उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी ने कहा कि भाव से नही सोना है। जिस दिन भाव निद्रा टूट गई उस दिन अपने आप लगेगा कि क्यों अपना समय किसी के साथ व्यर्थ खराब करूं। भाव निद्रा तोड़ने के लिए स्वयं को स्वयं जानना होगा। स्वयं को स्वयं मानना होगा। तीसरा स्वयं के द्वारा स्वयं के दर्शन करने होंगे। बार बार नींद टूटी रही है यानी द्रव्य निद्रा टूट रही है तो जाग जाओ और भावों में आ जाओ।
महापुरुषों ने जग छोड़कर जागते को जगाने का प्रयास किया। द्रव्य निद्रा से भाव निद्रा में लाने का प्रयास करते रहे। जीव को जीव का बोध कैसे हो, आत्मा को आत्मा का, चैतन्य को चेतना भाव का प्रकट कैदी हो, उन आत्म भावों को, उस द्रव्य निद्रा को जगाकर समकित की यह यात्रा में बहिर्मुखी से अंतर्मुखी कैसे बनें, इस पर विचार करना है। ज्ञानी भगवंतों को अगर एक घंटे नींद आ जाती तो सोचते कि ये एक घंटा खराब हो गया।
उन्होंने कहा कि समय कभी प्रतिकूल तो अनुकूल भी मिलेगा। इन सबके बीच रहकर खुद को भिन्न कैसे रखें! गर्मी, भूख, प्यास शरीर को लगती है, आत्मा को नहीं। अगर किसी का सहयोग हुआ तो इसका अर्थ कि ये सोचो कि किसके लिए मिला। क्या करने के लिए मिला। शरीर का सहयोग आत्मा के लिए मिला। कब तक सहयोग मिलेगा जब तक वियोग न हो जाये। शरीर आत्मा से अलग भी होगा। अगले भव में फिर नया शरीर मिलेगा। हम कर्म बन्धों में बंध चुके हैं। हर भव में पति, माता, पत्नी अलग मिलेंगे। सीरियल में कोई पति किसी में भाई होता है। शरीर में हूं लेकिन इसका वियोग हो जाएगा। यहां जो कमाया, नहीं रह जायेगा। व्यक्ति, पैसे से मोह नहीं रखना है। उसका सदुपयोग कैसे करना है ये सोचें।