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राजस्थान बन रहा है परमाणु बिजलीघर का हब

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20 Sep 25
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राजस्थान बन रहा है परमाणु बिजलीघर का हब

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

ऊर्जा की आवश्यकता किसी राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रगति के लिए आधारभूत होती है। भारत जैसे विशाल और जनसंख्या में विश्व में दूसरे नंबर पर ऐसे देश के लिए, ऊर्जा की मांग निरंतर बढ़ती है। यह मांग न सिर्फ बिजली उत्पादन की है बल्कि उसका विश्वसनीय, सफ़ल, स्वच्छ और सतत् स्रोत चाहिए। ऐसी स्थिति में परमाणु ऊर्जा विकल्पों में उभरती है। राजस्थान राज्य, जहाँ जल-वायु की चरम स्थितियाँ, विशाल क्षेत्रफल और प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं, ऊर्जा सुरक्षा के लिए परमाणु बिजलीघर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 

राजस्थान का पहला वाणिज्यिक परमाणु बिजली घर रावतभाटा में स्थित है, जिसे राजस्थान परमाणु शक्ति परियोजना (आरकेपीपी) के नाम से जाना जाता है। यह परियोजना न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा संचालित है। आरकेपीपी यूनिट की स्थापना भारत में पहला परमाणु बिजलीघर होने के कारण महत्वपूर्ण है। इसका पहला वाणिज्यिक संचालन 1970 के दशक में शुरू हुआ था। बाद में कई यूनिटें स्थापित की गईं, विस्तारित समय और तकनीकी उन्नयन के बाद, यूनिटों की क्षमता बढ़ी है। आरएपीपी-7 यूनिट हाल ही में ग्रिड से जुड़ा है। आरएपीपी-8 यूनिट निर्माणाधीन है। 

कुल मिलाकर, इस बिजलीघर की स्थापित क्षमता बढ़ाने की लगातार प्रक्रिया जारी है ताकि बिजली आपूर्ति अधिक विश्वसनीय हो सके। 

 

राजस्थान में ऊर्जा भविष्य की दृष्टि से सबसे बड़ी और समकालीन प्रस्तावित परमाणु परियोजना दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में  माही बैकवाटर के पास प्रस्तावित है।  माही नदी के किनारे, माही बजाज सागर बाँध के उपर पानी के अथाह स्रोत के रूप में इस परियोजना को देखा गया है। इसमें  चार इकाइयाँ  प्रस्तावित है। इसकी कुल क्षमता 2,800 मेगावाट है। इसकी पर्यावरण मंज़ूरी, भूमि अधिग्रहण और साइटिंग क्लियंस आदि स्वीकृतियां मिल चुकी हैं तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 25 सितम्बर को इसका शिलायन्स होना प्रस्तावित है। इसकी पहली इकाई 2031 तक चालू हो सकती है। बाकी यूनिटें क्रमबद्ध तरीके से  आयेगी। पूरे प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत लगभग ₹42,000 से ₹50,000 करोड़ के मध्य आंकी जा रही है। 

 

राजस्थान में परमाणु बिजलीघर होने के कई लाभ हैं, इलेक्ट्रिसिटी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा एक स्थिर स्रोत है, विशेषकर जब सौर और पवन ऊर्जा मौसमी और परिवर्तनीय होती है। इससे ऊर्जा सुरक्षा और भरोसा मिलेगा। परमाणु बिजली घर स्वच्छ ऊर्जा  का स्त्रोत है तथा इससे कार्बनडाइड  का उत्सर्जन बहुत कम होता हैं। जलवायु परिवर्तन से मुकाबले में ये महत्वपूर्ण योगदान करते हैं।

यह परियोजना आर्थिक विकास एवं रोजगार

निर्माण। में सहयोगी साबित होगी, इसके संचालन, रख-रखाव, आपूर्ति श्रृंखला आदि में स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन होगा। विशेषकर बांसवाड़ा जैसे आदिवासी बहुल जिलों में अवसंरचनात्मक का विकास भी होगा।प्रौद्योगिकी एवं आत्म-निर्भरता से विदेशी निर्भरता कम होगी। साथ ही देश और  राजस्थान की मौजूदा बिजली उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी, जिससे शहरों, उद्योगों और ग्रामीण इलाकों में बिजली कटौती की समस्या कम होगी।

 

परमाणु बिजलीघर से जुड़े कई लाभ हैं, लेकिन कुछ चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें नज़र अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। साइट चयन, भूमि अधिग्रहण और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव जैसे वन क्षेत्र, नदियों, जीव-जंतु आदि को ध्यान में रखना होगा। रेडियोधर्मी उत्सर्जन की संभावना, परमाणु आपदाएँ और असाधारण हालातों जैसे भूकंप, बाढ़ आदि की तैयारी आवश्यक है।उपयोग के बाद की ईंधन सामग्री आदि का सुरक्षित भंडारण और प्रबंधन लंबी अवधि की जिम्मेदारी है।परियोजनाएँ महँगी होती हैं और उन्हें पूरा करने में वर्षों लग सकते हैं। लागत बढ़ने की संभावना और समय-सीमा में देरी हो सकती है।स्थानीय लोगों में विस्थापन की आशंका, पर्यावरणीय व स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में भय और विरोध हो सकते हैं। इन्हें ठीक से समझाना और पारदर्शी रूप से काम करना ज़रूरी है। हालांकि सरकार ने परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए कई पहलें शुरू की है।

 

फ्लीट-मोड (Fleet Mode) PHWR-700 मॉडल में दस यूनिटों की मंजूरी दी गई है, जिसमें माही-बांसवाड़ा भी शामिल है। राज्य एवं केंद्र सरकार दोनों मिलकर योजनाएँ बना रहे हैं कि समय पर परियोजनाएँ पूरी हों। परमाणु नियामक एवं पर्यावरणीय स्वीकृति प्रक्रियाएँ तेज़ की जा रही हैं।

 

 

 

भविष्य में राजस्थान में परमाणु बिजलीघर क्षेत्र में विकास की संभावनाएँ खुल सकती हैं।माही-बांसवाड़ा के बाद भी अन्य प्रस्तावित प्रोजेक्ट आगे बढ़ेंगे।बिजलीघर बनने से आसपास के क्षेत्रों (बांसवाड़ा आदि) में सड़क-पानी-स्वास्थ्य-शिक्षा आदि की सुविधाएँ बढ़ेंगी, आबादी में जनकल्याण होगा।भारत की ऊर्जा नीति में परमाणु ऊर्जा को बड़े हिस्से में शामिल किया जायेगा और विदेशी निवेश या प्रौद्योगिकी साझेदारी की संभावना बढ़ेगी।

राजस्थान जैसी सौर ऊर्जा में अग्रणी राज्य होने के बावजूद, सौर-पवन के अलावा स्थिर ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता है जो यह परमाणु बिजली इस संतुलन को सुनिश्चित करेगा।

 

राजस्थान में परमाणु बिजलीघरों का विकास सिर्फ बिजली उत्पादन का मामला नहीं है बल्कि यह राज्य और देश दोनों के लिए ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक समृद्धि और पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण कदम है। रावतभाटा के पुराने प्रकल्पों से सीख और अनुभव मिला है; अब माही-बांसवाड़ा जैसा बड़ा प्रकल्प उस अनुभव को और आगे ले जाने का अवसर है। चुनौतियाँ समय, लागत, सुरक्षा और सामाजिक स्वीकृति से जुड़ी हैं, लेकिन यदि नीति नियोजन, तकनीकी दक्षता और जन संवाद पूरी तरह से हो, तो ये परियोजनाएँ राजस्थान को और देशों को ऊर्जा-क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाने में सहायक होंगी। इस प्रकार, राजस्थान में परमाणु बिजलीघर न सिर्फ वर्तमान ज़रूरतों को पूरा करने का माध्यम बन रहा है, बल्कि आने वाले समय में यह परमाणु बिजलीघर का हब बन एक ऐसी नींव रख रहा है जिस पर राज्य और राष्ट्र दोनों की प्रगति टिकी हो सकती है।


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