’वेद संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं‘
( Read 16932 Times)
02 Feb 18
Print This Page
संसार की सबसे पुरानी पुस्तक कौन हैं? इसका उत्तर है कि चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद संसार के सबसे पुराने ग्रन्थ हैं। ग्रन्थ व पुस्तक का अर्थ होता है कि कोई ज्ञान, कथा, कविता आदि किसी भाशा में लिपिबद्ध रूप में हो। वेद भी इसी रूप में हमें प्राप्त हैं। वेद के सबसे प्राचीन होने का प्रमाण क्या है? इसका उत्तर है कि संसार में कोई भी मनुश्य, ज्ञानी व वैज्ञानिक यह दावा नहीं करता कि संसार में वेद से पूर्व भी कोई ग्रन्थ विद्यमान था। इस कारण वेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ व ज्ञान सिद्ध होता है। यदि देष व विष्व के विद्वानों को वेद से पूर्व के किसी ग्रन्थ के विशय में कुछ ज्ञान होता तो वह अवष्य ही आर्यों की इस मान्यता का खण्डन करते। वेद संसार में सबसे प्राचीन कैसे हैं? इसका उत्तर है कि वेदों का उल्लेख सभी प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थों में बडे आदर के साथ मिलता है। वेदों के आविर्भाव के बाद सबसे पुराने ग्रन्थ ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। ऐतेरेय, गोपथ, षतपथ और ताण्ड्य चार ब्राह्मण ग्रन्थ हैं जो प्राचीनता में वेदों के बाद के हैं व अन्य ग्रन्थों से पूर्व के हैं। यह ब्राह्मण ग्रन्थ ईष्वरीय ज्ञान चार वेदों के व्याख्या ग्रन्थ हैं। वेदों के आविर्भाव के बाद जब कालान्तर में वेदों की व्याख्याओं की आवष्यकता पडी तो ऋशियों ने इनकी रचना की। ब्राह्मण ग्रन्थों के रचना काल में भी चार वेद विद्यमान थे और आज भी हैं। एक तथ्य यह भी है कि ब्राह्मण ग्रन्थ, मनुस्मृति, बाल्मीकि रामायण, महाभारत, दर्षन, उपनिशद, आयुर्वेद के ग्रन्थ तथा ज्योतिश के सूर्यसिद्धान्त आदि प्राचीन ग्रन्थ हैं। इन सभी ग्रन्थों में वेद का उल्लेख मिलता है परन्तु वेद में इससे पूर्व के किसी ग्रन्थ का उल्लेख नहीं मिलता। इससे यह निश्कर्श निकलता है कि वेद इतर सभी ग्रन्थों में सबसे प्राचीन हैं।
वेदों के विशय में एक यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि वेद किसी मानवी लेखक की रचना नहीं है। प्राचीन काल व बाद के काल में किसी विद्वान व ऋशि आदि ने यह नहीं कहा कि वेद किसी मनुश्य वा ऋशि आदि की रचना है। प्राचीन परम्परा के अनुसार वेदों को ईष्वरीय ज्ञान माना जाता रहा है। ऋशि दयानन्द जी ने सत्यार्थप्रकाष में भी वेदों के आविर्भाव की चर्चा की है। उन्होंने वहां अनेक तथ्यों का उद्घाटन किया है। ऋशि दयानन्द जी की मान्यता के अनुसार सृश्टि के आरम्भ में ईष्वर ने जब मनुश्यों को उत्पन्न किया तो उनको अपने दैनन्दिन व्यवहार के लिए व कर्तव्यों का ज्ञान कराने के लिए चार ऋशियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को एक एक वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया था। यदि ईष्वर आरम्भ में अर्थात् मनुश्योत्पत्ति के साथ वेदों का ज्ञान न देता तो आदिकाल के मनुश्य ज्ञान व भाशा के अभाव में अपने जीवन का कोई भी व्यवहार नहीं कर सकते थे। इसलिए ईष्वर ने उन्हें ज्ञान व भाशा दोनों एक साथ दी थी। ज्ञान भाशा में ही विद्यमान होता है। बिना भाशा के ज्ञान का अस्तित्व नहीं होता। आदिकाल की भाशा वेदों की भाशा संस्कृत है। अतः ईष्वर ने अग्नि आदि चार ऋशियों को चार वेद संस्कृत भाशा में दिये थे। विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि मनुश्य कितना भी पुरुशार्थ क्यों न कर ले, वह संसार की आदि वा प्रथम भाशा को नहीं बना सकते। हां एक भाशा के होने पर उसके षब्दों में विकार होकर कुछ परिवर्तनों के साथ नई भाशा अस्तित्व में आ सकती है। इसके अनेक कारण होते हैं। दूरी व भौगोलिक कारण भी भाशा में विकार आदि को उत्पन्न करते हैं।
ईष्वर सर्वव्यापक है। वह इस ब्रह्माण्ड में सर्वत्र विद्यमान है। उसका न आदि है और न अन्त। वह अनादि, अनुत्पनन और अजन्मा है और इसके साथ ही अमर, अविनाषी और अनन्त भी है। ईष्वर सभी पदार्थों में सबसे सूक्ष्म है और सभी जीवों व भौतिक पदार्थों के भीतर भी विद्यमान है। इस कारण उसको सर्वान्तर्यामी कहा जाता है। ईष्वर के अनेक गुणों में एक गुण उसका सर्वज्ञ होना है। इसका अर्थ होता है कि वह सभी प्रकार के ज्ञान व विज्ञान को पूर्णता से जानता है और सर्वषक्तिमान होने के कारण जहां उसको आवष्यकता होती है उसका उपयोग भी करता है। ईष्वर ने अपनी सर्वज्ञता का इस सृश्टि निर्माण, इसके पालन व संचालन तथा मनुश्यादि प्राणियों के षरीरों के निर्माण व संचालन में भी उपयोग किया है। वेदों का ज्ञान भी ईष्वर का नित्य ज्ञान है जिसे वह प्रत्येक कल्प में सृश्टि के आदिकाल में आदि स्त्री-पुरुशों को चार ऋशियों के माध्यम से देता है। इस सृश्टि के आदि में उसने वेदों का ज्ञान पहली बार नहीं दिया है अपितु वह तो अनादिकाल से सभी कल्पों व सृश्टियों में वेदों का ज्ञान देता आया है। इस आधार पर ईष्वर ने असंख्य व अनन्त बार वेदों का ज्ञान सृश्टि के आरम्भ काल में आदि मनुश्यों को दिया है, यह ज्ञात वा सिद्ध होता है। वर्तमान वेद ज्ञान देने की ईष्वरीय प्रकि्रया इस प्रकार रही है कि उसने वेदों का ज्ञान चार ऋशियों की आत्माओं में अपनी सर्वज्ञता व सर्वान्तर्यामीस्वरूप से स्थापित किया है।
वेद ईष्वरीय ज्ञान है इसका प्रमाण है कि वेदों में सभी सत्य विद्यायें हैं। संसार में सभी विद्याओं का विस्तार ईष्वर से वेदों का ज्ञान मिलने के बाद ही हुआ है। यदि वेदों का ज्ञान व भाशा हमें न मिली होती तो संसार में किसी प्रकार की भाशा व ज्ञान न होता। ईष्वर से वेदों का ज्ञान व भाशा मिलने के बाद प्राचीन काल से ही ऋशियों ने षास्त्र रचना करना आरम्भ कर दिया था। हमारे उपनिशद, दर्षन, मनुस्मृति, आयुर्वेद, ज्येातिश आदि अनेकानेक विशयों के ग्रन्थ लिखे गये। इनमें दिये गये ज्ञान को देखकर विद्वान आज भी आष्चर्यान्वित होते हैं। ऋशि दयानन्द जी ने वेदों के आविर्भाव के विशय में इस प्रष्न पर भी विचार किया है कि ईष्वर ने आदि सृश्टि में मनुश्यों को बाल्यावस्था, युवावस्था व वृद्धावस्था में से किस अवस्था में बनाया था। इसका तर्कपूर्ण उत्तर देते हुए ऋशि दयानन्द जी ने लिखा है कि यदि ईष्वर अमैथुनी सृश्टि में मनुश्यों को बाल अवस्था में बनाता तो उनके पालन के लिए माता-पिता व आचार्यों की आवष्यकता होती जो कि उस समय नहीं थे। यदि वृद्धावस्था में बनाता तो यह सृश्टि वृद्धों से सन्तानों की उत्पत्ति न होने के कारण आगे चल नहीं सकती थी। अतः आदि सृश्टि में ईष्वर ने मनुश्यों को युवावस्था में ही उत्पन्न किया था, यह विदित होता है। अतः वेदों का ज्ञान भी युवावस्था के ऋशियों को दिया गया जिन्होंने वह ज्ञान ब्रह्मा जी को कराया और उन्होंने युवावस्था वाले अन्य स्त्री पुरुशों को कराया था। वही परम्परा आज तक चली आई है। हमारा सौभाग्य है कि सृश्टि के १.९६ अरब वर्श व्यतीत हो जाने के बाद आज भी वेद हमें मूल रूप में उपलब्ध है। इसके लिए सृश्टि के आरम्भ से महाभारत काल व अब तक उन सभी लोगों की वर्तमान मानवजाति ऋणी है जिन्होंने वेदों को सुरक्षित रखा। ईष्वर से प्राप्त वेदों का जैसा ज्ञान है वैसा महत्वपूर्ण ज्ञान व ग्रन्थ संसार में अन्य कोई नहीं है।
वेदों से ईष्वर, जीव व प्रकृति के सभी पदार्थों का यथार्थ स्वरूप का बोध होता है। इन विशयों का ज्ञान वेदों सहित उपनिशदों, मनुस्मृति, दर्षनग्रन्थ, आयुर्वेद आदि के ग्रन्थों में भी उपलब्ध होता है। यह भी उल्लेखनीय है कि वेदों से उपलब्ध ईष्वर व जीवात्मा के स्वरूप का समस्त ज्ञान विज्ञान व तर्क आदि की कसौटी पर भी सत्य सिद्ध होता है। वेद संसार में सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। इसमें ईष्वर प्रदत्त ज्ञान विज्ञान उपलब्ध है। इसी ज्ञान विज्ञान व वेदानुमोदित कर्तव्यों के निर्वाह से मनुश्य ईष्वर व जीवात्मा का साक्षात्कार करने के साथ धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है। अन्य कोई मार्ग मनुश्य की आत्मा की उन्नति व ईष्वर की प्राप्ति का नहीं है। वेदों का स्वाध्याय व तदनुरूप आचरण ही मनुश्य को साधारण स्थिति से उन्नत कर उसे देव, विद्वान, ज्ञानी अथवा ऋशि बनाते हैं। ऋशि दयानन्द जी की हम पर महती कृपा हुई कि वेदों का हिन्दी भाश्य और सत्यार्थप्रकाष जैसा अति महत्वपूर्ण ग्रन्थ हमारे पास है। सत्यार्थप्रकाष व ऋग्वेदादिभाश्यभूमिका आदि के अध्ययन से भी वेद संसार के सबसे प्राचीन ग्रन्थ सिद्ध होते हैं। आज हमने वेदों की प्राचीनता व इससे जुडे कुछ अन्य विशयों की चर्चा इस लेख में की है। इस लेख को यहीं पर विराम देते हैं। ओ३म् षम्। -मनमोहन कुमार आर्य
Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :