प्रकृति का उपयोग त्याग की भावना से हो- प्रो. बीएल चौधरी
पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनानी होगी वैदिक शैली-परम्पराएं- प्रो. सारंगदेवोत
उदयपुर / भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 169वीं जयंती पर बुधवार को राजस्थान विद्यापीठ के संघटक लोकमान्य तिलक शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय के परिसर में स्थापित लोकमान्य तिलक की प्रतिमा पर कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत, कुल प्रमुख कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर, सुखाडिया विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. बी.एल. चौधरी, प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. अमी राठौड़, डॉ. रचना राठौड, डॉ. भूरालाल श्रीमाली़ ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया।
महाविद्यालय के सभागार में पर्यावरण संरक्षण एवं भारतीय दृष्टिकोण विषय पर 55वीं तिलक आसान व्याख्यान माला में क ुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने पर्यावरण, जल, जंगल, जमीन और पंचतत्वों के अंतर संबंधों को रेखांकित करते हुए भारतीय ज्ञान पद्धतियों में पर्यावरण संरक्षण के लिए अपनाई जाने वाले तरीकों को बताया। सारंगदेवोत ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा संस्कृति, अध्यात्म ,जीवन दृष्टिकोण है इसको आधार बना कर जीवन शैली पर विचार मंथन की आवश्यकता है। उन्होंने वर्तमान वैश्विक परिदृश्य और पर्यावरणीय स्तिथियों में संतुलन और सामंजस्य बनाए रखने के लिए वैदिक परंपराओं को अपनाए तथा भावी पीढ़ियों के लिए प्रकृति का संरक्षक के रूप में उपयोग करे न कि उपभोगता के रूप में। उन्होंने राष्ट्रीय और औद्योगिक प्रगति के लिए स्वशासन को मूलाधार बताया।
मुख्य अतिथि सुखाडिया विवि के पूर्व कुलपति प्रो. बीएल चौधरी ने तिलक के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता को बताया। उन्होंने उपनिषदों के माध्यम से बताया कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग त्याग के साथ करें ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए काम आ सके। उन्होंने यज्ञ-योग ,पौधों के गुणों के माध्यम से पर्यावरणीय बारीकियों और महत्व से अवगत कराया। चौधरी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयास और परियोजनाओं की समालोचनात्मक व्याख्या भी की।
अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति बीएल गुर्जर ने पर्यावरण असंतुलन को समाप्त कर संतुलन की स्तिथि बनाने के लिए जनमानस और सरकारी स्तर पर तठस्थ और सकारात्मक साझे प्रयासों की आवश्यकता बताई।
प्रारंभ में प्राचार्य प्रो. सरोज गर्ग ने अतिथियोें का स्वागत करते हुए कहा कि पिछले 54 वर्षो से अनवरत तिलक आसन व्याख्यानमाला का आयोजन किया जा रहा है जिसमें देश-विदेश के अनेकों विद्वानों ने अपने अनुभवों को साझा किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. हरीश चौबीसा ने किया जबकि आभार डॉ. रचना राठौड़ ने जताया।