हरिद्वार इंटरसिटी स्व. हनुमानदास गोयल की दूरदर्शी सोच की वजह से मिली थी

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11 Aug 25
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हरिद्वार इंटरसिटी स्व. हनुमानदास गोयल की दूरदर्शी सोच की वजह से मिली थी

श्रीगंगानगर,लंबे समय तक रेल सुविधाओं के लिए संघर्ष करने वाले हनुमानदास गोयल (खासपुरिया) अब इस दुनिया में नहीं रहे। विगत गुरुवार 7 अगस्त की सुबह लगभग 11 बजे उन्होंने 83 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली और शुक्रवार को वे पंचतत्व में विलीन हो गए।
 निकटवर्ती पंजाब के अबोहर में लंबे समय तक किरयाना व्यवसाय से जुड़े रहे श्री गोयल कुछ वर्ष पूर्व परिवार सहित श्रीगंगानगर आ गए थे। मूलतः हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के गांव खासपुर के रहने वाले श्री गोयल ने इस इलाके में रेल एडवाइजर के तौर पर जबरदस्त ख्याति हासिल की। खासपुर गांव का निवासी होने के कारण इस परिवार को खासपुरिया परिवार के नाम से जाना जाता रहा है।
रेलवे में संभवतः सर्वाधिक सक्रिय सदस्य के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले स्वतंत्र पत्रकार व जेडआरयूसीसी के पूर्व सदस्य भीम शर्मा के अनुसार अपने जीवन के बहुत महत्वपूर्ण पल रेलवे को देने वाले दिवंगत गोयल साहब के बारे में बहुत कम लोग यह जानते है कि श्रीगंगानगर से हरिद्वार के बीच चलने वाली इंटरसिटी ट्रेन के पीछे गोयल साहब की बड़ी ही सकारात्मक व दूरदर्शी सोच ने काम किया जो सफल हुआ। बात उन दिनों की है जब रेलवे बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन श्री अशोक भटनागर साहब को तत्कालीन राज्यसभा सांसद व पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष स्वण् वीरेंद्र कटारिया साहब श्रीगंगानगर लाए थे। यह अवसर था श्रीगंगानगर-चंडीगढ़ इंटरसिटी के शुभारंभ का। उस समय श्रीगंगानगर के एक नं. प्लेटफार्म से मीटरगेज की गाड़ियों का संचालन होता था।
इसी प्लेटफार्म पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान कटारिया साहब ने रेलवे बोर्ड चेयरमैन से कहा कि भटनागर साहब, हमारे यहां लोहड़ी के नाम पर मांगने की परम्परा है, आज लोहड़ी है। आप हमें हरिद्वार के लिए एक ट्रेन देने की मेहरबानी और कर दें तो यहां की जनता जब भी हरिद्वार पहुंचकर गंगा जी में डुबकी लगाएगी तो आपको याद करेगी। मंच से रेलवे बोर्ड चेयरमैन ने मुस्कुराते हुए केवल आश्वासन दिया था। करीब 4 महीने बीतने पर रिपोर्ट आने लगी कि चंडीगढ़ इंटरसिटी को पर्याप्त यात्रीभार नहीं मिल रहा है और रेलवे बोर्ड 6 महीने की ‘‘नेगेटिव ऑक्यूपेंसी रिपोर्ट’’ के आधार पर ट्रेन को बंद कर सकता है।
ऐसे में श्री गोयल ने श्री कटारिया से जुड़े भीम शर्मा से कहा कि भीम जी, ये ट्रेन बंद होने से अच्छा है कि अगर इसी को चंडीगढ़ की जगह हरिद्वार के लिए चलवा लिया जाए। इस समय ट्रेन का अंबाला तक का पाथ, ट्रेन का रैक सब हाथ में है। हरिद्वार जाने की कोई ट्रेन भी नहीं है। (उन दिनों बाड़मेर-कालका ट्रेन में  हरिद्वार के लिए कुछ कोच लगते थे जो अंबाला में दूसरी ट्रेन के साथ जोड़कर हरिद्वार भेजे जाते थे)। भीम शर्मा के अनुसार गोयल साहब की इस आइडियालॉजी को श्री कटारिया साहब के सामने रखा तो वे बड़े प्रसन्न होते हुए तुरंत सक्रिय हो गए और दिल्ली में फिर भटनागर साहब के पास पहुंच गए। भटनागर साहब ने भी तुरंत कमर्शियल विभाग से जानकारी मंगवा हरिद्वार इंटरसिटी के संचालन पर अपनी मुहर लगा दी। भीम शर्मा के अनुसार कटारिया साहब के ही अथक प्रयास रहे कि श्रीगंगानगर को दिल्ली इंटरसिटी ट्रेन, चंडीगढ़ इंटरसिटी ट्रेन (दुर्भाग्यवश बंद हो गई थी), हरिद्वार इंटरसिटी ट्रेन, नांदेड़ ट्रेन (वाया बठिंडा) और सराय रोहिल्ला ट्रेन मिली। रेलवे के मामले में भीम शर्मा स्व. कटारिया साहब को अपना गुरु मानते है। कटारिया साहब की वजह से ही उन्हें पहली बार रेल भवन में एंट्री मिली थी।
भीम शर्मा बताते है कि गोयल साहब साधारण जीवन जीते रहे हैं। उनके अंदर खुद के प्रचार की भूख कभी नहीं दिखी, वे इतना ही कहते थे कि बस काम होना चाहिए, भले ही कोई भी करवाये। हमने क्रेडिट लेकर कौनसा इलेक्शन लड़ना है। उम्रभर रेलवे से जुड़े व अनेक बार रेलवे की जेडआरयूसीसी और डीआरयूसीसी में इलाके का नेतृत्व कर चुके स्व. गोयल साहब को पंजाब के लगभग सभी राजनीतीज्ञ, रेलवे के छोटे से बड़े अधिकारी, कर्मचारी उनकी सक्रियता और निस्वार्थ सेवा के कारण जानते थे। भीम शर्मा के अनुसार भले ही गोयल साहब अंतिम दिनों में घर में ही रहते थे, लेकिन वे लगातार फोन पर संपर्क बनाए हुए थे और रेलवे के मुद्दों पर ही चर्चा करते रहते थे। वे फोन पर सभी सांसदों के साथ भी जुड़े हुए थे। गोयल साहब अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़कर छोड़कर गए हैं। ईश्वर गोयल परिवार को यह दुःख सहने की ताकत प्रदान करे।


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