उदयपुर। जैनाचार्य ज्ञानचंद्र महाराज ने कहा कि पाप निःसंदेह बुरा है, लेकिन उससे भी बुरा है पुण्य का अहंकार। पाप के उदय से दुख प्राप्त भी हो रहा है तो उसे समभाव से सहन कर क्षपित किया जा सकता है।
वे आज सुभाष नगर जैन स्थानक में प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि जैसा कि भगवान ऋषभदेव, भगवान महावीर, हरिकेशी अनगार, सनत् कुमार चक्रवर्ती, मुनि स्कंधक अनगार, मैतार्य मुनि ने तप जप समभाव से कर्म क्षय कर डालें लेकिन उपलब्धियों का अहंकार करने वाले महा दुख के गर्त में गिर गए। कोई कितना ही बड़ा सत्ता या संपत्ति संपन्न हो, अगर अहंकार में किसी को अपमानित करता है तो उसी भव में उसे भी अपमानित होना पड़ता है।
जिंदगी एक झूला- आचार्य ज्ञानचन्द्र महाराज ने कहा कि झूला, जितना सामने ऊपर जाएगा, उतना ही स्वतः विपरीत दिशा में ऊपर जाएगा। अतः इस पर समतोल बिठाना जरूरी है। आचार्य प्रवर ने आगे समझाते हुए कहा कि पुण्य का उदय है तो उसे बनाएं, बढ़ाएं रखने के लिए दूसरों का सहयोग करों। हर दिन किसी न किसी भूखे इंसान या पशु पक्षी को कुछ भी दिए बिना नहीं खाना। अगर जिंदगी भर निभाया तो सात पीढ़ी तक धन की कमी नहीं आएगी और अगर अच्छे नए कपड़े किसी को दान दिए या स्वादिष्ट मिठाई मन इच्छित असणं पाणं खाइमं साइमं का दान दिया तो आपकी पुण्यवानी भी अधिक ऊपर उठेगी, आपके सब काम होते मिलेंगे। इसलिए संपत्ति को छोड़कर जाना या तन का सदुपयोग ना करना नादानी होगी।
जैनाचार्य ज्ञानचंद्र महाराज का 8 जुलाई का प्रवचन पूर्व न्यायाधीश प्रकाश पगारिया के निवास से. 4 स्थित 37 प्रेम पर्वत में प्रातः 8.30 बजे होगा।