जीवन में करने को बहुत कुछ होता है भिन्न-भिन्न स्तर के जागरूक व कर्तव्यबोध रखने वाले विशिष्ट जनों के द्वारा उसमें से काफी कुछ सोच समझ लिया जाता है। ऐसे ही कर्मनिष्ठ उसे कार्य रूप में परिणति प्रदान करते हैं। ये कार्य उजागर होते हैं तो प्रकाश स्तम्भ का कार्य करते हैं। फलस्वरूप नवाचार विकसित होते हैं जो विकास के नए पथ बनाते हैं, किंवा प्रशस्त करते हैं। कुछ ऐसा ही प्रयास है “बाल मन तक…”पुस्तक का निर्माण।
उच्चता के प्रतीक आसमां के रंग के साथ प्रभातवेला की ताजगी से सरस आकर्षक वातावरण के साथ बालमन की मस्ती भरा, परिकथा पढ़ने के आह्लाद युक्त विस्मय सम्पृक्त बच्चों की मनभावन छवि दर्शाता पुस्तक का मुख पृष्ठ सचमुच देखते ही बनता है। यह पुस्तक बाल मन को सर्वत: विकसित कर सफल जीवन जीने योग्य बनाने के प्रयासों का प्रतिफल और प्रतिबिंब है।
बच्चों के मन को पुष्ट करने के लिए उन्हें सत्साहित्य से जोड़ना आवश्यक है। इसके लिए बाल साहित्य में वृद्धि, गुणवत्ता और बाल साहित्य का सहज सुलभ होना आवश्यक है। बच्चों के लिए किए जाने वाले आयोजनों का सुरुचिपूर्ण होना भी आवश्यक है। यही सब लेखक के मानस में कौंधा तो एतदर्थ प्रयास करने को आतुर हो उठे। विचारों का ताना-बाना बुनते हुए जागृति में स्वप्न देखा और उसे साकार करने के प्रयासों में जुट गए।
साहित्य से कला ,संस्कृति, इतिहास, भूगोल, पर्यटन आदि विषयों को जोड़कर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं, कविता सुनाओ, कहानी सुनाओ,बाल कवि सम्मेलन आदि कार्यक्रमों के आयोजन हेतु हाड़ौती अंचल में बाल साहित्य मेलों के आयोजन की पहल की। इसमें साहित्यकारों विशेषकर महिला साहित्यकारों ने आपको सहयोग दिया। बच्चों को उपहार में बाल साहित्य भेंट करने की परंपरा प्रारंभ की गई। फलत: हाड़ौती अंचल के 5000 बच्चे प्रत्यक्ष रूप से इन कार्यक्रमों से जुड़े।
प्रस्तुत पुस्तक में उल्लेखित ये प्रयास अनुकरणीय हैं। झालावाड़ की साहित्यकार रेखा सक्सेना जी ने प्रेरित होकर विद्यालय के 30-35 बच्चों को कविता और कहानी लेखन सिखाकर उनकी मनोवृत्ति को साहित्य से जोड़ने का महनीय प्रयास किया।
श्रेष्ठ बाल-साहित्य के सृजन के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। चयनित रचनाओं को संकलित कर पुरस्कृत व प्रकाशित किया गया। साहित्यकारों को भी प्रतियोगिताओं में शामिल किया । इनके द्वारा पठनीय प्रेरक बाल-साहित्य में अभिवृद्धि हुई। विद्यार्थियों को सृजन के लिए उत्प्रेरित कर लिखित व मौखिक अभिव्यक्ति के अवसर दिए गए । ज्ञानवर्धन एवं भावनाओं के परिष्कार के लिए हमारे देश के गौरव महात्मा गांधी, महारानी लक्ष्मीबाई, महाराणा प्रताप जैसी विभूतियों को प्रतियोगिता का विषय बनाया गया। पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाने के लिए प्रवासी पक्षी पर भी खूब कलम चली और श्रेष्ठ रचनाएं सामने आईं।
माहौल ऐसा बना कि प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों में हिन्दी साहित्यपठन- लेखन की अभिरुचि में वृद्धि हुई। उनमें सृजन के अंकुर फूटे। वे कहानी कविता और दोहे भी लिख सके। प्रेरणा एवं प्रोत्साहन हेतु साहित्यकारों एवं विद्यार्थियों की श्रेष्ठ रचनाएं इस पुस्तक के बाल काव्य खंड में प्रकाशित की गई हैं। यहां कुछ रचनाओं की चंद पंक्तियां द्रष्टव्य हैं-
हरे गुलाबी नीले पीले,
बागों में फूलों के मेले।
काली कोयल छेड़े राग,
आओ बच्चों खेलें फाग।
- सुमनलता शर्मा
सबसे अपनी यारी है
रंग-बिरंगी पिचकारी हैं
नाच रहे खड़े खड़े
झूम रहे हैं बड़े-बड़े।
- मीस्टी माल्या,कक्षा-4झालावाड़
मन में रहा न बैर भाई
हम सब भूलकर एक हो गए भाई।
होली आई मन को भाई
संग खुशियां और प्रेम लाई।
-ओजस मीणा,कक्षा-7झालावाड़
पेड़ न काटने का संदेश देने वाली याना शर्मा, कक्षा 4. की प्रेरक कहानी पुस्तक से पढ़ी जा सकती है। इतना ही नहीं 204पृष्ठों की यह पुस्तक बहुत कुछ कहती है।
बाल-साहित्यकारों से संपर्क कर उनके साक्षात्कार आयोजित कर पहेली, परिकथा, बाल साहित्य और बच्चों पर सोशल मीडिया का प्रभाव,बाल कहानियों में राष्ट्रप्रेम, बच्चों के विकास में बाल विज्ञान कथाओं की भूमिका, बच्चों के लिए श्रेष्ठ बाल-साहित्य की भूमिका, बाल-साहित्य में आलोचना की भूमिका जैसे बाल-साहित्य संबंधी महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तृत जानकारी हासिल कर उसका संकलन इस पुस्तक के बाल-साहित्य: साक्षात्कार-खंड में संजोया गया है। यह इस पुस्तक का बेशकीमती खण्ड है जिसका उपयोग देश का भविष्य संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है।यह ऐसी निधि है जो पाठ्यक्रम निर्माताओं,, अभिभावकों, शिक्षकों,
व्याख्याताओं,साहितसाहित्यकारों,चिंतकों, विचारकों, समाज सुधारकों आदि के लिए बड़ी उपयोगी है।
डॉ.कृष्णा कुमारी जी के साक्षात्कार से स्पष्ट होता है कि बच्चों के लिए पहेलियां बड़े महत्त्व की होती हैं। प्राचीन से अर्वाचीन तक इनका महत्व रहा है। इनके विकास रूप स्वरूप प्रभाव आदि सभी पक्षों को साक्षात्कार में भलि -भांति स्पष्ट किया गया है।
साहित्यकार कृष्ण बिहारी के साक्षात्कार से स्पष्ट होता है कि परीकथाओं का संसार बाल मन के लिए आवश्यक भी है और अनुकूल भी। इसके मूल में कल्पना होती है जो हमें सुविधाएं प्रदान करने वाले विज्ञान का कारण है। वैज्ञानिक विकास के लिए कल्पना -शीलता आवश्यक है यह परिकथाओं से बढ़ती है। कल्पना शक्ति से जीवन में बहुत कुछ संभव है। जीवन की कठिनाइयों के हल भी कल्पना से ही खोजे जाते हैं।
डॉ.अपर्णा पांडेय का कहना है कि समाज में बढ़ती दुर्घटनाओं कारण फिल्मों, धारावाहिकों व वीडियो गेम्स में दर्शायी गई हिंसा और अश्लीलता है। प्राचीन साहित्य प्रेरक कथाओं से भरा पड़ा है। गर्भाधान संस्कार के लिए ईश्वर से चरित्रवान्, बलवान् संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती थी।इस हेतु साहित्य भी लिखा गया था। अपर्णा जी ने धार्मिक व नैतिक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्कृत व हिन्दी के साहित्य पर भी प्रकाश डाला है। आपने बाल साहित्य लिखने के संबंध में भी महत्वपूर्ण बातें बताईं तथा हिन्दी के अच्छे बाल साहित्यकारों का भी जिक्र किया है।
रेखा लोढ़ा जी का कहना है कि वर्तमान में मानवीय संवेदना और राष्ट्रप्रेम जगाने वाली कहानियों की महती आवश्यकता है। यदि व्यक्ति में राष्ट्रप्रेम हो तो अन्य चारित्रिक विशेषताएं भी उपस्थित हो जाएंगी। कहानियां और कविताएं बच्चों के मन पर अमिट छाप छोड़ती हैं। अतः बच्चों को संस्कारित करने के लिए कविताएं और कहानियां सशक्त माध्यम हैं। बाल साहित्य में सहज स्वाभाविकता होनी चाहिए। वर्तमान लेखन मान- प्रतिष्ठा के चक्कर में राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रीय चेतना और भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था जगाने में असमर्थ है।
कोटा की एक मात्र विज्ञान लेखिका प्रज्ञा गौतम ने विज्ञान-साहित्य की विधाओं और उनके लाभों पर प्रकाश डाला है। यह भी बताया है कि विज्ञान साहित्य कैसा होना चाहिए। आपका कहना है कि विज्ञान साहित्य को समाचार पत्रों में स्थान देकर प्रोत्साहित करना चाहिए। आपको खेद है कि इस साहित्य को प्रायः साहित्य से पृथक् माना जाता है।
विख्यात समालोचक दिनेश कुमार माली कहते हैं कि बाल - साहित्य में समय सापेक्ष परिवर्तन अत्यावश्यक है। अतः बाल -साहित्य पर समीक्षात्मक विश्लेषण कर आलोचना पुस्तकें लिखना भी नितान्त जरूरी है। सुदृढ़ परिमार्जित बाल- साहित्य ही भविष्य में देश की संस्कृति, साहित्य, राजनीति व सुव्यवस्थित सामाजिक प्रबंधन की आधारशिला बनता है। आपने 8 से
12वर्ष तथा 13 से18 वर्ष के बच्चों के प्रिय विषयों पर भी प्रकाश डाला । समय में बदलाव के अनुरूप श्रेष्ठ बाल-साहित्य लेखन संबंधी महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए हैं।
निश्चय ही पुस्तक का साक्षात्कार खण्ड बाल-साहित्य के ज्ञान पिपासुओं के लिए तृप्तिकारक सिद्ध होगा।
बाल साहित्य समीक्षा खण्ड को लेखक ने जिस अटूट श्रम से तैयार किया है उसे समूची समीक्षाएं पढ़कर ही आंका जा सकता है। यहां यत्किंचित् प्रकाश डालना ही मेरी लेखनी की नियति है। इस खण्ड में 12 बालकाव्य संग्रहों 2 कहानी संग्रहों , एक काव्यात्मक कथा संग्रह और एक कहानी की पुस्तक की समीक्षाओं को प्रस्तुत किया गया है। इन्हें पढ़कर विदित होता है कि सभी रचनाकारों द्वारा महत्वपूर्ण विषयों पर कुशलतापूर्वक लेखन कार्य किया गया है। पाठकों का अहोभाग्य ही होगा इस समीक्षा -खण्ड को पढ़ना जिसमें डॉ.विमला भंडारी, जितेन्द्र निर्मोही , रामेश्वर शर्मा ‘रामू भैया', डॉ.कृष्णा कुमारी , विजय जोशी ,विष्णु शर्मा हरिहर , जैसे सशक्त साहित्यकारों के अमूल्य साहित्य पढ़ने का आग्रह करती समीक्षाएं सुशोभित हैं।
प्रस्तुत पुस्तक बच्चों के समुचित विकास की सोच, गहराई से विचार कर दृढ़ संकल्पित हो निकाली गई राहों,दिए गए परामर्शोंऔर एकजुट होकर किए श्रम एवं व्यावहारिक प्रयत्नों का सुफल है।
लेखक ने जागृत आंखों से स्वप्न देखकर जिस कदर उसे साकार किया उससे विश्वास जागता है कि यह कृति कितने ही अभिभावकों विद्यार्थियों एवं देश व समाज के शुभचिंतकों के सपनों को साकार कर राष्ट्र की समुन्नति में भरपूर सहयोगी सिद्ध होगी।इसकी प्रतियां सभी पुस्तकालयों में विशेषकर शिक्षा विभाग के पुस्तकालयों में उपलब्ध होनी चाहिए ताकि अधिकाधिक लोग बाल साहित्य का महत्व समझें तथा पुस्तक में उल्लेखित गतिविधियों से प्रेरणा लेकर ठोस कदम उठाएं। बाल साहित्य पढ़ें और पढ़ने की प्रेरणा देने को प्रेरित हों।
लेखक संपादकीय लेख में लिखते हैं कि पुस्तकों से दूर होते बच्चों को साहित्य से जोड़ने का अपना सपना पूरा करने के लिए उन्होंने एक वर्ष तक किए कई प्रयास किए । आपको विशेष कर विमला भंडारी , दिनेश कुमार माली , जितेन्द्र निर्मोही , रामेश्वर शर्मा, ‘रामू भैया' व विजय जोशी जी का सहयोग,मार्ग दर्शन तथा परामर्श मिला।
आपका यह उद्योग वटवृक्ष का वपन किया हुआ,सींचा हुआ और संरक्षित बीज है जिसकी उपादेयता स्वयं सिद्ध है।
आवरण पृष्ठ पर प्रकाशित देश की नामचीन बाल साहित्यकार डॉ.विमला भंडारी ने इस कृति को ‘बाल साहित्य की उपादेयता को उभारती कृति’ कहकर क्या - क्या नहीं कह दिया है, इस कृति की महनीयता के संबंध में? पुस्तक के पृष्ठ पर प्रकाशित संपादक का परिचय भी कम प्रेरक नहीं।
कृति की गुणवत्ता को देखते हुए ही सलिला संस्था द्वारा इस कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार के लिए चुना है। मैं कृति के लेखक डॉ .प्रभात कुमार सिंघल को साधुवाद एवं हार्दिक बधाई देती हूॅं। मैं आपके उज्ज्वलतम साहित्यिक भविष्य, सुस्वास्थ्य तथा दीर्घायुष्य की कामना के साथ लेखनी को विराम देती हूॅं।
-------------