उदयपुर। भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-आईआईएचआर), बैंगलुरू ने राजस्थान में जनजातीय किसानों को सीताफल की खेती के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए परियोजना तैयार की है। इस परियोजना का उद्देश्य सीताफल की गुणवत्ता में सुधार और उपज में वृद्धि करना है। परियोजना की कुल वित्तीय भागीदारी ₹225.0 लाख है।
लोकसभा में सांसद डॉ. मन्नालाल रावत द्वारा पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने बताया कि यह योजना राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के तहत प्रस्तावित है। परियोजना में चार उद्देश्य शामिल हैं—सीताफल की उन्नत किस्मों का प्रदर्शन, पुराने फलोद्यानों का पुनरुद्धार, प्रसंस्करण क्षमता का विकास, और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का अध्ययन।
सांसद रावत ने पहले केंद्रीय कृषि मंत्री और आईसीएआर महानिदेशक को पत्र लिखकर अरावली पर्वत श्रृंखला में उगने वाले सीताफल के पेड़ों की गुणवत्ता सुधारने और उत्पादकता बढ़ाने का सुझाव दिया था। उन्होंने टिश्यू कल्चर पद्धति अपनाने और सीताफल को व्यावसायिक फसल के रूप में विकसित करने का आग्रह किया था। सांसद ने बताया कि क्षेत्र में सीताफल उत्पादन से लगभग 25,000 भील व गरासिया जनजाति परिवारों को अतिरिक्त आय मिलती है और यह परियोजना स्थानीय आजीविका का प्रमुख साधन बन सकती है।