उदयपुर। सेक्टर 4 श्री संघ में विराजित श्रमण संघीय जैन दिवाकरिया महासाध्वी डॉ श्री संयमलताजी म. सा.,डॉ श्री अमितप्रज्ञाजी म. सा.,श्री कमलप्रज्ञाजी म. सा.,श्री सौरभप्रज्ञाजी म. सा. आदि ठाणा 4 के सानिध्य में ज्ञान पंचमी पर भव्य आगम यात्रा, मां सरस्वती अनुष्ठानएवं तपस्वी अभिनंदन समारोह का भव्य आयोजन हुआ।
सर्वप्रथम चातुर्मास सहसंयोजक अशोक चौहान के निवास स्थान से राजस्थानी परिवेश में विशाल वरघोड़े के साथ आगम यात्रा विभिन्न मार्गाे से जयकारों के साथ महावीर भवन में पहुंचकर धर्म सभा में परिवर्तित हुई।
मंगलाचरण के पश्चात श्रुति देवी माता सरस्वती का अनुष्ठान संपन्न हुआ। धर्म सभा को संबोधित करते हुए महासती संयमलता ने कहा ज्ञान पंचमी के दिन श्रुत आराधना श्रुत उपासना की पूजा होती है। आज के ही दिन भगवान के 27वें पट्टधर अंतिम पूर्वधर आचार्य श्री देवर्द्धिगणी ने कंठस्थ चली आ रही श्रुत ज्ञान की परंपरा को पुस्तकारूढ करने का प्रारंभ किया। आज के ही दिन शास्त्र लिखने की पहली परिपाटी चालू हुई।
साध्वी ने आगे कहा कि प्राचीन जैन कथा साहित्य में ज्ञान पंचमी कथा में गुण मंजरी और वरदत कुमार की कथा प्रसिद्ध है। इस कथा में यही बताया गया है कि ज्ञान की अशातना करने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंद होता है जिस कारण प्राणी मूर्ख, मंदबुद्धि, गंगा या अज्ञानी रह जाता है। ज्ञान के प्रति मन में आदर भाव पैदा कीजिए। श्रद्धा भाव जगाइए और उसमें लिखी बातों को समझने के लिए शास्त्र ज्ञान हृदय अंगम करने के लिए सच्चे जिज्ञासु बनिए। ज्ञान दाता के प्रति भी आदर और विनय भाव रखिए। सच्ची जिज्ञासा ही मनुष्य को ज्ञानी बनाती है और विनय से ही मनुष्य को ज्ञान प्राप्त होता है। जहां भी जो भी बात मिले ग्रहण करें। ज्ञान की प्रभावना करने में, दूसरों को ज्ञान सिखाने में,ज्ञान के साधनों का प्रसार करने में, अपने पुरुषार्थ और लक्ष्मी का उपयोग करते रहना चाहिए। इस चातुर्मास में आठ और आठ उपवास से अधिक तपस्या करने वाले 150 भाई बहनों का बहुमान किया गया।
इस अवसर पर जोधपुर, पाली, हैदराबाद,बैंगलोर, पुणे, सूरत, मुंबई, सनवाड, फतहनगर एवं उदयपुर के अनेक उपनगर से श्रद्धालुओं ने उपस्थिति दर्ज करवाई।