पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे, का एआई वर्जन बनेगा!

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21 Aug 25
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पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे, का एआई वर्जन बनेगा!

बांसवाड़ा-डूंगरपुर. पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे, का एआई वर्जन बनाने की तैयारी शुरू की गई है. पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे के निर्देशक प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि इस दिशा में फिल्म के प्रमुख कलाकार भंवर पंचाल, जगन्नाथ तेली के साथ प्रयास शुरू कर दिए हैं. प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि पचास लाख व्यूअर्स पार करनेवाले 'त्रिलोकपति' और ग्यारह लाख व्यूअर्स पार करनेवाले 'बजरंगबली' प्रोजक्ट से जुड़ने के अनुभव से लगता है कि आनेवाले समय में फिल्म निर्माण में एआई की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाएगी. याद रहे, 14 अगस्त 1986 को पहली वागड़ी फिल्म का मुहूर्त हुआ था, तो फिल्म पूरी होने के बाद 15 अगस्त को फिल्म के निर्देशक- प्रदीप द्विवेदी को बांसवाड़ा कलेक्टर ने प्रशंसा-पत्र प्रदान कर इसे मान्यता प्रदान की थी.
इस फिल्म के निर्माण में प्रमुख कलाकार- जगन्नाथ तेली, भंवर पंचाल, कैलाश जोशी, फिल्मकार सालेह सईद, संगीत निर्देशक- डॉ शाहिद मीर खान, अनिल जैन, हेमंत त्रिवेदी सहित जनसंपर्क विभाग के वरिष्ठ अधिकारी रहे गोपेन्द्र नाथ भट्ट, प्रमुख कवि हरीश आचार्य, नागेंद्र डिंडोर, घनश्याम नूर, हिम्मत लाल हिम्मत, रामनारायण शुक्ला, कुंजबिहारी चौबीसा, सतीश आचार्य सहित सैकड़ों वागड़वासियों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष उल्लेखनीय योगदान रहा.
बांसवाड़ा के आजाद चौक में इस फिल्म के मुहूर्त में प्रमुख अतिथि- तत्कालीन जिला प्रमुख पवनकुमार रोकड़िया, राजस्थान स्वायत्त शासन के तत्कालीन उपाध्यक्ष दिनेश जोशी, माही परियोजना के तत्कालीन मुख्य अभियंता डीएम सिंघवी सहित प्रसिद्ध लेखक- ईश्वरलाल वैश्य, विष्णु मेहता, पद्माकर काले, आदित्य काले और हजारों वागड़वासी इस भव्य शुरूआत के साक्षी बने.
प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि अब तो फिल्म बनाना आसान हो गया है, लेकिन तब पहले 8 एमएम के कैमरे से फिल्मांकन ही संभव हो पा रहा था, यही नहीं, मद्रास अब चेन्नई के प्रसाद लैब के पास भी 8 एमएम से 35 एमएम में फिल्म कन्वर्ट करने की सुविधा नहीं थी. उस समय फिल्म बनाना इतना महंगा था कि अनेक फिल्में 16 एमएम पर बना कर 35 एमएम पर कन्वर्ट होती थी और उसके बाद रिलीज होती थी.
अस्सी के दशक में बांसवाड़ा में जो पहला फिल्मांकन किया गया था, वह 16 एमएम पर था और उसे देखने के लिए पूर्व महारावल सूर्यवीर सिंह के महल जाना पड़ा था, क्योंकि उन्हीं के पास प्रोजेक्टर था. इस प्रायोगिक फिल्म का फिल्मांकन तो अच्छा था, परन्तु डबिंग, एडिटिंग और 8 एमएम से 35 एमएम में फिल्म कन्वर्ट करने की सुविधा के अभाव में काम रुक गया.
इस बीच, 1985 में बांसवाड़ा मूल के प्रसिद्ध फोटोग्राफर सालेह सईद विदेश से यहां आ गए. उनके साथ बांसवाड़ा में फिल्मांकन की नई तकनीक भी आ गई. पहली वागड़ी फिल्म के लिए तो एक नई दिशा मिल गई.
अस्सी के दशक में बेरोजगारी की समस्या शुरू हो गई थी, पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे बेरोजगारी की समस्या पर आधारित फिल्म ही है. बेरोजगारों के सामने तीन ही रास्ते हैं.... एक- बेईमानी, दो- ईमानदारी और तीसरा- अर्ध ईमानदारी, मतलब.... स्वयं ईमानदार रहे, लेकिन दूसरों की बेईमानी पर ध्यान नहीं दें.
फिल्म तीन दोस्तों की कहानी है, जो अपनी-अपनी सोच के हिसाब से अपना रास्ता चुनते हैं.
इसमें में भंवर पंचाल, जगन्नाथ तेली, कैलाश जोशी और नागेंद्र डिंडोर प्रमुख कलाकार थे. इस फिल्म में अभियंता भंवर पंचाल ने ईमानदार डॉक्टर की भूमिका निभाई थी, तो जगन्नाथ तेली ने बेईमान बेरोजगार का रोल किया था.
इस फिल्म का संगीत डॉ. शाहिद मीर खान ने दिया था और इसका लोकप्रिय गीत- काम मले तो काम करं ने, ने मले तो हूं करं... भंवर, जगन्नाथ और नागेंद्र डिंडोर पर फिल्माया गया था.
यह फिल्म ऋषभदेव में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष वेदव्यास को प्रसिद्ध लेखक और दूरदर्शन के वरिष्ठ अधिकारी रहे शैलेन्द्र उपाध्याय ने भेंट की थी, जिसका पहला भव्य प्रदर्शन प्रसिद्ध कवि हरीश आचार्य के प्रयासों से खड़गदा में हुआ था. इस फिल्म के लिए पुरस्कार भी मिला, जिसने इसे पहली वागड़ी फिल्म होने की मान्यता प्रदान कर दी.


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