कोटा देस – परदेस में ” जल पुरुष ” कहे जाने वाले राजेंद्र सिंह ने कहा कि कोटा वालों के लिए चम्बल नदी एक खजाना है, शाहबाद के जंगल बचाना है और लोगों को जगाना है । श्री सिंह गुरुवार को कोटा में पत्रकारों से बतिया रहे थे । उन्होंने कहा- चम्बल नदी जो देश भर में अच्छी, स्वस्थ और साफ समझी जाती थी,आज बीमार है।
उन्होंने कहा ” चम्बल को हृदय रोग है और उसका इलाज ब्यूटी पार्लर में कराया जा रहा है. ” उन्होंने कहा – चम्बल की हत्या हो रही है और सरकार उसके तट पर निर्माण कराके वाहवाही लूट रही है. उन्होंने कहा कि चम्बल नदी के किनारो पर बजाय निर्माण के पेड़ लगा कर इसे हरा भरा किया जाना चाहिए, पर ऐसा नहीं किया गया।
श्री सिंह ने शाहबाद के जंगल की संभावित तबाही पर गहरी चिंता जताई. उन्होंने कहा – शाहबाद में जिस किसी कम्पनी को पेड़ काटने की इजाजत दी है, संभावना है कि वहाँ तकरीबन 25 से तीस लाख पेड़ कटेंगे भले ही कम्पनी के लोग पेड़ों की संख्या कम बताएं पर भविष्य में वहाँ की परिस्थितिकी का विनाश होगा. वाटर मेन ने कहा कि मैं इस भयावह मंजर से डराने नहीं आया हूँ पर लोगों को जगाने आया हूँ.
चम्बल के बारे में जो जो बातें श्री राजेंद्र सिंह ने कही, वही बातें वह करीब डेड़- दो साल पहले जब कोटा प्रवास पर आए थे कह चुके थे. जब इन पंक्तियों के लेखक ने उनसे पूछा कि यही सबकुछ आपने दो साल पहले भी कहा था, यहाँ तक कि कुछ वाक्य तो आपने हूबहू वही और उसी अंदाज में दोहराये हैं. क्या तब से अब तक इस मुद्दे पर आपका संगठन दो चार कदम भी आगे बड़ सका है, या पीछे खिसका है अथवा स्थिति जस की तस ही है?
इस पर श्री राजेंद्र सिंह ने कहा कि इस बात का जवाब तो यहाँ के स्थानीय साथियों में से किसी को देना चाहिए. तब चम्बल संसद के एक महानुभाव ने कहा कि इस विषय पर हमारी उपलब्धि ऋणात्मक रही है।
चम्बल संसद के अध्यक्ष कुंज बिहारी नंदवाना ने कहा कि हम आप लोगों (मीडिया वालों ) से उम्मीद करते है कि आप जन जन को जागृत करें। पत्रकार वार्ता में उपस्थित एक वरिष्ठ पत्रकार ने जब कहा कि चम्बल संसद के 15- 20 लोग अपने साथ किसी को जोड़ना ही नहीं चाहते. वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि पर्यावरण के क्षेत्र में ही काम कर रही – ” हम लोग ” जैसी संस्था तथा इसी तरह की अन्य संस्थाओ को साथ ले कर इन मुद्दों पर जन आंदोलन की भूमिका बनानी चाहिए तो चम्बल संसद के संयोजक ब्रजेश विजय ने कहा कि अन्य संस्थाएं साथ चलने को राजी ही नहीं होती.
एक अन्य पत्रकार के यह पूछने पर कि लोगों को जोड़ते ही नहीं हो तो इस मुद्दे पर जन आंदोलन भला कैसे खड़ा कर सकोगे?
इस पर कोई ठीक ठाक जवाब नहीं मिल सका।
पत्रकार वार्ता के दौरान जल पुरुष कहे जाने वाले राजेंद्र सिंह की बातचीत से ऐसा लगा जैसे उनकी सारी उम्मीदें और आरोप सरकार पर हो. एक स्वयंसेवी संघठन का जोश खरोश, आंदोलन की ताकत और जन समर्थन अर्जित कर पाने का जज्बा सिरे से ही गायब -सा लगा.
बातचीत खत्म करने के बाद श्री राजेंद्र सिंह के शुक्रवार के दिन होने वाले कार्यक्रमो में से आयोजकों ने सिर्फ दिन में 11 बजे एक शिक्षण संस्थान में आयोज्य कार्यक्रम की जानकारी दी. जब पूछा गया कि क्या इसके अलावा कोई और कार्यक्रम नहीं है या बाकी कार्यक्रमों की जानकारी नहीं देना चाहते, तो सकपकाये -से आयोजकों ने कहा कि वैसे तो और भी कार्यक्रम है पर उनकी सूचना देने के लिए हम अधिकृत नहीं हैं।
पत्रकार वार्ता के लिए मंच के पीछे लगे बैनर पर जो विषय लिखा गया था, शायद उसकी जानकारी मेहमान वक्ता को थी ही नहीं, क्योंकि उस विषय पर कुछ भी नहीं बोला गया। बैनर पर जिन मेजमान संस्थाओं के नाम लिखे गए थे, उसकी संख्या के अनुपात में भी आयोक गण उपस्थित नहीं थे। बहरहाल जल पुरुष की पत्रकार वार्ता कोटा में सामान्य / असामान्य जल चर्चा तक सिमट कर रह गई।