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वैज्ञानिक तरीके से मक्का उत्पादन विषयक किसान सम्मेलन

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11 Jul 25
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वैज्ञानिक तरीके से मक्का उत्पादन विषयक किसान सम्मेलन
उदयपुर। खाद्यान्न के साथ-साथ फल, दूध व चीनी के क्षेत्र में भी हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं। अब समय कृषि में विविधिकरण और नवाचारों का है। तिलहन-दलहन में हम पीछे हैं और तेल का आयात करना पड़ रहा है। ऐसे में बड़ी मात्रा में राजस्व विदेशों में भेजना हमारी मजबूरी है। यह बात गुरूवार को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलगुरू डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने कही। डॉ. कर्नाटक वल्लभनगर कृषि विज्ञान केन्द्र प्रांगण में नौ जिलों के प्रगतिशील किसानों को सम्बोधित कर रहे थे।
’’वैज्ञानिक तरीके से मक्का उत्पादन एवं मूल्य संवर्धन’’ विषयक कृषक समागम में प्रतापगढ़, राजसमन्द, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चिŸाौड़गढ़, भीलवाड़ा आदि जिलों के तीन सौ से ज्यादा किसानों ने भाग लिया। डॉ. कर्नाटक ने कहा कि किसानों को खेती के साथ-साथ बकरी पालन, मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती आदि करने से आय बढ़ेगी व कृषक आत्मनिर्भर बनेगा। उन्होंने कहा कि मक्का हमारी फसल नहीं रही है बल्कि कोलम्बस इसे यहां लाया। चौड़ी पŸाीदार फसल होने से सर्वप्रथम मक्का को चारे के रूप में प्रयुक्त करने लगे। वैज्ञानिकों ने गहन शोध अध्ययन कर मक्का को पॉपकोर्न के रूप में सिनेमाघरों तक पहुंचा दिया। वैज्ञानिकों की बदौलत आज मक्का बेबी कॉर्न व स्वीट कॉर्न के रूप में पांच सितारा होटलों की शान है। मक्का के जर्मप्लाज्म से तेल, अवशेष से स्टार्च और इथेनॉल तक बनाया जा रहा जो पेट्रोल में ग्रीन फ्युल के रूप में शामिल किया जा सकेगा।
मक्का उत्पादन बढ़ाने के गुर बताये

मेज मैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर मक्का बीज प्रजनक डॉ. सांई दास ने कहा कि भारत मक्का उत्पादन में किसी भी सूरत में अमरीका और चीन से पीछे नहीं है। जलवायु परिवर्तन के कारण हमें दिक्कतें आती है। समय पर बीज पानी दिया जाए तो उत्पादकता बढ़ सकती है। आज कई बड़े उद्योगों जैसे कपड़ा, बॉयोफ्यूल, जूते, दवा इंडस्ट्री में मक्का का उपयोग हो रहा है। अच्छी मक्का पैदावर के लिए उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि पहले पानी फिर उर्वरक दें। मक्का में 6-8 पŸाी की फसल, इसके बाद कंधे तक, फिर माजर निकलते समय उर्वरक निहायत जरूरी है। अच्छे उत्पादन के लिए खरपतवार नियंत्रण भी जरूरी है।
कीट विज्ञानी डॉ. मनोज महला ने कहा कि भारत में विगत सात दशक में मक्का का उत्पादन दस गुना बढ़ा है। 143 करोड़ की आबादी वाले देश में करोड़ों रूपये की मक्का पैदा हो रही हैं। विगत पांच-छह वर्ष पूर्व फॉल आर्मी वर्म (फॉ) ने मक्का के किसानों को सकते में डाल दिया। यह कीट मक्का की कोमल पŸिायों को चट करता हुआ भारी नुकसान पहंुचाता है। उन्होंने फेरोमोन ट्रेप व बीजोपचार से इस कीट के नियंत्रण की तरकीब सुझाई।
कार्यक्रम में कुलपति कर्नाटक ने केवीके बांसवाड़ा के डॉ. बी.एस. भाटी, डॉ. आर.एल. सोलंकी (चिŸाौड़गढ़), डॉ. सी.एम. बलाई (डूंगरपुर), डॉ. योगेश कनोजिया (प्रतापगढ़), डॉ. पी.सी. रेगर (राजसमन्द), डॉ. मनीराम (वल्लभनगर), प्रो. लतिका व्यास (प्रसार शिक्षा निदेशालय) को आईएसओ प्रमाण-पत्र देकर व मेवाड़ी पाग पहनाकर सम्मानित किया। भारतीय मानक ब्यूरो इन केवीके को पूर्व में यह प्रमाण-पत्र जारी कर चुका है जो आज सौंपे गए।
कार्यक्रम में पूर्व प्रसार निदेशक डॉ. आई.जी. माथुर, डॉ. अमित दाधीच, डॉ. योगेश कनोजिया, धानुका के श्री मयूर आमेटा, श्री गौरव शर्मा, श्री सुशील वर्मा, श्री देवेश पाठक, डॉ. मनीराम आदि ने मक्का बीज की उन्नत किस्में, प्रमुख कीट-व्याधियां व नियंत्रित करने के तरीके, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने आदि की जानकारी दी।
आरम्भ में प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आर.एल. सोनी ने कहा कि आज गुरू पूर्णिमा पर होने वाले इस किसान सम्मेलन का अपना महत्व है। धरतीपुत्र किसानों के दम पर ही प्रदेश में 11 लाख हेैक्टेयर में मक्का की खेती होती है। दक्षिणी राजस्थान के चिŸाौड़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, राजसमन्द में मक्का की खेती बहुतायत में की जाती है जबकि बांसवाड़ा में तो वर्ष पर्यन्त मक्का बोई जाती है। कृषक जागरूक रहेगा तो उत्पादकता स्वतः बढ़ जाएगी।
इस मौके पर केवीके परिसर में अतिथियों ने बोटल पाम का पौधारोपण भी किया। संचालन प्रो. लतिका व्यास ने किया। समारोह स्थल पर अखिल भारतीय मक्का अनुसंधान परियोजना (एक्रिप) की ओर से डॉ. अमित दाधीच के नेतृत्व में प्रदर्शनी भी लगाई गई।


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