेद पारायण यज्ञ जारी रहा। यज्ञ में मन्त्रोच्चार गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने किया। यज्ञ वेदियों के चारों ओर यजमानों सहित देश के अनेक भागों से पधारे बड़ी संख्या में ऋषिभक्त उपस्थित रहे। यज्ञ के ब्रह्मा जी भी यज्ञ के मध्य में वेदमन्त्रों के रहस्यों व अर्थों को आर्यजनता को अवगत कराते रहे। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य योगेन्द्र याज्ञिक जी ने कहा कि जीवन में अन्ध-परम्पराओं में डूबकर मत रहना। उन्होंने जीवन में रूढ़िवादिता को समाप्त करने का आह्वान किया। यज्ञ की समाप्ति पर गुरुकुल के एक ब्रह्मचारी ने एक भजन प्रस्तुत किया। इसके बाद ध्वजारोहण का कार्यक्रम वेदमन्दिर के प्रांगण में सहस्रों की संख्या में उपस्थित ऋषिभक्तों के सम्मुख सम्पन्न किया गया।
ध्वजारोहण में राष्ट्रीय प्रार्थना सहित ध्वज गीत का गान हुआ। ध्वजारोहण स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी सहित परोपकारिणी सभा के मंत्री श्री कन्हैयालाल आर्य जी ने किया। श्री कन्हैया लाल जी एवं गुरुकुल के आचार्य डा. धनंजय आर्य जी ने इस अवसर पर संक्षिप्त सम्बोधन भी दिया। ध्वजारोहण के पश्चात उद्घाटन समारोह का आयोजन विशेष रूप से तैयार किये गये पण्डाल में हुआ। इस सम्मेलन को स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती, स्वामी आर्यवेश जी, श्री विट्ठलराव आर्य, श्री विनय आर्य जी, आचार्य वाचस्पति जी, देशबन्धु आर्य, श्री कन्हैया लाल आर्य आदि विद्वानों ने सम्बोधित किया। इस उद्घाटन समारोह का संचालन गुरुकुल के युवा स्नातक श्री रवीन्द्र आर्य ने किया। इसके बाद स्वाध्याय सम्मेलन, संस्कार सम्मेलन सम्पन्न किए गये।
रात्रि में भजनों एवं गीतों के माध्यम से आर्य हुतात्माओं को श्रद्धांजलि दी गई। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता अन्तर्राष्ट्रीय आर्य कवि श्री सारस्वत मोहन मनीषी जी ने की। उन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी में कई कवितायें प्रस्तुत कीं। श्रोताओं ने मनीषी जी की कविताओं को पसन्द किया और इसके समर्थन में बीच-बीच में करतल ध्वनि की। गुरुकुल पौंधा का यह समारोह देहरादून में आर्यसमाज के 146 वर्षों के इतिहास में अभूतपूर्व रहा। देश भर से सहस्रों की संख्या में ऋषिभक्त स्त्री व पुरुष इस आयोजन में सम्मिलित हुए। प्रमुख विद्वानों में डा. रघुवीर आर्य, स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, आचार्य सत्यजित् आर्य रोजड़, डा. सुरेन्द्र कुमार जी मनुस्मृति के भाष्यकार, डा. वेदपाल जी, डा. ज्वलन्तकुमार शास्त्री, डा. सोमदेव शास्त्री मुम्बई, स्वामी ऋतस्पति जी, आचार्य विरजानन्द दैवकरणि, डा. प्रीति प्रियदर्शिनी वाराणसी, डा. सूर्यादेवी चतुर्वेदा, डा. धारणा याज्ञिकी, स्वामी आदित्य वेश, डा. आनन्द कुमार जी, डा. बलबीर आर्य जी, श्री योगानन्द शास्त्री दिल्ली, आचार्या डा. अन्नपूर्णा आदि सम्मिलित हैं। ओ३म् शम्।