उदयपुर। नवगठित साहित्यिक समूह कवि चौपाल की ओर से सोमवार को आयोजित कवि गोष्ठी में नगर के प्रबुद्ध कवियों ने राष्ट्रीय प्रेम, आध्यात्मिक, राजभाषा हिंदी, स्त्री विमर्श और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी बहुरंगी रचनाओं की वर्षा की। समाजसेवी श्याम लाल रावत की ओर से आयोजित कवि गोष्ठी की अध्यक्षता प्रसिद्ध समाजसेवी श्री लक्ष्मण सिंह कर्णावट ने की। मुख्य अतिथि कवि एवं चित्रकार डॉ.श्रीनिवासन अय्यर थे। विशिष्ट अतिथि पत्रकार व कवयित्री डॉ शकुंतला सरूपरिया व कर्नल श्री अजीत सिंह थे।
कवि गोष्ठी के शुभारंभ में श्री श्याम लाल रावत ने सभी कवियों का उपरणा, स्मृति चिन्ह और प्रसाद भेंट कर स्वागत किया। वहीं कवि चौपाल की ओर से श्री श्याम लाल रावत का स्मृति चिन्ह, शॉल उपरणा भेंट कर अभिनंदन किया गया। कवि गोष्ठी का प्रारंभ डॉ. शकुंतला सरूपरिया की सुमधुर स्वरों में सरस्वती वंदना "हे मां शारदे तुम सुधा धाम..." से हुआ। गोष्टी के मुख्य अतिथि डॉ.श्रीनिवासन अय्यर ने "तुमको निहारूं सदा मैं सतृष्ण, मन मेरा वृंदावन तुम मेरे कृष्ण।।"
उनकी कृष्ण को समर्पित छोटी-छोटी कविताएं
"नहीं महज एक मूरत तुम, या कि कोई सूरत तुम
अपनी दुनिया जिस में खोजूं
मेरी वही ज़रूरत तुम।" भी सभी के मन को छू गईं। खोया बचपन शीर्षक की उनकी कविता भी अनूठी रही।
गोष्ठी के अध्यक्ष श्री लक्ष्मण सिंह कर्णावट ने मेवाड़ महिमा पुस्तक की मुख्य कविता "अतीत की यादें-मन की पीड़ा" में बदलते युग की सामाजिक विसंगतियों को समेटते हुए बार-बार दोहराया कि हमारी स्वर्णिम मेवाड़ी संस्कृति को परिवर्तन की अनेक चुनौतियां झेलनी पड़ रही है। जो आने वाली पीढ़ी के लिए घातक हैं।
युवा शायर जगवीर सिंह ने नवीन सामाजिक विसंगतियों, बदले हुए मानवीय संबंधों व पर "यह हम किधर को चल रहे हैं"कविता सुन कर सभी को चिंतन पर मजबूर कर दिया। वहीं उनकी प्रेम पर आधारित तुम साइंस पढ़ी लड़की ने सभी के दिलों को छुआ। श्रीमती शकुंतला सोनी ने राजस्थानी में प्रस्तुत मुक्तक से सबका स्वागत करते हुए विगत कोलकाता में हुए डॉक्टर नोमिता के साथ हुए बर्बर दुष्कर्म से जुड़ी पीड़ा पर एक मार्मिक व संवेदना पूर्ण कविता सुनाकर सभी की ऑंखों को नम कर दिया-"गिनती गिनेगा क्या कोई नोमिता की । आह की दास्तां हत्या की"
उन्होंने अपनी दूसरी रचना से गोष्ठी का रस परिवर्तन किया। "अनकही पीड़ा" शीर्षक की हास्य कविता में उन्होंने पत्नी पीड़ित पुरुषों की व्यथा को उजागर किया। गोष्ठी में श्रीमती पूनम भू ने अपनी कविता "उठो श्रृंगार करो स्त्री सावन में!" में पिरोई- गुनगुनाती रहो स्त्री!/कहती और बोलती भी रहो/ तुम्हारे ना बोलने से/ ठिठक गया है मौसम" जैसी पंक्तियों से स्त्री जीवन के रंगों का परिचय कराया। उन्होंने किताबों की हत्या शीर्षक से जुड़ी कविता में "अलमारियों में बंद/धूल खाती किताबें/स्वयं से बतियाती,सिसकती/ रो पड़ती,धिक्कारती/ खोखली सी नज़र आती/ अनसुलझे प्रश्नों से सहमी/ किताबों की हत्या कर दी जाती।" जैसी चिंतनशील पंक्तियां सुना कर सूचना प्रौद्योगिकी के युग की किताबों के अस्तित्व व चुनौतियों का मार्मिक वर्णन किया। गोष्ठी की संयोजक डॉ. शकुंतला सरूपरिया ने "बचपन की यादें" नज्म़ सुनाकर बचपन की यादों को ताज़ा किया। उनकी बेटियों के हालात पर तरन्नुम में गाई ख़ास ग़ज़ल- "सदियों से जुल्मों सितम बेटियों पे जारी है। बेटी जो तुम्हारी है, बेटी जो हमारी है।" ने सभी का हक़ीक़त से परिचय कराया। श्रीमती वीना गौड़ ने अपनी "शी कंप्यूटर " रोचक कविता में "महिला कैसी कंप्यूटर है?/ सब कुछ झटपट कर लेती है/ कब सोती है- कब जागती है?/ पता किसी को ना देती है/ कैसे भी डाटा इनपुट हों/ आउटपुट तो बेस्ट मिलेगा।" सुन कर सभी को नारी शक्ति का परिचय दिया। उन्होंने तरन्नुम में प्रस्तुत- ग़ज़ल "क्या देखते हो,क्या दिखता है, तुमको इन ऑंखो में/ कुछ भी तो नहीं, पर सब कुछ है, देखो इन ऑंखों में।" सुना कर अपना रंग जमाया। प्रसिद्ध संवेदनशील ग़ज़लकर श्री अरुण त्रिपाठी ने अपने शब्दों में सभी कवियों का स्वागत करते हुए हिंदी भाषा के माहत्म्य का वर्णन किया ।- "हिंदी हमारी संस्कृति, संस्कृति हमारी प्रकृति, देश में भाषा का यह कैसा विधान है?
शब्द का भी अहंकार तोड़ा, जिस भाषा ने, ऐसी माई हिंदी को मेरा प्रणाम है।" उनकी ग़ज़ल-चुटकुलों के के शोरगुल ने कविताऍं दबा रखीं हैं साहित्य में यह तकलीफ़ भीतर दबा रखी है।" अपने सभी को सोचने पर मजदूर किया। दूसरी हिंदी ग़ज़ल -"फि़जू़ल की चतुराई छोड़ें, आओ मन का श्रृंगार करें।
मधुर संबंधों की महक का चारों तरफ़ विस्तार करें।" सुना कर गोष्ठी को नवीन ऊंचाइयां दी। कवयित्री लावण्या शर्मा ने चार पंक्ति की कविता " सुनो शब्द अब तुम गंभीर हो जाओ! तुम्हें कविता के समक्ष, अर्थ बनकर जाना है! / तुम कहीं चंचलता वश, ऐसा अर्थ न बन जाना/ जिसको कविता समझ लजा जाए/और तुम्हारे अभाव में अपना सही भाव प्रकट ना कर पाए। गोष्ठी में श्रीमती हंसा 'रविंद्र' ने अपनी सुंदर गद्य कविता - हर शहर में होनी चाहिए एक अदद झील/ एक हाड़ हर आदमी के अंदर होना चाहिए पका हुआ विचार व प्रतिरोध/ घर में हो दाल नमक रोटी का इंतज़ाम/हर कवि में होनी चाहिये असंभव की भी कल्पना सभी को पसंद आई। उनकी दूसरी कविता- "अपने हाथों की लकीरों में कहां है बदलना मुकद्दर अपना?" ने भी सभी को प्रभावित किया। मंच का संचालन कर रही कवयित्री प्रियंका भट्ट ने मेवाड़ी में उदयपुर दर्शन का सुमधुर गीत प्रस्तुत कर सभी को झूमने पर मजबूर किया। " चालो-चालो नीं, भॅंवर जी सा उदयपुर सैर करां, मूं तो कद री हूं त्यार सुणलो सा उदयपुर सैर करां।।