

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल-लेखक एवं पत्रकार-राजस्थान में जैन मतावलम्बियों का पूज्य एवं प्रसिद्ध ऋषभदेव मन्दिर उदयपुर से 64 किमी. दूर धुलेव गांव में स्थित है जो पूरे भारतवषर् में प्रसिद्ध है। मन्दिर में दिगम्बर, श्वेताम्बर, वै६णव, श्वेव व आदिवासी भील आदि सभी वर्गों के लोग पूरे श्रृद्धा के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। यहां ऋषभदेव की प्रतिमा पर प्रतिदिन केसर चढाये जाने से इसे केसरिया जी का मन्दिर भी कहा जाता है। मुख्य मन्दिर में गर्भगृह और इसके आगे खेल मण्डप अत्यंत कलात्मक है और इनमें देवी-देवताओं की प्रतिमाएं आकषर्क रूप से बनाई गई हैं।
यह मन्दिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी को समर्पित है। ऋषभदेव जी की ७याम वर्णीय साढे तीन फीट पद्मासन मुद्रा में प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है। प्रतिमा के केश कंधों को छूते हैं। ऋषभदेव जी की प्रतिमा का गोल चेहरा अत्यन्त आकषर्त करता है तथा मन को शांति प्रदान करता है। जिस प्लेटफार्म पर प्रतिमा विराजमान है उसके सामने दो बैलों की प्रतिमाएं बनी हैं। प्लेटफार्म पर तीर्थंकर की माता की सौलह स्वप्नों को पाषाण में उंकेर कर साकार किया गया है। प्रतिमा के पा८र्व भाग में अ६ट धातु की दो खडी मुद्रा में तथा 21 बैठी हुई मुद्रा में कुल 23 प्रतिमाएं उंकेरी गई हैं। उत्तर एवं दक्षिण की तरफ खेल मण्डप में भगवान वासुपूज्य, मलनिशाह, नेमीनाथ, पा८र्वनाथ एवं महावीर स्वामी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। सम्पूर्ण मन्दिर में दीप पाण्डाल, 9 चौकी, मयूर तथा किले का पाषाण में चित्र्ण दशर्नीय है। दूर से ही मन्दिर के 52 जिनालयों के कलात्मक शखर नजर आते हैं, इन्हें देवाकुलिका भी कहा जाता है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर हाथियों की आकृति नजर आती है। प्रवेश द्वार के उत्तर में देवी चक्रे८वरी एवं दक्षिण में देवी पद्मावती की छवियां हैं।
माना जाता है कि 15वीं शताब्दी से पूर्व मन्दिर की शल्पकला सुन्दर थी। यहां मिले संवत् 1431 के शलालेख से ज्ञात होता है कि मन्दिर का निर्माण दिगम्बर जैनियों ने 19वीं शताब्दी में करवाया था। माना जाता है कि भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा खुन्दरी गांव से लाकर यहां स्थापित की गई। मन्दिर से 2 किमी. दूर पगल्या जी का पवित्र् स्थान हैं जहां भगवान ऋषभ देव के पदचिन्ह एक छतरी में रखे गये हैं तथा इनकी पूजा की जाती है। यहां प्रतिवषर् भगवान ऋषभदेव जयन्ती पर चैत्र् कृ६णा अ६टमी एवं नवमी पर विशाल शोभायात्र का आयोजन किया जाता है। यहां प्रतिवषर् आ८वन कृ६णा प्रथमा व द्वितीया को भगवान ऋषभदेव की भव्य यात्र आयोजित की जाती है। भील आदिवासी ऋषभदेव जी को ७याम वर्ण की प्रतिमा होने के कारण काला बाबा कहकर पुकारते हैं। कहा जाता है कि जंगलों में रहने वाले इस क्षेत्र् के भीलों ने इस प्रतिमा को एक पेड के पीछे से प्राप्त किया था। भीलों की काले बाबा के प्रति पूर्ण आस्था और वि८वास है।
ऋषभदेव मन्दिर का समीपवर्ती रेलवे स्टेशन 11 किमी. दूर केसरिया जी है। यहां यात्र्यिों के ठहरने के लिए तीन बडी धर्मशालाएं हैं जिनमें एक धर्मशाला मन्दिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है। यह मन्दिर देवस्थान के अन्तर्गत लिया गया है।
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