उदयपुर। न्यू भूपालपुरा स्थित अरिहंत भवन में आयोजित चातुर्मासिक धर्मसभा में आचार्य ज्ञानचन्द्र महाराज ने कहा कि भगवान से प्रेम का बंधन ऐसा है जो आत्मा को बांधता नहीं है बल्कि प्रभावी ढंग से बंधनों से मुक्ति दिला देता है। जहां तन से प्रेम है, तन से जुड़ा सुख है, जो तन से संबंध हैं, वो तन के नष्ट होने के साथ नष्ट हो जाते हैं। पति-पत्नी, भाई-बहन, पुत्र पिता, नाना, दादा ये सब रिश्ते तन से जुड़े हैं, जो कभी भी बिखर जाते हैं।
उन्होंने कहा कि जो आत्मा से जुड़ा रिश्ता होता है, वो परमात्मा तक साथ जाता है। परमात्मा से प्रेम, बंधन नहीं, मुक्ति दिलाता है।सिद्धों के लिए कहा जाता है ज्योत में ज्योत विराजमान है, यानि अनंत सिद्ध एकमेक होकर रह रहे हैं। अनंत काल तकसदा सर्वदा ऐसे ही रहेंगे। हमें चार शरण को अंदर में समाने के लिए 24 तीर्थंकरों को प्रतीक मानकर 24 दिन तक चलाना है।
पहले ये तन में आते हैं फिर वचन में, फिर प्राणों में, अंत में आत्मा तक पहुंचाना है। बार-बार उच्चारण करके हम वहां तक पहुंच सकते हैं। इसी तरह चार शरण को 24 दिन तक रटना है, हमारे भीतर भी चार शरण प्रस्फुरित हो, इसके लिए पहले बाहर से पाठ करना जरूरी है।
सभी महाराज मांगलिक में मुख्य रूप से ये चार लाइनें विशेष सुनाते हैं। ये चार लाइन अत्यंत प्रभावी है। देवी देवता के मंत्र से पाप नहीं कटते, अंतराय दूर नहीं होती। देवता किसी का भाग्य नहीं बदल सकता। लेकिन अरिहंत, आइगराणं है। सव्व पाव प्पणासणो है वो भाग्य भी बदल सकते हैं।
आचार्य जवाहरलाल महाराज साहब जब संयम जीवन के प्रारंभ में गुरु के स्वर्गवास हो जाने से अंतर चोट लगने से विक्षिप्त हो गए थे। तब वह यह बोलते थे कि अरिहंत देव नेड़े जिन्हें तीन भुवन में कुण छेड़। चार शरण में जाने वाले का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। अंततः आचार्यश्री स्वस्थ होकर एक ज्योतिर्धर महान क्रांतिकारी आचार्य हुए।