शहर के ऐतिहासिक तपोभूमि लालीवाव मठ में धुलैण्डी पर फागोत्सव व होली स्नेह मिलन हुआ ।
शहर के लालीवाव मठ में भव्य फागोत्सव व होली स्नेह मिलन का आयोजन हुआ । जिसमें शहर के सभी धर्मानुरागी भक्तों ने भाग लिया व फाग भजनों का भरपुर आनंद लिया ।
महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज के पावन सान्निध्य में ढ़ोल नगारें, पुष्प वर्षा, शंखनाद व जयकारों के साथ भक्तों द्वारा फागोत्सव का श्रीगणेश हुआ । इसके पश्चात दीप प्रज्वलन, गणेश वंदना के साथ फागोत्सव का प्रारंभ किया गया ।
इसके साथ ही लालीवाव मठ द्वारा वागड़ क्षेत्र के पधारे विभिन्न भजन मण्डलों का स्वागत, वंदन एवं अभिनंदन किया गया साथ ही फाग के भजनों की शुरुआत की गई । फागोत्सव में श्री राधावल्लभ हनुमान कथा मण्डल के सानिध्य में सुमीरन करु पहले गजानन से श्री गणेश हुआ इसके बाद एक से एक भजन मारों खो गयो नवलखा हार ओ रसिया होरी में, रंग भरी रंग भरी रंग सु भरी, होरी आई होरी आई रंग सु भरी’’, आज बिरज में होरी रे रसिया, होरी के रसिया, तेरे नैनो में मारी पिचकारी, होरी खेलने आए बालमुकुन्द, भरोसा आपका गुरुदेव संभालों ना करो देरी, साथ अगर गुरुवर का हो तो नाम और इज्जत क्या मांगे, होरी खेले नन्दलाला बिरज में नन्दलाला, राधे श्याम सपनों में आये, दिगम्बर खेले मसाने मे होरी आदि भजनों के साथ सुंदर प्रस्तुति दी जिसमें भक्तों ने फाग भजनों का भगवान व गुरु संग होरी का भरपुर आनंद लिया एवं भक्तों ने अपने जीवन को अध्यात्मिक होरी से रंग डाला । जिसमें बाँसवाड़ा के प्रसिद्ध श्री राधावल्लभ हनुमान कथा मण्डल, श्री रामकृष्ण सत्संग मण्डल, वैष्णव सत्संग मण्डल, श्री हुनमत चरित्र प्रचार समिति, हरिओम सत्संग मण्डल, सत्यनाराण कीर्तन मण्डल एवं लालीवाव मठ शिष्य परिवार उपस्थित रहे ।
भक्ति और मस्ती की होली में झूम उठा रंगा लालीवाव मठ का आंगन बाँसवाड़ा के सूरजपोल स्थित रामानन्द सम्प्रदाय के लालीवाव मठ का आंगन होली की मस्ती के साथ-साथ पुरी तरह से भक्ति की मस्ती में भी रंगा पाया गया । यहां आने वाले श्रद्धालुओं का तन-मन झंकृत हो गया । भगवान की भक्ति में सराबोर श्रद्धालु इस दौरान बेहद उत्साहित नजर आए। इस दौरान भगवान व गुरु संग श्रद्धालुओं ने अबीर, गुलाल, इत्र व फूलों की होली खेली। गुरुआश्रम में भगवान व गुरु संग होली खेलने के लिए श्रद्धालु पहुंचे। इस दौरान होली का नजारा देखते ही बन रहा था। इस फागोत्सव का दृश्य ऐसा था की भगवान बालमुकुन्दजी को प्रेम से झुला झुलाते हुए मठ के महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज बैठे थे और भक्तजन सभी भगवान की होरी के आनन्द में मग्न थे । कार्यक्रम में मौजूद लोग भजनों व गीतों पर जमकर थिरके। उन्होंने बताया यहां आकर ऐसा लगा जैसे गोकुल वंृदावन में बैठे हों।
इस अवसर पर महामण्डलेश्वर हरिओमदासजी महाराज ने भक्तों को कहा की हो..ली.. जो हो गया वो हो गया, आगे की सुधि लें। कब तक पुरानी बातों को याद कर - कर के दुखी होते रहेंगे, जीवन आगे बढ़ने का नाम हैं, यही संदेश हमें संतों की अध्यात्मिक होली से मिलता हैं। आध्यात्मिक होली के रंग रँगे, होली हुई तब जानिये, पिचकारी गुरुज्ञान की लगे । सब रंग कच्चे जाय उड़, एक रंग पक्के में रँगे । पक्का रंग क्या है ? पक्का रंग है ‘हम आत्मा है’ और ‘हम दुःखी है, हम सुखी है, हम अमुक जाति के है....’ यह सब कच्चा रंग है । यह मन पर लगता है लेकिन इसको जाननेवाला साक्षी चौतन्य का पक्का रंग है । एक बार उस रंग में रँग गये तो फिर विषयों का रंग जीव पर कतई नहीं चढ़ सकता ।