सोनीपत की लेखिका मुकेश दुहन ' मुकू ' की कृति " कुछ कहता है बादल - लघु कविता संग्रह " एक ही विषय बादल को ले कर लिखी गई १०१ लघु कविताओं का संग्रह है। प्रकृति के साथ मनुष्य का सदैव से गहरा संबंध रहा है परन्तु आज जब की जंगल कट रहे हैं, पानी कम बरसने लगा है, पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, नदियां सिमट रही हैं ऐसे में समाज को जागृत करने में रचनाकार की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
प्रकृति के महत्वपूर्ण तत्व बादल को ले कर लिखी गई इनकी लघु कविताओं में उमड़ते घुमड़ते बादल , काली घटाएं ,बदलते पीले, लाल, केसरिया रंग और बनते बिम्ब, बादल से बरसया पानी, पानी की उपादेयता, बारिश से उत्पन्न होते दृश्य, प्रेमियों को लुभाती वर्षा, पहाड़ों की हरियाली, बहती नदियां और झरने आदि का मन भावन चित्रण किया है। कविताओं में बादल की पहली फुहार का आनंद है तो सावन की झड़ी भी है। बादलों में बनते इन्द्रधनुष का आनंद भी है। बच्चों के झपाक से नहाने की मस्ती है। हवा और बादल की अठखेलियां हैं तो उड़ते बादल भी। वर्षा से सजे खेत की आभा भी है। लघु कविताओं में प्रकृति और इंसानी बादल के कई रूप दिखाई देते हैं। कविताएं बड़ों के साथ-साथ बच्चों के लिए भी आनंददायी और प्रेरक हैं।
" चलते-चलते" कविता में ........"चलते-चलते बादल कुछ देर / ठहर जाता है/ कभी किसी देवदार पर / ऊँचे सागौन पर /लंबे खड़े चीड़ पर / तो कभी किसी पहाड़ पर / झक सफ़ेद नरम और मुलायम / रुई के फाहे - सा ।" ( पृष्ठ ४ )
" बादल की ओट" कहती है........ " देख मुझे नज़र भर /आजकल बादल की ओट में/ छुप जाता है चाँद /करता है फुसफुसा कर/ कुछ बातें /और फिर ज़रा देर/ तक मुस्कराता है/
बादल की ओट में चाँद ।" ( पृष्ठ ६ )
"भागता बादल" कहता है, "काले हो चुके आसमान में /जब देखती हूँ / छोटे भागते हुए/ काले और सफ़ेद बादल /तो याद आ जाती है / दादी-नानी की सुनाई गई कहानियाँ/ कहती थी वो-काला बादल बरसने जा रहा है/ और सफेद बादल समुद्र से पानी भरने जा रहा है /और अब मैं यही कहानी अपने बच्चों को सुनाती हूँ।" ( पृष्ठ ८ )
" कागज़ की कश्ती" का भाव भी देखिए......
" आसमान में छाए बादल देखकर / बरसने से पहले ही / छोटे बच्चे मिलकर /अपने बड़ों के साथ / बनाने लग जाते है / कागज़ की कश्तियाँ / खाते रहते है झिड़कियाँ / फाड़ने पर / कापी का कोई नया पन्ना / फिर भी लाते है / वो नए-नए पन्ने या कोई पुराना अखबार/ बनाने के लिए एक और कश्ती ।" ( पृष्ठ ९ )
" सतरंगी बादल " में लिखती हैं, " स्वागत करने के लिए सूरज का / सुबह और शाम को / नीले-नीले आसमान पर / सज जाते है / सतरंगी बादल / और इस सतरंगी आभा से / अलंकृत हो जाती है सारी की सारी प्रकृति / रोमांचित हो जाता है/ इस जग का कण-कण ।" ( पृष्ठ १२)
" दीवाना बादल" कहता है, " जब भी गिरती है बादल की गोद से / मौसम की पहली-पहली बूँद/ तब उठती है धरती के रोम-रोम से / सौंधी महक / हवाओं की तरंग के साथ / जब वो सौंधी महक / बादल के पास पहुँचती है / तो मेरे साथ-साथ बादल भी / हो जाता है दीवाना / उस मिट्टी की सौंधी महक का / और इसी दीवानेपन में / बरस जाता है / वो थोड़ा सा और । " ( पृष्ठ १५ )
" वो दिन " में बचपन के भाव देखिए, " वो भी क्या दिन थे / जब हम भी करते थे / बादल का इंतज़ार / मौसम की पहली-पहली बारिश में / भीगने का अलग ही था मजा / तब ना तो किसी बीमारी का डर सताता था / और ना ही बिजली गिरने का डर होता था / डर था तो केवल एक / वो भी माँ की प्यारी सी झिड़की का / और वो भी हमें भीगा देख / कहीं गायब ही हो जाती थी ।" ( पृष्ठ १९ )
" कभी -कभी " के सुंदर भाव भी देखिए, " बस
कभी- कभी / बादल जब आ जाता है छत पर/ मेरी और बरसना चाहता है जी भरकर/ लौट जाता है / वो उल्टे पाँव / बस टपका कर / दो- चार बूँदें / देख कर खाट पर /धुल रखे हुए गेहूँ फैलाए हुए धान / सूखने के लिए रखे हुए बड़िया और पापड़ / कपड़ा बाँध कर छोड़ी हुई कुछ अचार की बरनियाँ / और पास ही बैठी हुई छोटी सी बिटिया और माँ ।" ( पृष्ठ ३२ )
" उम्मीद " की उम्मीद भी देखिए, " कुछ कहता बादल / तपती बालू / और गर्म हवा के झोंके / कितना जलाते है / मरुस्थल में रहने वाले / सब प्राणियों को पर / वो हार कहाँ मानते है/ जिंदगी से उम्मीद का हाथ / थाम कर रखते है/ हरपल पता है उन्हें /आ ही गया है तब तो/
आज नहीं तो कल/ ज़रूर बरसेगा/ ये काला बादल ।" ( पृष्ठ ४४ )
" सात रंग" भी कहते हैं, " बरसात के ठहर जाने पर / बादलों के छंट जाने पर/ धुंध के हट जाने पर / एक बार फिर दिखाई देगा / कुछ बेरंग आँखों को / कुछ रुकी हुई साँसों को / आसमान के इस छोर से उस छोर तक / फैला हुआ समेटे सातों रंग इन्द्रधनुष ।"( पृष्ठ ५७ )
" नदी और बादल" कविता भी कहती है, "धरती पर बहती हैं नदी / और / ऊपर आसमान में / बहते हैं बादल / नदी बस आगे -ही-आगे बहती जाती है / और लक्ष्य है उसका/ समुद्र में मिल जाना / और बादलों का बहाव तय करती है /हवा / जाना हैं उसको भी ज़मीं से मिलने / बूंदों में ढलकर ।"( पृष्ठ १०१ )
संग्रह की अन्य रचनाओं में मीठा बादल, काला बादल, भागता बादल, आंखों का बादल, दीवाना बादल, बादल की छांव, बादल का मन, बरसता क्यूँ नहीं, गैस वाला बादल, तेरे शहर का बादल, कजरारे बादल, बेमौसम बादल, टप - टप, झरता बादल, कृत्रिम बादल, बादलों का शहर सभी में विशेषण के साथ बादल के कई रूप सामने आते हैं।
एक ही विषय पर लघु कविताओं के सृजन और उनके भाव रचनाकार के चिंतन का प्रतिबिंब है। आवरण पृष्ठ विषयनुरूप है। भाषा अत्यंत सरल, सहज और विषयानुकूल है। कवियित्री लिखती है, " हम सभी को प्रकृति ने ही बनाया हैं । प्रकृति के पाँचों अवयव मिलकर ही हमें बनाते हैं और उसके बाद भी जीते जी हमारा पालन पोषण करते हैं और इस संसार से विदा लेने के बाद भी प्रकृति ही अपनी गोद में हमें पनाह देती हैं। प्रकृति के चक्र को चलायमान रखने के लिए बादल का जलीय चक्र भी बहुत महत्वपूर्ण है जो सारी ही प्रकृति को नवजीवन प्रदान करता हैं । प्रश्न बस यही रह जाता है कि हम अपनी प्रकृति को क्या
और कितना लौटा रहे हैं, शायद अंश मात्र भी नहीं...... तो उठो, चल निकलो प्रकृति सम्मत बनो और अपनी आने वाली पीढियों के लिए एक सुरक्षित आवरण तैयार करो ।" प्राक्कथन प्रो. रूप देवगुण ने लिखा है।
पुस्तक : कुछ कहता है बादल ( लघु कविता संग्रह)
लेखिका : मुकेश दुहन ' मुकू ', सोनीपत
प्रकाशक : शॉपिजन. इन अहमदाबाद
मूल्य : ३१० रुपए
आईएसबीएन : ९७८-९३-५९१०-२६४-२