मंगलमूर्ति भगवान श्री हनुमानजी कलियुग में भक्तों की रक्षा, मनोकामनाओं की पूर्ति, कष्टों से मुक्ति और जीवन का आनंद देने वाले देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं जो थोड़ी सी भक्ति करने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
यही वजह है कि ग्राम-ग्राम, नगर-नगर और ढाणियों से लेकर महानगरों तक मिलने वाले सर्वाधिक मंदिर बजरंग बली के ही होते हैं। कोई क्षेत्र ऎसा नहीं होता है जहाँ हनुमानजी का मन्दिर न हो।
इसी तरह का एक आस्था स्थल जोधपुर से लगभग 80 किलोमीटर भीकमकोर क्षेत्र में मुख्य मार्ग पर अवस्थित है। सिद्ध पीठ श्री इच्छापूर्ण बालाजी ओसियां के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर लोक श्रद्धा का केन्द्र है। इसमें भगवान श्री हनुमान जी की भीमकाय मूर्ति है।
इस धाम की स्थापना के पीछे विस्मयकारी किम्वदन्ती सुनने को मिलती है। मन्दिर में अंकित लेख के अनुसार इस क्षेत्र के ओमप्रकाश विश्नोई नामक भक्त को कुछ वर्ष पूर्व रात्रि में किसी के विचरण करने की आहट के साथ दिव्य प्रकाश पुंज दिखा जिसमें हनुमानजी की प्रतिमूर्ति नज़र आ रही थी। यह दिव्य आभापुंज एक स्थान पर आकर ठहरा और कुछ देर बाद गायब हो गया।
इसके बाद भक्त ने इसे हनुमानजी की आज्ञा मानकर इस स्थल पर पाषाण स्थापित कर पूजन शुरू कर दिया। बाद में इसकी ख्याति दूर-दूर तक होने लगी और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होने लगी। इसके बाद से ही मन्दिर निर्माण का कार्य किया गया और भव्य मन्दिर बना।
ऊँचे शिखरों वाले इस मन्दिर में विभिन्न दीवारों पर देवी-देवताओं की लीलाओं का अंकन है तथा विस्तृत परिक्रमा स्थल में देवी-देवताओं व भगवान विष्णु के अवतारों की कई आकर्षक मूर्तियाँ है। मंदिर के मुख्य द्वार से लेकर हर भाग में सम्मोहक पाषाण शिल्प और कलाकृतिपूर्ण स्तंभ आदि हैं जो आकर्षण बिखेरते रहे हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना भगवान बालाजी के सम्मुख प्रकट करते हैं तथा वृक्ष पर लाल ध्वज बांध देते हैं। मान्यता है कि इससे इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
मुख्य मंदिर भगवान इच्छा पूर्ण बालाजी का है जिसमें प्रतिष्ठित विशालकाय हनुमान मूर्ति जनास्था का सागर उमडती है। मंदिर में अखण्ड दीपक भी प्रज्वलित है। दूर-दूर से भक्तजन यहाँ आते हैं और हनुमानजी के दरबार में अपनी इच्छाएं निवेदित करते हैं। इच्छापूर्ण बालाजी हनुमान सभी भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। हाल के वर्षों में यह मन्दिर भव्य स्वरूप में आ गया है जहाँ श्रद्धालुओं का तांता रहने लगा है।