नाथद्वारा/कोटा, साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा के श्री भगवती प्रसाद देवपुरा प्रेक्षागृह में “हिंदी लाओ, देश बचाओ” कार्यक्रम एक ऐतिहासिक आयोजन के रूप में संपन्न हुआ। देश के 16 राज्यों से आए 100 से अधिक साहित्यकारों की मौजूदगी में आयोजित इस महोत्सव में हिंदी भाषा की शक्ति, उसकी एकता और राष्ट्रनिर्माण में भूमिका को रेखांकित किया गया।
उद्घाटन सत्र: हिंदी हमारी पहचान
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति एवं साहित्यकार प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा—
"जब तक हम विचारों में स्वतंत्र नहीं होंगे, तब तक सतही परिवर्तन संभव नहीं। आज हिंदी केवल भाषा नहीं, बल्कि हमारी पहचान, संस्कृति और एकता का प्रतीक है।"
विशिष्ट अतिथि उड़ीसा से आए प्रशासनिक अधिकारी डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि हिंदी से जुड़ने का अर्थ है पूरे देश से जुड़ना। लखनऊ से आए डॉ. ओम नीरव ने जोर दिया कि हिंदी को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए अन्य भाषाओं का सम्मान भी आवश्यक है।
दिल्ली से आए डॉ. राहुल ने हिंदी को स्वदेशी अभियान से जोड़ा, वहीं महाराष्ट्र के सुरेश जी ने कहा कि अब शिवाजी की तलवार की जगह साहित्यकारों की कलम को एकजुटता का काम करना होगा।
भव्य सांस्कृतिक आरंभ
कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना, सरस्वती वंदना और श्रीनाथ वंदना के साथ हुई। गुरुकुल विद्यालय के बालक-बालिकाओं ने गीता श्लोक प्रस्तुत किए।
इस दौरान डॉ. व्यासमणि त्रिपाठी, श्रीमती मनोमाला हाजरिका, डॉ. अवधेश कुमार और डॉ. एस. प्रीति ने हिंदी पर विविध शोधपत्र प्रस्तुत किए।
सम्मान-अलंकरण की शृंखला
इस अवसर पर अनेक साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।
प्रो. गिरीश्वर मिश्र को श्री भगवती प्रसाद देवपुरा स्मृति सम्मान और 11,000 रुपये की राशि
डॉ. राजेंद्र प्रसाद मिश्र को हिंदी शलाका की मानद उपाधि
आचार्य ओम नीरव को डॉ. दाऊ दयाल गुप्ता स्मृति सम्मान
डॉ. राहुल को श्री जीवन लाल अग्निहोत्री स्मृति सम्मान
डॉ. कृष्ण लाल बिश्नोई को ब्रजकांत साहित्य सम्मान
इसके अतिरिक्त कोटा से सुश्री शिवांगी सिंह और श्री राममोहन कौशिक को विशेष उपाधियों से अलंकृत किया गया।
नगर भ्रमण और नारे
समारोह के दूसरे दिन सभी साहित्यकारों और विद्यालयी छात्रों ने “हिंदी लाओ, देश बचाओ” के नारों के साथ नगर शोभायात्रा निकाली। “हिंदी हमारी शान है, हिंदी हमारी जान है” जैसे नारों से पूरा शहर गूंज उठा। नगरवासियों ने जगह-जगह शोभायात्रा का स्वागत किया।
विचार गोष्ठी और हिंदी का भविष्य
द्वितीय सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. नवल किशोर भाभड़ा ने इस आयोजन को साहित्य का महाकुंभ बताते हुए कहा कि साहित्य मंडल ने हिंदी को दिशा देने का कार्य किया है।
राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के सचिव डॉ. बसंत सिंह सोलंकी ने साहित्य मंडल को हिंदी साहित्य का मंदिर बताया।
इतिहासकार डॉ. कृष्ण जुगनू ने कहा कि नाथद्वारा को साहित्य मंडल ने वैश्विक पहचान दिलाई है।
प्रतियोगिताएँ और नई कृतियों का विमोचन
राष्ट्रीय हिंदी कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर श्रीमती नमिता सिंह आराधना, द्वितीय पर डॉ. अंजु सक्सेना (जयपुर) और तृतीय पर श्रीमती शोभा रानी गोयल (जयपुर) रहीं।
इस अवसर पर तरकश के तीर, पंखुड़ी, बदलाव और विज्ञान पहेलियां जैसी नई पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ।
पत्रकारों और साहित्यकारों का सम्मान
कई साहित्यकारों को हिंदी काव्य शिरोमणि, हिंदी भाषा विभूषण, पत्रकार संपादक रत्न जैसी मानद उपाधियाँ प्रदान की गईं। विशेष रूप से उदयपुर की किंजल तिवारी को पत्रकार प्रवीण और अहमदाबाद की वैशाली हितेश पांडा को रक्तदान वीर उपाधि से नवाज़ा गया।
अध्यक्ष का उद्बोधन
संस्थान अध्यक्ष पं. मदन मोहन शर्मा ने कहा कि साहित्य मंडल का उद्देश्य केवल हिंदी का संरक्षण नहीं, बल्कि हिंदी की सुंदरता और राष्ट्रीय पहचान को संवारना है। उन्होंने कहा, “आज साहित्य मंडल में पूरा भारत उपस्थित है। यह हिंदी की एकता का ज्वलंत उदाहरण है।”