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नाटक “सिरफिरों का घर” का शानदार मंचन

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22 Sep 25
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नाटक “सिरफिरों का घर” का शानदार मंचन

उदयपुर। मार्तण्ड फाउंडेशन,उदयपुर ने विद्या भवन सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में विद्या भवन प्रेक्षागृह में 20 सितम्बर की शाम नाटक “सिरफिरों का घर” का शानदार मंचन किया | मौलिक मनोरंजन के भाव से निर्मित 70 मिनट के इस नाटक ने दर्शकों को अपना बना लिया |

नाटक की कथा वस्तु एक परिवार( पिता -बाबा -विलास जानवे, बेटा - बंडू- मनीष शर्मा और माँ-आई -किरण जानवे )के इर्दगिर्द घूमती है | बेटा अपनी गैर-गंभीर प्रवृत्ति और बार-बार नौकरी बदलने की आदत से पिता से भिन्न नजर आता है। अनुशासनप्रिय और नकारात्मक सोच रखने वाला पिता अक्सर बेटे का मज़ाक उड़ाता है, जबकि माँ करुणा और समझदारी का सेतु बनकर दोनों के बीच संतुलन कायम रखती है। आपसी नोक झोंक और टोका टाकी भरे चुटीले संवाद दर्शकों को गुदगुदाते हैं | लेखक ने नाट्यशास्त्र के सभी नवरसों का समावेश सूजबूझ के साथ किया गया है | एक दृश्य में अपनी माँ को अपमानित करने पर बाबा बंडू को न केवल डांट लगाते हैं बल्कि महाराणा प्रताप की महान घटना को सुनाने एक अन्य पात्र ( अमित मेनारिया )को मंच पर बुलाते हैं | बाबा और बंडू उस घटना अभिनीत करते हैं | अजमेर के सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना की बेगम को अगुआ कर लाने के अपराध में, कुंवर अमर सिंह महाराणा प्रताप से न केवल प्रताड़ित होता है बल्कि बेगम को उनके डेरे में सुरक्षित और ससम्मान पहुंचाने की सज़ा भी पाता है |

महाराणा प्रताप के हिंदुआ क्षत्रीय संस्कार अब्दुल रहीम खानखाना का हृदय परिवर्तित करते हैं | खानखाना लड़ाके सूबेदार से सूफी बन जाता है | महाराणा प्रताप का महामानवीय दृष्टिकोण खानखाना के दोहों में आज भी झलकता है | चुनिन्दा सुरीले दोहों को पुतली के माध्यम से पेश करना नवाचार रहा |

संगीत, मूकाभिनय, कठपुतली, मुखौटे, इतिहास और कविता का संगम इस प्रस्तुति को और भी प्रभावशाली बनाता है। नाटक हमारे पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति के प्रति संवेदना भी जगाता है |

उत्तम प्रकाश योजना, प्रभावी संगीत सहित नाटक का रहस्य और रोमांच दर्शकों को अंत तक बांधे रखता है |

यह सुखांत नाटक आपसी मतभेदों को मिटाकर सबको प्रेम से जोड़ने की सीख देता है ।

मनीष शर्मा (बंडू ) ने शानदार अभिनय का परिचय देते हुए अपनी ऊर्जा से काफी प्रभावित किया | अमित मेनारिया की भाषा पर पकड़ और धारा प्रवाह संवाद अदायगी ने छाप छोड़ी | किरण जानवे का दीर्घ मंचीय अनुभव उनके सहज अभिनय की पहचान है |विभिन्न स्थितियों में उनके उम्दा अभिनय ने नाटक को गति दी | विलास जानवे ने लेखन और निर्देशन के साथ अलग अलग पात्रों के अभिनय को बखूबी से निभाया | मंच निर्माण में धर्मेश शर्मा, संगीत निर्देशन में समर्थ जानवे ने और प्रकाश योजनामें दीपेश शर्मा ने जानदार भूमिका निभाई | यह नाटक पूरे परिवार के साथ देखने योग्य है | नाटक के प्रदर्शन में विद्या भवन सोसाइटी के सीईओ श्री राजेंद्र कुमार भट्ट, प्रसिद्द चित्रकार - रंगकर्मी डॉक्टर शैल चोयल, वरिष्ट रंगकर्मी श्री दीपक दीक्षित के साथ उदयपुर के कई रंगकर्मी और शिक्षक मौजूद रहे| इसी नाटक का पहला मंचन अजमेर में हुआ था | इस नाटक का आनंद भारत के विभिन्न राज्यों से आये सी सी आर टी के 90 प्रशिक्षु शिक्षक भी उठा चुके हैं |


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