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भारतीय काल गणना और ज्योतिष को सरल रूप में समाज तक पहुंचाने की आवश्यकता - निम्बाराम 

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14 Sep 25
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भारतीय काल गणना और ज्योतिष को सरल रूप में समाज तक पहुंचाने की आवश्यकता - निम्बाराम 

उदयपुर,  भारतीय काल गणना और ज्योतिष पूर्ण रूप से खगोल-भूगोल और विज्ञान आधारित है। इसे सहज और सरल रूप में उदात्त भाव से समाज तक पहुंचाने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें स्वयं संकल्पित होना होगा।  
यह आह्वान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम ने शनिवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ में भारतीय काल गणना, पंचांग और ज्योतिष विषय पर संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में किया। प्रताप गौरव केन्द्र और देवस्थान विभाग के संयुक्त तत्वावधान में हो रही दो दिवसीय इस अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में देश भर से आए विद्वानों को संबोधित करते हुए निम्बाराम ने कहा कि जब यंत्र नहीं थे तब भारतीय ऋषि-मुनियों जो हमारे शोधकर्ता ही कहे जा सकते हैं, ने ग्रहों की दूरियां-गतियां बता दी थीं। कुंभ से अगले कुंभ तक की तैयारियां कर लेते हैं। कालांतर में हमने ही अपनी ही परम्पराओं, अपने ही ज्ञान का उपहास किया, यही वजह है कि हम अपने ही विषद ज्ञान भण्डार पर संशंकित होते गए।
निम्बाराम ने यह भी कहा कि आज की युवापीढ़ी को हम एक तरफ स्वछंद कह देते हैं, जबकि हम यह नहीं देख पा रहे कि आज अयोध्या, उज्जैन, लोकदेवताओं के स्थानकों तक पदयात्रा कौन कर रहा है। यह युवा पीढ़ी ही है। हमारी कमजोरी यह है कि भारतीय काल गणना की वैज्ञानिकता को हम सहजता से पारिवारिक संस्कारों में शामिल नहीं कर पा रहे हैं। हम विवाह का मुहूर्त तो पंचांग से निकालते हैं और कार्ड अंग्रेजी में छपवाते हैं। जब हम पंचांग को मान रहे हैं तो यह भी सहजता से समझने और समझाने की आवश्यकता है कि ईस्वी और हिजरी से पहले ही हमारे संवत् हैं। हमारे पास लाखों-करोड़ों वर्ष की गणना का इतिहास है। इससे यह भी स्थापित होता है कि सनातन संस्कृति सबसे प्राचीन और सुसंस्कृत है। हमारे डीएनए में अनुशासन विद्यमान है, हम सभी विचारों को आत्मसात करते हैं, लेकिन हमारी इस विशेषता का लाभ उठाकर हमें ही कमतर बताया जाने लगा।
निम्बाराम ने यह भी कहा कि एक ही अनुष्ठान की पूजा-पद्धतियां भिन्न-भिन्न होने से भी कई बार भ्रम की स्थिति बन जाती है, ऐसे में विद्वानों से उन्होंने आग्रह किया कि वे एक तरह के अनुष्ठान की पूजन पद्धति को लगभग समानता का रूप देने में आगे आएं।
उन्होंने कहा कि हमने पहले भी विश्व को दिया और अब भी देना है। लेकिन, इसके लिए पहले हमें अपने स्व को जानना होगा, भारत को जानना होगा, भारत के ज्ञान-संस्कारों को मानना होगा और अपने आचरण में धारण कर भारत का बनना होगा, तब एक भारत-श्रेष्ठ भारत का स्वप्न भी साकार हो सकेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी यही लक्ष्य है कि जो हम बोलते हैं, उसे हम अपने आचरण में भी रखें।

मंदिरों की व्यवस्थाओं को ठीक करे देवस्थान विभाग

-क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम ने मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद राज्य के देवस्थान मंत्री जोराराम कुमावत की ओर संकेत करते हुए कहा कि सनातन संस्कृति के केंद्र हमारे मंदिरों की व्यवस्थाएं समुचित नहीं हैं। पुजारी को जो वेतन मिलता है उससे उसका जीवनयापन संभव नहीं है। मंदिरों की विभिन्न व्यवस्थाओं को परम्परा और संस्कृति के अनुरूप सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।

ज्योतिष को मानसिक स्वास्थ्य और जीवन प्रबंधन से जोड़े - प्रो. सारंगदेवोत

-उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान विद्यापीठ के कुलगुरु प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि ज्योतिष को मानसिक स्वास्थ्य और जीवन प्रबंधन से भी जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने नई शिक्षा नीति की चर्चा करते हुए भारतीय ज्ञान परम्परा के पेपर में ज्योतिष और कालगणना के विभिन्न आयामों को जोड़ने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि कारण और परिणाम का संबंध जिस तरह विज्ञान में है, ज्योतिष में भी उसी तरह है। यही बात किसी सिद्धांत के प्रतिपादन और पुनरावर्तन के नियम में भी दोनों में लागू होती है। ऐसे में ज्योतिष विषय पूर्णतः विज्ञान सम्मत है।

विश्व सनातन संस्कृति की राह पर - देवस्थान मंत्री

मुख्य अतिथि देवस्थान विभाग के मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति चराचर जगत के कल्याण की बात करती है और यह संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी स्थापित हैं। कालगणना की सटीकता का प्रमाण हमारे कुंभ हैं जो बरसों पहले तय हो जाते हैं और उनसे पूरा विश्व प्रभावित है जिसके दर्शन महाकुंभ में हुए, जहां बड़ी संख्या में विदेशी श्रद्धालु शामिल हुए। विश्व योग दिवस का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि आज संसार सनातन संस्कृति की तरफ अग्रसर हो रहा है। मंत्री कुमावत ने यह भी कहा कि सनातन संस्कृति को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों से बचाव के लिए राजस्थान सरकार ने अवैध धर्मांतरण के विरुद्ध विधेयक पारित किया है। इससे विशेषकर जनजाति क्षेत्रों में मिशनरीज द्वारा किए जा रहे अवैध धर्मांतरण पर अंकुश लग सकेगा। जनजाति संस्कृति से जुड़ आस्था स्थलों के विकास के लिए ट्रायबल टूरिस्ट सर्किट पर भी सरकार काम कर रही है। इस सर्किट में मानगढ़धाम, मातृकुण्डिया, बेणेश्वर धाम, गौतमेश्वर आदि शामिल हैं।

दो दिन होंगे विभिन्न सत्र

-संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने बताया कि दो दिन विभिन्न सत्रों में ज्योतिष, पंचांग, काल गणना, हीलियोबायोलाॅजी आदि विषयों पर सत्र होंगे जिनमें विद्वान शोध पत्र पढ़ेंगे। उद्घाटन सत्र में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के अध्यक्ष प्रो. बीपी शर्मा ने भी विचार रखे। संचालन डाॅ. रविशंकर ने किया। धन्यवाद प्रताप गौरव शोध केन्द्र के निदेशक डाॅ. विवेक भटनागर ने किया।

पहले दिन चार सत्र

-संयोजक धीरज बोड़ा ने बताया कि पहले दिन चार सत्र हुए जिनमें भारतीय कालगणना, पंचांग, तिथि गणना और सूर्य विधियां, ग्रह गणना व मुहूर्त, ज्योतिष: ग्रहों का प्रकृति और जीवों पर प्रभाव एवं हीलियोबायोलाॅजी विषय शामिल रहे।
सह संयोजक हिमांशु पालीवाल ने बताया कि विभिन्न सत्रों में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. बीएल चैधरी, महामंत्री पवन शर्मा, उपाध्यक्ष एमएम टांक, कोषाध्यक्ष अशोक पुरोहित, जयदीप आमेटा, कला महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो. मदन सिंह राठौड़, वरिष्ठ पुराविद डाॅ. धर्मवीर शर्मा, इतिहासविद डाॅ. सुदर्शन सिंह राठौड़, पूर्व महापौर गोविन्द सिंह टांक, एमपीयूएटी के पूर्व कुलपति डाॅ. उमाशंकर शर्मा, कोटा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी, कोटा वर्द्धमान खुला विवि के कुलपति प्रो. बीएल वर्मा, राजस्थान विद्यापीठ ज्योतिष विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. अलकनंदा शर्मा, कला महाविद्यालय की सह अधिष्ठाता प्रो. दिग्विजय भटनागर आदि अतिथि के रूप में मौजूद रहे।
कार्यक्रम में देवस्थान विभाग के अतिरिक्त आयुक्त अशोक सुथार, उपायुक्त सुनील मत्तड़, सहायक आयुक्त जतिन कुमार गांधी, निरीक्षक शिवराज सिंह राठौड़, प्रबंधक सुमित्रा सिंह, नितिन नागर, भगवान सिंह, तिलकेश जोशी भी उपस्थित थे। 


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