ॐ स्वस्ति श्री कला साहित्य संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, राजस्थान सरकार द्वारा आयोजित सांस्कृतिक सजन पखवाड़े के अंतर्गत राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर एवं साहित्य संस्थान, जनार्दनराय नागर राजस्था डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी मैं उद्धघाटन समारोह के कार्यक्रम मे मां सरस्वती की वंदना करते हुए कार्यक्रम को प्रारंभ किया गया।
कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन करते हुए साहित्य संस्थान के डॉ कुलशेखर व्यास ने साहित्य संस्थान विभाग की गतिविधियों पर विस्तृत रूप से अपने विचार व्यक्त करते हुए वेदो में याज्ञ परंपराओं एवं उपकरण पर अपने विचार व्यक्त किए साथ ही आए हुए अतिथियों का स्वागत अभिनंदन किया।
कार्यक्रम में अध्यक्षता के पद पर विराजमान माननीय कुलपति महोदय, प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत कुलगुरु, जनार्दन राय नगर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति एवं सभ्यता का भव्य प्रसाद जिस दृढ आधारशिला पर प्रतिष्ठित है, उसे वेद के नाम से जाना जाता है। ये ही साश्वत यथार्थ ज्ञान राशि के समुच्चय हैं। इन्हें वैदिक ऋषियों ने अपने मन या बुद्धि से कोई कल्पना न करके एक साश्वत अपौरुषेय सत्य की अपनी चेतना के उच्चतम स्तर पर अनुमति की और उसे मन्त्रों का रूप दिया। वेद शब्द का अर्थ ज्ञान है और वेद ज्ञान के अक्षय तथा अक्षुण्ण भण्डार हैं। वेद प्राचीन काल में आर्यों तथा वर्तमान में समग्र विश्व के लिए ज्ञान-विज्ञान के विश्वकोष हैं। वेद भारतीय पाण्डित्य प्रतिमा का महासागर है। ऋषि मुनियों की वाणी का संग्रह है, जिसमें प्राचीन मुनियों ने अपने सम्पूर्ण ज्ञान से युक्त वैदिक मंत्रों का संकलन किया है। ऋषियों ने जिस महान ईश्वरीय ज्ञान का साक्षात्कार किया वही ज्ञान जिन शब्दों नियमों या वाक्य समूहों में निबद्ध है, उन्हीं शब्द समूहों वाक्य समूहों के अभिधान मन्त्र को वेद कहा गया। साथी यज्ञ शब्द एवं यज्ञ कुंड उपकरण, ऋषि परंपरा भारतीय संस्कृति ज्ञान विज्ञान मानव कल्याण आदि पर अपने विस्तृत विचार व्यक्त किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ लता श्रीमाली, निदेशक, राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए अकादमी द्वारा किए जा रहे कार्यों पर अपने विस्तृत विचार व्यक्त किये साथ ही उन्होंने यज्ञ के बारे में एवं उपकरणों के बारे में बताते हुए यज्ञ किस प्रकार करना चाहिए यज्ञ करने से क्या फल मिलता है, और यज्ञ के माध्यम से ईश्वर को हवी पहुंचने का कार्य किया जाता है। साथ ही मंत्र, अग्नि बीज मंत्र, द्वारा किस प्रकार सिद्ध करें कैसे शत्रुओं को वश में करें, 16 संस्कार, मुद्राओं के बारे में, गुरु आदि पर अपने विस्तृत रूप से विचार व्यक्त किया
कार्यक्रम में विशिष्ट श्री रवींद्र श्रीमाली, पूर्व सभापति, नगर परिषद, उदयपुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि यज्ञ नो प्रकार के होते हैं और उनका सबका अपना-अपना महत्व है यज्ञ को करने के लिए शुद्धता, मंत्र का सही उच्चारण एवं शुद्धता, सत, रज, तय, ब्रह्मा विष्णु महेश एवं उपकरणों पर भी विचार करते हुए ध्रुवा, प्रोक्षणी, हस्त, अरणी मंथन, भोज पात्र, पंचपात्र आदि के माध्यम से ईश्वर को हवी पहुंचने का कार्य किया जाता है।
उद्घाटन सत्र के समापन के पश्चात वेदों में यज्ञ परंपरा एवं उपकरणों पर विद्वानों द्वारा शोधपत्रों पर पत्र वाचन किया गया। जिसकी अध्यक्षता डॉ महेश दीक्षित, कुलपति श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निंबाहडा, नेकी। जिनमें डॉ सुरेंद्र द्विवेदी, डॉ नीरज शर्मा, डॉ पंकज कुमार शर्मा, डॉ रचना जोशी, डॉ शोभालाल ओदिचय, डॉ भगवती शंकर व्यास, विकास आमेटा, आदि ने शोध पत्र वाचन किया
कार्यक्रम के समापन सत्र में अध्यक्षता करते हुए डॉ तरुण श्रीमाली, रजिस्ट्रार, जनार्दन राय नगर राजस्थान विद्यापीठ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए वेदों , यज्ञ एवं उपकरण आदि पर अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर नीरज शर्मा ने वेदों पुराणों पर अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉक्टर महेश दीक्षित कुलपति श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय निंबाड़ा ने भी अपना उपकरणों एवं यज्ञों पर अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. कुलशेखर व्यास एवं डॉ महेश आमेटा ने धन्यवाद करते हुए वैदिक पार्वती स्रोत के साथ आभार व्यक्त किया गया ।
कार्यक्रम में प्रोफेसर सरोज गर्ग, डॉक्टर बलिदान जैन, डॉक्टर पारस जैन, डॉक्टर तिलकेश आमेटा , डॉ मिनेश भट्ट, डॉ शोभा लाल औदिच्य, डॉ रचना जोशी, जय किशन चौबे, गणेश नागदा, डॉ सुनील त्रिपाठी, डॉ मनोहर लाल मुंदड़ा, आदि ने भाग लिया तथा लोकमान्य तिलक प्रशिक्षण शिक्षण महाविद्यालय डबोक के छात्रों ने भी भाग लिया।