GMCH STORIES

परिचर्चा :सशक्त समाज के निर्माण में साक्षरता की भूमिका

( Read 4722 Times)

07 Sep 25
Share |
Print This Page
परिचर्चा  :सशक्त समाज के निर्माण में साक्षरता की भूमिका

इस में दो राय नहीं कि जिस देश के लोग जितने साक्षर होंगे वह देश उतना ही समृद्ध और सांस्कृतिक दृष्टि से आगे होगा। आजादी के समय भारत की साक्षरता 17 फीसदी बढ़ कर वर्तमान में 80.9 प्रतिशत हो गई है। इस में
पुरुषों की साक्षरता दर 87.2 प्रतिशत है, जबकि महिलाओं की 74.6 प्रतिशत है, जो बताता है कि महिला साक्षरता पर और ध्यान देना है। शहरी साक्षरता दर 90 फीसदी और ग्रामीण साक्षरता दर 77 फीसदी है । मिजोरम और केरल जैसे राज्यों में साक्षरता दर 95 प्रतिशत से ऊपर है, जबकि बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में यह 75 प्रतिशत के आसपास है। कह सकते हैं कि भारत में साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, लेकिन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ पुरुषों और महिलाओं के बीच अभी भी महत्वपूर्ण अंतर हैं। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के राज्य साक्षरता के मामले में आगे हैं, जबकि हिंदी भाषी राज्यों में सुधार की आवश्यकता है।
      इन कुछ प्रमुख तथ्यों की रोशनी में देखते हैं तो आजादी के बाद किए गए सामुदायिक प्रयासों से जहां साक्षरता का विकास हुआ वहीं देश ने सभी क्षेत्रों में आधारित प्रगति और विकास के सोपान रचे। भारत आज वैश्विक परिदृश्य में अर्थव्यवस्था की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान बना रहा है। लोगों में ज्ञान के प्रकाश ने उनकी समझ को बढ़ाया और सदियों से प्रचलित सामाजिक कुप्रथाओं का उन्मूलन हुआ है। लोगों की कूपमण्डूकता दूर हुई और उन्होंने न केवल परिवार को सशक्त बनाया वरन देश की उन्नति और विकास में भी अपना योगदान किया। विश्व के लोग भारत को आशा भरी दृष्टि से देखते  हैं।  अंतरिक्ष तक देश प्रगति का लोहा संसार ने माना है। भारत सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर देश बनने की और अग्रसर है। सरकार की नीतियों के साथ - साथ साक्षरता का इसमें महत्वपूर्ण योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। 
      अक्षर साक्षरता आगे निकल कर डिजिटल साक्षरता तक पहुंच गई है। साक्षरता ने सामाजिक समावेश बढ़ाने, व्यक्तिगत और समाज सशक्तिकरण, गरीब परिवारों को आर्थिक सुरक्षा, वित्तीय मामलों, स्वास्थ्य सेवा और जीवन प्रबंधन में कौशल वृद्धि, विशेषकर महिलाओं को, सूचना और संसाधनों तक पहुंच प्रदान कर सशक्त बनाने, नवाचार और लचीलेपन को बढ़ावा देने, सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाने, विधि और पर्यावरण चेतना बढ़ाने और तकनीकी अवसंरचना और शिक्षा में निवेश करने वाले समुदाय युवाओं को नेटवर्क से जुड़ने, विविध दृष्टिकोणों तक पहुँचने और वैश्विक संसाधनों का उपयोग करके स्थानीय चुनौतियों के समाधान विकसित करने में सक्षम बनाने में साक्षरता की भूमिका सबके सामने है।
    राष्ट्र हित और सशक्त समाज निर्माण में साक्षरता की इस महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए मैने एक परिचर्चा में कई विद्वानों के विचार जाने की किस प्रकार साक्षरता  एक बेहतर और विकासशील समाज के निर्माण में अपनी भूमिका निभाती है। राजकीय कला कन्या महाविद्यालय, कोटा  की आचार्य एवं हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मनीषा शर्मा  का कहना है सशक्त समाज के निर्माण में साक्षरता की भूमिका महत्वपूर्ण और अग्रणी है।  शिक्षा का प्रकाश मनुष्य के हृदय के ज्ञान के अंधकार को ही दूर नहीं करता वरन् उसके बौद्धिक और मानसिक विकास के साथ सामाजिक चेतना जागृत करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। साक्षर व्यक्ति में एक नवीन आत्मविश्वास उत्पन्न होता है जो उसे सामाजिक विसंगतियों यथा जातिगत भेदभाव, छुआछूत ,लिंग भेद ,दहेज प्रथा और धार्मिक अंधविश्वासों से मुक्ति दिलाता है। शिक्षित व्यक्ति राजनीतिक दृष्टि से भी एक जागरूक नागरिक के रूप में मतदान  कर लोकतंत्र को दृढ़ता और समाज के विकास को गति देने में सक्रिय भूमिका निभाता है।  समाज की सांस्कृतिक, बौद्धिक और आर्थिक विकास और दृढ़ता हेतु साक्षरता एक अनिवार्य एवं मजबूत स्तंभ है जिसके बिना एक सशक्त समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है।
      कोटा के शिक्षाविद और शिशु भारती स्कूल समूह के चेयरमैन योगेंद्र शर्मा का कहना है आजादी के  समय निरक्षरता बहुत अल्प होने से सामाजिक जीवन संघर्ष में निरक्षर लुट रहा था। वह महाजन हो या सूदखोर, हिसाब किताब नहीं जानने से उसके द्वारा ली गई रकम पीढ़ियां तक चुकाती रहती थी। जमीन जायदाद, मजदूरी  एवं नोकरी करने पर भी वह हमेशा घाटा और धोखा खाता रहा। जैसे -जैसे शिक्षा का प्रकाश गांवों तक पहुंचने लगा। देश में चलाए गए व्यापक साक्षरता अभियान से लोग साक्षर बने और शिक्षा की कीमत को पहचाना । सरकार के साथ - साथ निजी विद्यालयों ने भी इस ज्ञान ज्योति की महायज्ञ में आहुति दी। बहुत सारे एनजीओ, व सहायता समूह ने इस पावन अभियान में शामिल होकर देश का हित किया। परिणाम और परिवर्तन सामने है अ अक्षर  ने दुरस्त क्षेत्रों में भी आज डिजिटल साक्षरता का स्थान ले लिया।
     कोटा की साहित्यकार डॉ. श्रीमती युगल सिंह कहती हैं यह निर्विवाद है कि सशक्त समाज के निर्माण में एक साक्षर व्यक्ति ही आर्थिक ,सामाजिक , मानसिक, वैचारिक ,सांस्कृतिक, बौद्धिक , वैश्विक रूप से स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना अतुल्य योगदान दे सकता है। साक्षर व्यक्ति अंधविश्वास एवं व्यर्थ पुरानी परंपराओं  के जाल को तोड़ने एवं शाश्वत जीवन मूल्य एवं प्राचीन गौरवमयी संस्कृति एवं संस्कारों का  निर्वहन करने तथा समाज में समानता स्थापित करने में समर्थ हो सकता है।
      कोटा जिले में सांगोद महाविद्यालय की प्राचार्य और साहित्यकार डॉ.अनिता वर्मा का कहना है साक्षरता,  ज्ञान के साथ-साथ परिवेश और जीवन दर्शन को समझने की क्षमता विकसित करने में सहायक हुई है । साक्षर मनुष्य अपने आचार विचार व व्यवहार में आत्मविश्वास के साथ सामाजिक सरोकार से जुड़कर एक नवीन परिवेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। मनुष्य समाज की  मूल धुरी है। उसके साथ समस्त सामाजिक संदर्भ जुड़े होते है। अतः प्रत्येक के लिए साक्षरता अनिवार्य है। साक्षरता से ही सशक्त समाज का निर्माण संभव है।
     राजकीय महाविद्यालय बारां की सहायक प्रोफेसर डॉ. हिमानी भाटिया  का कहना है
साक्षरता एक अच्छे सुसज्जित समाज के निर्माण की आधारशिला है यह व्यक्ति को सोचने और समझने की शक्ति प्रदान करती है। अगर मनुष्य साक्षर होगा तो वह अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति सजग रहेगा, उसमें एक अच्छे समाज का विकास करने की शक्ति होगी अगर कोई व्यक्ति शिक्षित होता है तो वह अपने परिवार समाज में एक सही निर्णय लेने और बड़ी से बड़ी समस्या का सामना करने की क्षमता रखता है। 
      कोटा की साहित्यकार डॉ. कृष्णा कुमारी का कहना है सब से अहम् सवाल है निरक्षरों को साक्षरता की उपादयेता समझाना,यानी वो सोचते हैं कि अब पढ़ने से कोई लाभ नहीं है। इतने समय में वह दो पैसे ही कमा लेंगे। शिक्षक ही इस प्रसंग में उन की मदद कर सकता है। केवल हस्ताक्षर का ही कितना महत्त्व है, अपना नाम लिख लेना, पढ़ लेना गौरव की बात है। शिक्षक उन्हें समझाता है कि साक्षर हो जाने के बाद संसार की हर पुस्तक को वह पढ़ सकते हैं और जब पढ़ना आ जाता है तब कोई भी व्यक्ति,कुछ भी, कहीं से भी लिख-पढ़ कर बहुत लाभ उठा सकता है।  दुनिया की हर किताब पढ़ कर महान विद्वान बन सकता है. और यदि सफर कर रहा है तो वह बस पर शहर या गाँव का नाम पढ़ कर मालूम कर सकता है कि अमुक बस कहाँ जायेगी। उसे इस के लिए औरों के आगे हाथ जोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 
      कोटा के एडवोकेट अख्तर खान अकेला का कहना है कि यक़ीनन सशक्त समाज के निर्माण के लिये साक्षरता की आवश्यक भूमिका है, लेकिन साक्षरता कोन सी, सिर्फ क ख ग का ज्ञान ही साक्षरता नहीं , बच्चे की परवरिश कैसे हो , उसे विनम्रता , विधि , नियमों का पालन करने वाला कैसे बनाएं , तात्कालिक बीमारियों में दादी माँ के नुस्खे का उपयोग कैसे करें, आकस्मिक परेशानियों, विपदा का मुकाबला कैसे हो , चारित्रिक शिक्षा के साथ आदर्श समाज कैसे हो, भाईचारा , सद्भावना कैसे हो इसके लिये भी  साक्षर जागरूकता की महती आवश्यकता है।
     कोटा की शिक्षिका और साहित्यकार  डॉ. अपर्णा पाण्डेय का कहना है उत्कृष्ट समाज का निर्माण शिक्षित, राष्ट्रीय  चेतना से युक्त, कर्मठ नागरिकों से ही संभव है । जब तक किसी भी राष्ट्र के नागरिक बौद्धिक रूप से ,मानसिक रूप से, आत्मिक रूप से सकारात्मक चिंतन नहीं करेंगे तब तक सशक्त समाज का निर्माण संभव नहीं है । मन वचन और कर्म से एकरूप हो जाने पर ही देश सशक्त बन सकता है । देश में साक्षरता का दर भले ही बढ़ गया है, परंतु मानवीयता और नैतिकता का स्तर निरंतर गिरता ही जा रहा है, जो किसी भी प्रकार राष्ट्र के हित में नहीं है। स्वार्थ कभी भी राष्ट्र से बढ़कर नहीं हो सकता ।  मुझे लगता है साक्षर होने से पहले आवश्यक है- मनुष्य होना । प्रेम ,दया, करुणा ,उदारता, सहयोग ऐसे मानवीय मूल्य है, जो हर काल में समाज के लिए उपयोगी रहेंगे ही।
    कोटा  में एक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका और साहित्यकार डॉ. वैदेही गौतम कहती हैं कि "विद्या ददाति विनयंं, विनयाद् याति पात्रताम्" विद्या से विनम्रता आती है, विनम्रता से व्यक्ति सभ्य समाज का पात्र बनता है।  समझदार व साक्षर सक्रिय नागरिक बन अपनें अधिकारों के प्रति जागरूक , स्वास्थ्य के प्रति सजग, नारी को सशक्त व स्वतंत्र  बनाने में योगदान, लैंगिक समानता का भाव, उचित निर्णय क्षमता, सामाजिक कुरूतियों को दूर करने वाला, नवीन कौशल व परिवर्तन को स्वीकारना, आत्मविश्वास से पूर्ण तथा कुशल मानव संसाधनों के विकास में सहायक होता है। साक्षर व्यक्ति सामाजिक रूढियों, परम्पराओं, और परिवर्तन में सामंजस्य बैठाता हुआ विकास की ओर अग्रसर होता है। 
     जयपुर की साहित्यकार अक्षयलता शर्मा का कहना है तन-मन से स्वस्थ, आत्मबली, बुद्धिमान, ज्ञानवान धनवान आत्मनिर्भर व्यक्तियों से निर्मित समाज ही सशक्त समाज होता है। साक्षरता से इन गुणों का विकास कर आत्मबल बढ़ता है आते समझ विकसित हो कर समस्याओं के निराकरण की क्षमता बढ़ती है। कोटा के रेलवे से सेवा निवृत एक्सियन राम मोहन कौशिक कहते हैं साक्षरता व्यक्ति को स्वतंत्र ,स्वावलंबी , समझदार, आर्थिक  दृष्टि से मजबूत और सामाजिक बनाती है। व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक विकास हेतु भी साक्षरता की महती भूमिका है । राष्ट्र निर्माण हेतु आधुनिक समय की माँग के अनुसार डिजिटल डाटा, लेन,देन, विचार विनिमय तो इसके  बिना संभव ही नहीं है ।   
      कोटा की शिक्षिका और साहित्यकार संजू श्रृंगी का मानना है कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति का मापदंड उसकी आर्थिक स्थिति या भौतिक संसाधन मात्र नहीं बल्कि उसके नागरिकों का बौद्धिक स्तर और नैतिक चेतना भी होती है। और इन दोनों  का आधार साक्षरता है।  साक्षरता के धरातल पर ही न्याय, समानता और प्रगति की इमारत खड़ी हुई है और आदर्श समाज की परिकल्पना की और राष्ट्र अग्रसर है।  कोटा की साहित्यकार पल्लवी दरक न्याती का कहना है  पुरुषों के साथ महिलाओं की साक्षरता ने समाज को दोहरी सशक्तता प्रदान की है । साक्षरता विकास से ही आज महिलाएं हर  क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी तो कर  ही रही हैं वरन कुछ क्षेत्रों में उनसे आगे हैं। सामाजिक क्षेत्र में पर्दा प्रथा, बाल विवाह , छुआछूत, महाजन के कर्ज और सूद से निजात जैसे कई क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव साक्षरता विकास का ही परिणाम हैं।
     बूंदी की साहित्यकार डॉ. सुलोचना शर्मा  कहती हैं कि हमारी संस्कृति, धर्म, पर्व और संस्कारों से जुड़ा ज्ञान बुजुर्गों, विशेषकर महिलाओं के पास दोहों, कहावतों व लोकोक्तियों के रूप में सुरक्षित है। परंतु साक्षरता के अभाव में वे इसे न तो लिपिबद्ध कर पाते हैं और न ही ग्रंथों का अध्ययन कर नई पीढ़ी को तर्कपूर्ण ढंग से समझा पाते हैं। सशक्त समाज के निर्माण में साक्षरता की भूमिका का अपना सर्वोच्च महत्व है। कोटा की साहित्यकार डॉ. सुशीला जोशी कहती हैं समाज और राष्ट्र के उत्थान तथा सामाजिक प्रगति की आधारशिला के लिए साक्षरता बहुत ही जरूरी है। साक्षरता से समाज में फैली कुरीतियां दूर होती हैं जैसे भ्रूण हत्या ,महिला उत्पीड़न स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और साक्षरता मनुष्य में आत्मविश्वास पैदा  होता है।
कोटा की साहित्यकार डॉ. शशि जैन कहती हैं कि साक्षरता सशक्त समाज की नींव है। यह व्यक्ति को ज्ञान, जागरूकता और आत्मविश्वास देती है। शिक्षा से लोग अपने अधिकार समझते हैं, कुरीतियों से मुक्त होते हैं और प्रगति की राह पकड़ते हैं। साक्षर समाज में समानता, रोजगार और विकास के अवसर बढ़ते हैं। यह सामाजिक न्याय, लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। साक्षरता ही सशक्त, समृद्ध और संस्कारित समाज का आधार है। शिक्षित समाज ही देश की उन्नति में भागीदारी निभाते हुए देश को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाते हैं।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like