उदयपुर, पेसिफिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के एनाटॉमी विभाग द्वारा आयोजित ‘हैंड्स-ऑन प्लास्टिनेशन’ कार्यशाला का दूसरा दिन व्यावहारिक सत्रों और प्रतिभागियों की सक्रिय भागीदारी के साथ संपन्न हुआ। प्रतिभागियों ने न केवल कोरोजन तकनीक से ल्यूमिनल कास्ट निकालने की विधि सीखी, बल्कि संपूर्ण अंग प्लास्टिनेशन और शीट प्लास्टिनेशन की प्रक्रियाओं में भी प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया।
दिवस की शुरुआत "कोरोजन एक्सट्रैक्शन ऑफ ल्यूमिनल कास्ट" तकनीक के प्रदर्शन से हुई, जिसमें प्रतिभागियों ने रक्त वाहिकाओं और अन्य नलिकीय संरचनाओं में रेज़िन भरकर ऊतकों को संक्षारित करने की प्रक्रिया का अनुभव लिया। इस प्रक्रिया से प्राप्त नमूने शरीर की जटिल आंतरिक संरचना को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
इसके बाद प्रतिभागियों को संपूर्ण अंग प्लास्टिनेशन की सम्पूर्ण प्रक्रिया सिखाई गई, जिसमें अंगों को डिहाइड्रेट कर सिलिकॉन पॉलिमर में इंप्रीगनेट किया गया। इस दौरान प्रतिभागियों ने फोर्स्ड इंप्रीगनेशन, हार्डनिंग और पॉलीमेरीज़ेशन जैसे चरणों में भी सक्रिय भागीदारी की।
शीट प्लास्टिनेशन सत्र में प्रतिभागियों ने जैविक ऊतकों की पतली स्लाइस बनाकर उन्हें पारदर्शी पॉलिमर शीट्स में संरक्षित करने की विधि सीखी। यह तकनीक शरीर की आंतरिक सूक्ष्म संरचनाओं को देखने के लिए अत्यंत उपयोगी है।
दोपहर में प्रतिभागियों द्वारा तैयार किए गए नमूनों की प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें ल्यूमिनल कास्ट, संपूर्ण अंग प्लास्टिनेशन स्पेशीमेन और शीट स्लाइस शामिल थे। इन मॉडलों की सराहना उपस्थित शिक्षकों, अतिथियों और चिकित्सकों ने की और इन तकनीकों को चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बताया।
कार्यशाला की अध्यक्ष डॉ. हिना शर्मा ने बताया कि प्रतिभागियों को उनके द्वारा तैयार किए गए नमूने स्मृति चिह्न के रूप में प्रदान किए गए, ताकि वे भविष्य में इस तकनीक को और आगे बढ़ा सकें।
समापन समारोह में कार्यशाला सचिव ईशा श्रीवास्तव ने प्रतिभागियों के उत्साह और अनुशासन की सराहना की और भविष्य में इस प्रकार की और भी उन्नत कार्यशालाएं आयोजित करने की बात कही। इस अवसर पर सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र भी प्रदान किए गए।
देशभर के चिकित्सा संस्थानों से आए प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला को एक अद्भुत व्यावहारिक अनुभव बताया। एनाटॉमी, बायोकेमिस्ट्री और फिजियोलॉजी विभाग की फैकल्टी — डॉ. सविता गाडेकर, डॉ. मेघना भौमिक, डॉ. अंजलि जैन, डॉ. प्रीतेश मेनारिया, डॉ. भावना श्रीवास्तव, डॉ. आबिद हुसैन और डॉ. कविता धिडारिया — की उपस्थिति ने कार्यशाला की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।