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विश्व समुद्र दिवस 28 सितंबर पर विशेष / समुद्री संपदा / वैश्विक समुद्री व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास 

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28 Sep 25
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विश्व समुद्र दिवस 28 सितंबर पर विशेष /  समुद्री संपदा / वैश्विक समुद्री व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास 

 

सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से संपन्न भारतीय प्रायद्वीप  तीन ओर से विशाल सुंदर समुद्रों से घिरा हुआ है। भारत की सुंदरता में चार चांद लगाते ये समुद्री तट किसी का भी मन मोह लेने का जादुई करिश्मा रखते हैं। भारत की सुंदरता और विशालता के गवाह हैं ये समुद्री तट। सुनहरी चमकती रेत पर नीले समुद्री पानी की बलखाती लहरों के साथ एक अनुपम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। समुद्र तटों से उगते और डूबते सूर्य का अद्भूत नजारा केवल यहीं देखने को मिलता है। भारत के समुद्री तट भारत की सम्पन्न विरासत का गौरव हैं, जहाँ प्रतिवर्ष लाखों सैलानी आकर न केवल इन समुद्री तटों की खूबसूरती में खो जाते हैं वरन समुद्री यात्राओं और साहसिक जल क्रीड़ाओं का आनन्द भी उठाते हैं।

 

तथ्य - कथ्य :

     भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ समुद्र की हजारों किलोमीटर की तटीय रेखा है। समुद्र से घिरे विशाल भारत प्रायद्वीप का समुद्र तट द्वीपीय सीमाओं सहित 7516.6 किलोमीटर से अधिक है। इसमें मुख्य तटीय रेखा 5422.6 किमी. एवं द्वीपीय प्रदेशों की तटीय सीमा 2094 किमी. है। सबसे लंबी समुद्र तटीय सीमा 1214.7 किमी. गुजरात राज्य की एवं सबसे कम तटीय सीमा 5 किमी. लम्बी दमन एवं दीव की है। भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में हिन्द महासागर है। अधिकांश तटीय राज्यों में नियमित सरकारी जहाज उपलब्ध हैं। समुद्री यात्रा का उपयोग ज्यादातर अरब सागर में लक्षद्वीप पहुँचने और बंगाल की खाड़ी से अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह तक पहुँचने में किया जाता है। ये दोनों द्वीप समूह भारतीय उपमहाद्वीप के हिस्से हैं और हवाई मार्ग से भी अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। मुम्बई से गोवा के लिये भी समुद्री जहाज सुलभ हैं। भारत के आंध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिमी बंगाल के राज्य तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दमन और द्वीप एवं लक्षद्वीप समूह केंद्र शासित राज्यों की सीमा समुद्र तट से घिरी हुई हैं। भारत के समुद्र में संसाधनों की खोज तथा दोहन के लिए भारत का समुद्र क्षेत्र अधिनियम 1976 बनाया गया है और सुरक्षा के लिए भारतीय नौसेना का सशक्त संगठन है।

 

भारत सरकार के प्रयास :

वैश्विक समुद्री व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने और समुद्र आधारित पर्यटन विकास के लिए भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम  उठाए हैं। वैश्विक समुद्री व्यापार में 1947 तक देश की भागीदारी को तीन गुणा बढ़ाने की दिशा में भारत सरकार  सतत् रूप से प्रयास रत है। इस दृष्टि से भारत में समुद्री ढांचे और सुरक्षा  को मजबूत करने, समुद्रयान परियोजना के तहत डीप ओशन मिशन के तहत पनडुब्बी वाहन 'मत्स्य 6000' का विकास, वधावन में एक नए बंदरगाह का निर्माण, राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर की स्थापना, ग्रीन शिपिंग को बढ़ावा देना और लाइट हाउस पर्यटन का विकास करने जैसे प्रयास किए जा रहे हैं।

     डीप ओशन मिशन और मत्स्य 6000 वर्ष

2021 में शुरू हुआ यह मिशन समुद्री संपदा के सतत दोहन और ब्लू इकोनॉमी को मजबूत करने पर केंद्रित है। समुद्रयान परियोजना के तहत भारत का पहला मानवयुक्त पनडुब्बी वाहन 'मत्स्य 6000' विकसित किया जा रहा है।  अगस्त 2025 में गहरे समुद्र में 5000 मीटर तक गोता लगाकर अंडमान सागर से कोबाल्ट युक्त पॉलीमेटेलिक नोड्यूल एकत्र किए गए हैं। 

     बुनियादी ढांचे का विकास के अंतर्गत

75,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से महाराष्ट्र में  नए बंदरगाह का विकास, 

पर्यटन, अनुसंधान और कौशल विकास का केंद्र के उद्देश्य से राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर का विकास 4,500 करोड़ रुपये की लागत से गुजरात के लोथल में  भारत की प्राचीन समुद्री परंपराओं को संरक्षित करने के लिए एक परिसर विकसित किया जा रहा है।

ग्रीन शिपिंग और ग्रीन हाइड्रोजन के तहत

पत्तन, पोत-परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय ग्रीन शिपिंग को बढ़ावा देने के लिए 30 प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। दीन दयाल पोर्ट और वीओ चिदंबरनार पोर्ट को ग्रीन हाइड्रोजन हब के रूप में विकसित किया जाएगा। समुद्री प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए  भारत-ईयू आइडियाथॉन की अभिनव शुरुआत की गई है।

       सागरमाला परियोजना के अंतर्गत बंदरगाहों के माध्यम से भारत के समुद्री व्यापार को मजबूत करने के लिए 'सागरमाला' का विस्तार , जहाज निर्माण को बढ़ावा देने के लिए जहाज निर्माण उद्योग को वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाना, समुद्री सुरक्षा के लिए भारतीय नौसेना को उन्नत क्षमताओं वाले नए जहाजों जैसे पोत 'आन्द्रोत' से सुसज्जित करने से पनडुब्बी रोधी युद्धक क्षमताओं को मजबूत करना जैसे प्रयास किए जा रहे हैं।

मुंबई अंतर्राष्ट्रीय क्रूज टर्मिनल पर इंदिरा डॉक पर नए क्रूज टर्मिनल के विकास से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। पर्यटन को बढ़ावा देने और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए प्रकाश स्तंभों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित किया जा रहा है।

 

गौरवमयी पृष्ठभूमि

विश्व समुद्र दिवस पर हम समुद्र के इतिहास, सम्पदा, महत्त्व आदि पर भी दृष्टि डालते हैं । जब हम भारतीय नौसेना के वर्तमान प्रतीक चिन्ह को देखे तो इसमें वेदों में वर्णित समुद्र के देवता वरुण की आराधना, चयनित आदर्श वाक्य 'श नो वरुण' से होती है, जिसका अर्थ है वरुण देवता की कृपा हम पर सदैव बनी रहे। प्रतीक में रॉयल नेवी के क्रेस्ट के क्राउन का स्थान अशोक स्तम्भ को दिया गया है और 'सत्यमेव जयते' को क्रेस्ट में शामिल किया गया है। भारतीय नौसेना का यह प्रतीक चिन्ह 26 जनवरी, 1950 को अपनाया गया। भारतीय नौसेना के प्रतीक चिन्ह के जिक्र से हमें संकेत मिलता है कि भारत में समुद्र का अस्तित्व वेदों के समय से था।

    यहीं से शुरू होती है समुद्र की चर्चा और इतिहास, जब ऋग्वेद में समुद्र के देवता को 'वरुण देवता' कहा गया है। रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों और पुराणों में समुद्र से सम्बन्धित अनेक कथानक हमारे सामने ही मौजूद हैं। प्राचीन साहित्य ही नहीं मूर्तिकला, चित्रकला और पुरातत्व विज्ञान से भी समुद्र का पता चलता है। असलियत में सर्वप्रथम 3000 ई.पू. में समुद्री इतिहास का पता उस समय चलता है जब सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासियों का समुद्री व्यापार मेसोपोटामिया तक था। समुद्र की विकसित गतिविधियों की जानकारी हड़प्पा की खुदाई में प्राप्त अवशेषों से भी होती है। विश्व की प्रथम जल सेना के प्रमाण मगध राज्य के समय मिलते हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र में समुद्र में नौका चलाने, युद्ध कार्यालय एवं महासागरों के बारे में जानकारियाँ मिलती हैं। सिक्कों पर पोत अर्थात् जहाज का अंकन कराने वाले सातवाहन वंश के शासक प्रथम शासक थे। गुप्त काल में विदेशी यात्री फाह्यान एवं ह्वेनसांग की भारत यात्रा वृत्तांतों में समुद्र के बारे में खूब चर्चा की गई हैं। चोल, चेर और पांड्य ने सुमात्रा, जावा, मलय प्रायद्वीप, थाईलैंड और चीन के स्थानीय शासकों के साथ समुद्री व्यापारिक रिश्ते मजबूत कर लिए थे। समुद्री यात्राओं के दौरान मौसमी हवाओं का ज्ञान भी विकसित हुआ। इन राजवंशों के समय में समुद्र भारतीय प्रायद्वीप की बड़ी शक्ति थी।

     अरब से लोग आठवीं शताब्दी में समुद्र के रास्ते व्यापार करने आए और उन्होंने  समुद्र पर अपना आधिपत्य कर लिया। दक्षिण-पूर्वी एशिया में 900 ई. से 1300 ई. तक समुद्री व्यापार का आरम्भिक युग माना जाता है। भू-राजस्व पर विशेष ध्यान केंद्रित करने वाले मुगल शासकों ने समुद्र की ओर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद 16 वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने समुद्र पर अपना एकाधिकार कर लिया। इस बीच मराठे शिवाजी के नेतृत्व में नौसेना का गठन कर पुर्तगालियों से लोहा लेते रहे। शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा नौसेना कमजोर पड़ गई।

      पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर से हो रहे व्यापार पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए कालिकट, कोचीन, गोवा, सूरत और पश्चिमी तट पर स्थित अन्य बंदरगाहों के समीप कारखानें स्थापित किए। उन्होंने हर्मुज, सोकोट्रा अदन और मलक्का जैसे महत्त्वपूर्ण बन्दरगाहों का नियंत्रण भी अपने हाथों में ले लिया। इससे हिन्द महासागर क्षेत्र में होने वाले व्यापार पर अरबों का एकाधिकार समाप्त हो गया। इनके समय में डच लोग भी समुद्र के रास्ते व्यापार करने आए। उन्होंने पुर्तगालियों को चुनौती नहीं दी और उन्हें पुलिकट में व्यापार केन्द्र स्थापित करने की अनुमति दे दी गई। डच वस्त्रों के साथ-साथ कीमती रत्न, नील, रेशम, अफीम, दालचीनी और कालीमिर्च का व्यापार करते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 31 दिसंबर, 1600 को इंग्लैंड में हुई।

कैप्टन विलियम हॉकिन्स के नेतृत्व में कम्पनी का एक जहाज 'हेक्टर' सूरत पहुँचा। कैप्टन अपने साथ सम्राट जहाँगीर के लिए एक पत्र लाए थे जिसमें मुगल के अधिकार वाले क्षेत्रों के साथ व्यापार करने का अनुरोध किया गया था। सम्राट जहाँगीर ने व्यापार करने की अनुमति दे दी और अन्य व्यापारिक सुविधाएँ प्रदान करने का वादा भी किया। उस समय भारत में यूरोपियन शक्ति के रूप में पुर्तगालियों का वर्चस्व कायम था और यह सोचकर कि अंग्रेजों के आगमन से उनका व्यापार प्रभावित हो सकता है, पुर्तगालियों को भारत में अंग्रेजों का आना अच्छा नहीं लगा।

      हिन्द महासागरीय क्षेत्र में फ्रांसीसियों का आगमन 1740 ई. में हुआ और उन्होंने मॉरीशस में एक सुदृढ़ बेस की स्थापना की। उन्होंने सूरत और पांडिचेरी पहुँच कर व्यापारिक केन्द्रों की स्थापना की। बाद के वर्षों में कराईकल, यानाओन, माहे और चंद्रनागोर आज बंगाल में चंदननगर में फ्रांसीसी प्रतिष्ठानों की स्थापना की। हिन्द महासागर में 18वीं शताब्दी के दौरान अंग्रेजों के आधिपत्य को मुख्य चुनौती फ्रांसीसियों से मिल रही थी। 1744 से 1760 ई. के बीच दक्षिण भारत और बंगाल के पूर्वी तट के किनारे किलों और शहरों पर विजय प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने लगातार एक दूसरे पर आक्रमण किये। फ्रांसीसियों को आरंभ में कुछ सफलता मिली परंतु 1760 उपल ई. में तमिलनाडु के वॉडीवाश के युद्ध में अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों पर निर्णायक बेड़े विजय प्राप्त कर ली।

     अंग्रेज समुद्र के महत्त्व को जानते थे। प्रांतों की भूमि को अधिकार में लेने के अतिरिक्त उन्होंने एक नौसेना की स्थापना की जो उनके समुद्री व्यापार और की सुरक्षा करने के साथ शत्रुओं को दूर रखने का कार्य करती थी। इस बलशाली इसक नौसेना ने भारत पर शासन करने में अंग्रेजों की सहायता की। ईस्ट इंडिया कम्पनी 01 मई, 1830 को ब्रिटिश क्राउन के अधीन आ गई और इसे योधी का दर्जा मिल गया। तब इस सर्विस को इंडियन नेवी नाम दिया गया । वर्ष 1858 में पुनः इसका नामकरण शहर मेजेस्टीज इंडियन नेवी कर दिया गया। वर्ष 1863 में पुनः इसका पुनर्गठन कर इसे दो शाखाओं में विभक्त किया गया। बॉम्बे स्थित शाखा को बॉम्बे मरीन और कलकत्ता स्थित शाखा को बंगाल मरीन कहा गया। भारतीय जलराशि की सुरक्षा करने का कार्य रॉयल नेवी के सुपुर्द किया गया।

    आगे चल कर 'द रॉयल इंडियन मरीन' (आर. आई. एम.) का 1892 ई. में गठन किया गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रॉयल इंडियन मरीन को समुद्री सर्वेक्षण, लाइट हाउसों के रख-रखाव और सैनिकों को लाने ले जाने जैसे कार्य सौंपे गए। वर्ष 1918 ई. में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के उपरांत शीघ्र ही ब्रिटिश सरकार ने भारत में रॉयल इंडियन मरीन की नफरी को कम कर दिया और 2 अक्टूबर, 1934 को इस सर्विस का नाम पुनः बदलकर 'रॉयल इंडियन नेवी' (आर. आई. एन.) किया गया और मुम्बई को इसका मुख्यालय बनाया। वर्ष 1941 ई. में नौसेना मुख्यालय को मुम्बई से नई दिल्ली ले जाया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभिक चरण में रॉयल नेवी की सहायता के लिए रॉयल इंडियन नेवी के पास छः मार्ग रक्षी जलयानों वाला एक स्क्वाड्रन था। जो समुद्र में गश्त लगाया करता था और स्थानीय नेवल सुरक्षा का दायित्व निभाता था। व्यापारिक जहाजों को हथियार उपलब्ध कराए गए और उन तक जाने वाले समुद्री मार्गों की सुरक्षा के लिए बेड़े में नए प्रकार के जलयान शामिल किए गए। रॉयल नेवी का पूर्वी बेड़ा पृष्ठभूमि में अवश्य था लेकिन स्थानीय नेवल प्रतिरक्षा की जिम्मेदारी रॉयल इंडियन नेवी (आर. आई. एन.) की थी। रॉयल इंडियन नेवी ने मध्य-पूर्व और बंगाल की खाड़ी में सराहनीय कार्य किया। उसके जलयानों ने भूमध्य और अटलांटिक दोनों यूरोपीय महासागरों में ऑपरेशन किए और शायद इसे इसका सर्वप्रथम और सर्वाधिक महत्वपूर्ण दायित्व लाल सागर में सौंपा गया।

जहाँ भारतीय जहाजों ने इटली से मसावा को छीनकर उस पर अधिकार करने और सोमाली लैंड के अपतट पर इटली की नौसेना का मुकाबला करने में सक्रिय भूमिका निभाई। फ्रांस की खाड़ी में उनकी ड्यूटियाँ विशेषकर तटों की निगरानी करने और आपूर्ति करने वाले पोतों को सुरक्षा प्रदान करने की थी, वहाँ भी उन्होने सफलतापूर्वक आपरेट किया। जापान के युद्ध में शामिल होने के उपरांत, रॉयल इंडियन नेवी (आर. आई. एन.) के लिए बर्मा के पास की जलराशि मुख्य कार्य क्षेत्र बन गया। बहादुरी और कौशल का शानदार परिचय देते हुए, उसने गश्ती कार्य और संयुक्त ऑपरेशनों में कारगर ढंग से सहयोग किया।

 

स्वतंत्रता के उपरांत :

स्वतंत्रता के पश्चात् भारत का विभाजन होने पर रॉयल इंडियन नेवी दो भागों रॉयल इंडियन नेवी और रॉयल पाकिस्तान नेवी में बँट गई। वाइस एडमिरल आर. डी. कटारी ने 22 अप्रैल, 1958 ई. को भारतीय नौसेना के नौसेनाध्यक्ष का पद भार संभाला और इस गौरव को प्राप्त करने वाले वे प्रथम नेवल अफसर कहलाये। रॉयल इंडियन नेवी की दो-तिहाई परिसंपत्ति भारत के पास रही और शेष पाकिस्तान की नेवी के पास चली गई। रियर एडमिरल जे.टी.एस. हॉल, आर.आई.एन. को 15 अगस्त, 1947 को भारत के प्रथम फ्लैग अफसर कमांडिंग रॉयल इंडियन नेवी के रूप में नियुक्त किया गया। भारत के गणतंत्र बनने के बाद 'रॉयल इंडियन नेवी' से 'रॉयल' शब्द को हटा दिया गया और 'इंडियन नेवी' के रूप में इसका पुनः नामकरण किया गया। इसी दिन भारतीय नौसेना के प्रतीक चिह्न के रूप में रॉयल नेवी के क्रेस्ट के क्राउन का स्थान अशोक स्तंभ ने ले लिया। वेदों में वरुण देवता (समुद्र के देवता) की आराधना भारतीय नौसेना द्वारा चयनित आदर्श वाक्य 'श नो वरुण' से शुरू होती है जिसके अर्थ 'वरुण देवता की कृपा हम पर हमेशा बनी रहे। राज्य के प्रतीक के नीचे अंकित वाक्य 'सत्यमेव जयते' को भारतीय नौसेना के क्रेस्ट में शामिल किया गया। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 27 मई, 1951 को भारतीय नौसेना (इंडियन नेवी) गया। अरब सागर और बंगाल की खाडी में नौसेना की सफल को ध्वज प्रदान किया। 21 अक्टूबर, 1944 को पहली बार नौसेना दिवस मनाया 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान कराची के बंदरगाह पर किए गए मिसाइल आक्रमण तथा युद्ध में मारे गए सभी शहीदों की याद में 1972 ई. से नौसेना दिवस प्रति वर्ष 4 दिसंबर, को मनाया जाने लगा।

 

समुद्री यात्रा :

समुद्री यात्रा के रोचक और रोमांचक संस्मरणों को पढ़कर हर कोई आश्चर्य करेगा कि आखिर समुद्र की दुनिया एक अलग ही दुनिया है जिसका धरती की दुनिया से कोई मेल नहीं। समुद्री यात्रा के संस्मरण पर हजारों किताबें लिखी गई हैं। समुद्री लुटेरे, सिंधवाद जहाजी और समुद्र के सम्राट नाम से कई किताबें लिखी गई हैं। समुद्री जीवन पर आधारित 'सागर' और 'लाइफ ऑफ पाई' फिल्में भी समुद्री यात्रा की महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। रोमांचक समुद्री यात्राओं के बारे में जहाजों के कप्तानों ने अपनी डायरियों में अपने दुर्लभऔर रोमांचक अनुभवों को दर्ज किया है। वास्को डि गामा और कोलंबस के नाम तो समुद्री यात्रा के लिए प्रसिद्ध हैं ही। कई बार जहाज अपने गंतव्य से भटक कर विशालकाय जीवों के कारण किसी अनजान द्वीप पर चला जाता है। कई जहाज तो आज तक वापस लौटकर नहीं आए। भारतीय उपमहाद्वीप को घेरे हुए नीले पानी में यात्रा करना स्मरणीय अनुभव होता है। भारत में समुद्री यात्रा का उपयोग मौर्य और मध्यकाल में अधिक था। अधिकांशतः अरब सागर का उपयोग लक्षद्वीप पहुँचने और बंगाल की खाड़ी का उपयोग अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह पहुँचने में किया जाता है। ये दोनों द्वीप समूह भारतीय उपमहाद्वीप के हिस्से हैं। पिछले करीब एक दशक से भारतीय सैलानियों में भी समुद्री यात्रा विशेष कर क्रूज यात्रा का क्रेज बढ़ा है। अत्याधुनिक सुविधा युक्त क्रूज सागर पर यात्रा के लिये उपलब्ध हैं।

 

समुद्री सम्पदा :

समुद्री जीवन धरती की अपेक्षा कहीं ज्यादा विचित्र और रहस्यों से भरा हुआ है। यहाँ एक और जहाँ विशालकाय व्हेल है तो दूसरी ओर आँखों से न दिखाई देने वाली मछलियाँ और अन्य जीव भी अपना जीवन जी रहे हैं। समुद्र में पौधे और जीव दोनों पाये जाते हैं। महासागरों के गर्भ में अद्भुत जीव-जंतु, दुर्लभ पौधे और हैरान कर देने वाले बैक्टीरियाँ मौजूद हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि समुद्रों में 2 लाख से अधिक प्रजातियाँ विचरण करती हैं। बैक्टीरिया की 35 हजार प्रजातियां, वायरस की 5 हजार और एक कोशिकीय पौधों की करीब डेढ़ लाख नई प्रजातियां खोजी गई हैं। समुद्रों में डॉल्फिन, चमकीली मछलियाँ, लैंप जैसी आँखों वाली मछलियाँ, करीब एक मीटर चौड़ी जेली फिश, स्टार फिश, पारदर्शी मछली, रंग बदलने वाली मछलियाँ आदि हजारों प्रजातियों की मछलियाँ विचरण करती हैं। मछली को समुद्र का प्रमुख जीव माना जाता है। समुद्र मछलियों से भरा पड़ा है। विभिन्न प्रजातियों के जलीय सर्प, ऑक्टोपस, बैक्टीरिया, कीड़े-मकोड़े, केकड़े, झींगे, जीवित प्राणियों के सभी प्रमुख समूह जैसे कि जीवाणु, प्रोटिस्ट, शैवाल, कवक, पादप और जीव पाए जाते हैं। जीवित मूंगा कोरल और चट्टानी कोरल भी विशेष रूप से पाये जाते हैं। सागरों में पर्यावरण और पारिस्थितिकी प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला समाहित है। इसके अलावा समुद्र के भीतर शंख, मोती, मूंगा, तेल, गैस, सीपी, शैवाल, आदि हजारों ऐसी वस्तुएँ पाई जाती हैं जिसका मानव दोहन करता है। शंख, मोती, सीपी आदि से कई प्रकार की सजावटी वस्तुएँ पर्यटक स्थलों पर खूब देखी जा सकती हैं। समुद्र के गर्भ में पाई जाने वाली सम्पदा लाखों लोगों को रोजगार से जोड़ती है और देश की अर्थव्यवस्था में भी बड़ा योगदान करती हैं।

 

रोजगार का माध्यम :

समुद्र बड़े पैमाने पर करोड़ों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का सबल माध्यम हैं। मछली पकड़ कर विक्रय करने के काम पर ही साढ़े तीन करोड़ के करीब लोग अपनी जीविका कमाते हैं। लाखों लोगों को मछली विक्रय करने के व्यवसाय से रोजगार प्राप्त है। समुद्री उत्पाद सीप, मोती, शंख का व्यवसाय भी हजारों लोगों की रोजी-रोटी का साधन हैं। समुद्र पर चलने वाले क्रूज और जहाज चलाने, मरम्मत करने, ईंधन आदि की आपूर्ति, केटरिंग, मनोरंजन और गाइड आदि के कारोबार में भी लाखों लोग आजीविका कमा रहे हैं। समुद्री बीच, होटल, रेस्तरां एवं वाटर स्पोर्ट्स जैसी विभिन्न गतिविधियों पर भी लाखों लोग रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। मालवाहक जहाजों से होने वाले व्यापार में विभिन्न जरूरतों को पूरा करने में लगे लाखों लोग रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। समुद्रों की अंतरराष्ट्रीय तट रक्षा और भारतीय नौसेना के माध्यम से भी हजारों लोग अपनी आजीविका कमा रहे हैं। दिनों-दिन बढ़ते जा रहे समुद्री पर्यटन से विविध प्रकार जहाँ लाखों लोगों को रोजगार प्राप्त है वहीं देश की अर्थ-व्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण योगदान मिलता हैं।

 

भोजन, खनिज, पर्यावरण :

सागर दुनियाभर के लोगों के लिए समुद्रीय भोजन, मुख्य रूप से मछली उपलब्ध कराता है किंतु इसके साथ ही यह कस्तूरों, सागरीय स्तनधारी जीवों और सागरीय शैवाल की भी पर्याप्त आपूर्ति करता है। इनमें से कुछ को मछुआरों द्वारा पकड़ा जाता है तो कुछ की खेती पानी के भीतर की जाती है। सागर के अन्य मानव उपयोगों में व्यापार, यात्रा, खनिज दोहन, बिजली उत्पादन और नौसैनिक युद्ध शामिल हैं। वहीं आनंद के लिए की गई गतिविधियों जैसे कि तैराकी, नौकायन और स्कूबा डाइविंग के लिए भी सागर एक आधार प्रदान करता है।

    इन गतिविधियों में से कई गतिविधियाँ और समुद्रों से तेल व खनिज के अनियंत्रित व अव्यवस्थित खनन एवं अन्य औद्योगिक कार्यों से समुद्री पारितंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध संस्था अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट के अनुसार मानवीय गतिविधियों से ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो रही है और जिसके परिणामस्वरूप मौसम में बदलाव हो सकते हैं। इस ओर ध्यान दिए जाने की जरूरत हैं। हम सभी को जो भी समुद्र के सम्पर्क में आते हैं, इसका पूरा ध्यान रखना होगा कि हमारे कारण समुद्र की प्राकृतिक अपार जलनिधि प्रदूषित नहीं हो। भारत के आठ समुद्री तटों को पर्यावरण के क्षेत्र में किये गए सतत प्रयासों के फलस्वरूप प्रतिष्ठित 'ब्लू फ्लैग' सर्टिफिकेट से सम्मानित किया गया है। इनमें गुजरात का शिवराजपुर बीच, दिव का घोघला, कर्नाटक का कासरकोड व पदुबिद्री, केरल का कप्पड, आंध्र प्रदेश का रुझिकोंडा, ओडिशा का गोल्डन और अंडमान व निकोबार का राधानगर बीच शामिल हैं। ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेट डेनमार्क की एक संस्था द्वारा दिया जाता है। ब्लू फ्लैग कार्यक्रम को फ्रांस के पेरिस से शुरू किया गया था। दिसम्बर 2017 ई. से भारत में 'ब्लू फ्लैग बीच' के मानकों के मुताबिक समुद्र तटों को विकसित करने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था।

 

पर्यटन :

समुद्रीय पर्यटन पर बात करें तो विगत दो दशकों में इस ओर विशेष रूप से पर्यटकों में अधिक रुझान उत्पन्न हुआ है। समुद्र और समुद्र तटों का विकास की सोच को भी ज्यादा समय नहीं हुआ है। पिछले कुछ ही वर्षों से हमने इस दिशा में सोचना प्रारम्भ किया है। जिधर दृष्टि उठाएँ, चारों ओर गहरी नीली जल राशि का ही साम्राज्य हो, नीले पानी के एक छोर से उगता अथवा उसमें डूबता लालिमा युक्त सूर्य हो तो कौन ऐसे दृश्य के स्वामी, समुद्र के मोहपाश में बँधने के लिये लालायित नहीं हो जाएगा। देश-विदेश की पर्यटन कम्पनियाँ समुद्री सैर के इसी पक्ष का व्यापक प्रचार करके सैलानियों को लम्बी-लम्बी समुद्री यात्राओं की ओर आकर्षित करती हैं। बड़े-बड़े जलयानों पर ऐसी यात्राओं अर्थात् 'क्रूज' का आकर्षण भारतीय पर्यटकों में भी तेजी से बढ़ रहा है। वैसे व्यापार के लिये लम्बी एवं कठिन समुद्री यात्राएँ करना और समुद्र के सुनहरे और लुभावने तटों पर मनोरंजन के लिये सैर-सपाटा करना भारतीयों के लिये कोई नई बात नहीं है। भारतीय समुद्र को वरुण देवता मान कर उसका आदर करते हैं। फलतः समुद्री तटों के रख-रखाव का वे निरन्तर ध्यान रखते हैं। भारतीय नतमस्तक हो समुद्र तटों पर फूल और नारियल अर्पित करते रहे हैं। भारत के समुद्री तटों पर भारतीय सैलानियों की अपेक्षा विदेशी पर्यटकों की संख्या अधिक दिखाई देती है। प्रकृति की सुंदरता सेश्रृंगारित समुद्री तट, चांदी सी चमकती रेत, तट से दूर-दूर जहाँ तक नजर जाती समुद्र का अंतहीन दृश्य, नीलाभ चादर ओढ़े अथाह जलराशि, ऊँचाई तक उठती-गिरती, रेतीले बीच को आकर दूर तक भिगोती, चट्टानों से टकरा कर बिखरती समुद्री लहरों के चित्ताकर्षक दृश्य और उनका संगीत भला किसे न लुभा लेगा। वाटर स्पोर्ट्स के विकास ने समुद्री पर्यटन को नये पंख लगा दिये हैं। दिनों-दिन पर्यटकों में बढ़ती रुचि से समुद्र तटीय पर्यटन का भविष्य निश्चित ही सुनहरा है।


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