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भारतीय भाषा, संस्कृति और समाजोपयोगी शिक्षा का संगम" पर मंथन

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06 Sep 25
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भारतीय भाषा, संस्कृति और समाजोपयोगी शिक्षा का संगम" पर मंथन

कोटा  आज राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय , कोटा और काव्य मधुबन संस्था के संयुक्त तत्वाधान में भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती पर एक विचार संगोष्ठी का आयोजन रखा गया जिसका विषय :”राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भारतेंदु हरिश्चंद्र की दृष्टि: भारतीय भाषा, संस्कृति और समाजोपयोगी शिक्षा का संगम” रखा गया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथी डा अतुल चतुर्वेदी, अध्यक्षता डा उषा झा , विशिष्ट अतिथि डा विवेक मिश्र एवं डा वेदेही गौतम , गेस्ट ऑफ ऑनर शरद उपाध्याय , मुख्य वक्ता भगवती प्रसाद , विषय प्रवर्तक डा दीपक कुमार श्रीवास्तव , मंच संचालन शशि जैन ने किया |  

 

उदघाटन सत्र मे विषय प्रवर्तन करते हुये संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष डा . दीपक कुमार श्रीवास्तव ने निज भाषा की भूमिका और इस दौर में उसकी प्रासंगिकता पर “भारतेंदु हरिश्चंद्र की दृष्टि में शिक्षा का स्वरूप चरित्र निर्माण, भाषा-संस्कृति संरक्षण और समाजोपयोगी ज्ञान पर आधारित था, जिसे उन्होंने आधुनिकता व पाश्चात्य विज्ञान से जोड़कर नवजागरण का रूप दिया। यही आदर्श आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी प्रतिफलित होते हैं।

 

इस संगोष्ठी में भारतेंदु के हिंदी साहित्य के योगदान की चर्चा की गई ।विशिष्ट अतिथि डॉ विवेक मिश्र ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि- नई शिक्षा नीति में जो मातृ भाषा पर बल दिया वही कमोबेश बात भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कही थी निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल । उन्होंने भारतेंदु के खड़ी बोली स्थापना में योगदान और पत्रकारिता में महत्त्वपूर्ण भूमिका की चर्चा की । शरद उपाध्याय ने कहा कि भारतेंदु का नाटक अंधेर नगरी चौपट राजा आज चरितार्थ हो रहा है , स्थितियां वही की वही हैं और कहीं कोई सुधार नहीं है ।

 

डॉ वैदेही गौतम ने भारतेंदु के नाटक की चर्चा की और उनको हिंदी मौलिक नाटकों का प्रणेता बताया । भगवती प्रसाद गौतम मुख्य वक्ता ने भारतेंदु के साहित्य लेखन में विविधता और शैली वैशिष्ट्य पर अपने विचार रखे । आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि मात्र 35 साल की अल्पायु में भारतेंदु 4 पत्रिकाएँ और 175 पुस्तकों की रचना कर गए जो उल्लेखनीय काम है । उन्होंने खड़ी बोली , जन छन्द अपनाने की उनकी प्रवृत्ति पर भी चर्चा की और उनके योगदान को महती बताया । कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉ उषा झा थी उन्होंने भारतेंदु को युग प्रवर्तक साहित्यकार कहा । जिधर देखिए पहली पत्रिका , पहला नाटक आपको भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाम ही मिलेगा । उन्होंने जन जागरण का काम किया । । आयोजन संचालन डॉ शशि जैन ने किया ।आयोजन में डॉ गणेश तारे , चंद्र प्रकाश मेघवाल , अशोक हावा, सुषमा अग्रवाल और प्रज्ञा गौतम भी उपस्थित थे ।


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