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परमाणु ऊर्जा विस्तार की दृष्टि से देश का स्वर्णिम काल

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21 Dec 19
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परमाणु ऊर्जा विस्तार की दृष्टि से देश का स्वर्णिम काल

भारत की लगभग 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, ग्रामीण घरों की ऊर्जा की जरूरत का बड़ा भाग जलावन और उपलों से पूरा होता है, इसमें जंगलों की लकडी और गाय, भैंस के गोबर का उपयोग किया जाता है। भारत अपनी वाणिज्यिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोयले पर सबसे ज्यादा निर्भर है।भारत दुनिया का तीसरा बड़ा कोयला उत्पादक देश है।कोयला लिग्नाइट,बिटुमिनस एवं एथ्र्रासाइट रूप में मिलता है। कोयले के बाद भारत का मुख्य ऊर्जा संसाधन पेट्रोलियम है विभिन्न कार्यों के लिए पेट्रोलियम ऊर्जा का ही प्रयोग किया जाता है और पेट्रोलियम बहुत सारी उद्योगों के लिए भी कच्चे माल की आपूर्ति करता है पेट्रोलियम से प्लास्टिक टेक्सटाइल फार्मास्यूटिकल आदि जैसी चीजें बनती हैं । भारत में पेट्रोलियम की आपूर्ति का करीब 63 प्रतिशत हिस्सा मुंबई हाई से मिलता है तथा 18% गुजरात सेवर 13% असम से आता है गुजरात में सबसे महत्वपूर्ण तेल का क्षेत्र अलंकेश्वर है एवं भारत का सबसे पुराना पेट्रोलियम उत्पादक असम है । प्राकृतिक गैस पेट्रोलियम के साथ भी पाई जाती है और इसके अलावा यह अकेली भी मिल जाती है इसका इस्तेमाल ईंधन और कच्चे माल के तौर पर होता है । कृष्णा गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं इसके अलावा खंभात की खाड़ी मुंबई हाई और अंडमान निकोबार में भी प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं । प्राकृतिक गैस का प्रयोग उर्वरक के तौर पर और बिजली उत्पादन में होता है। आजकल सीएनजी का उपयोग गाड़ियों में भी  ईंधन के रूप में भी होने लगा है। 
           हम जब बिजली ऊर्जा की चर्चा करते हैं तो भारत में बिजली परंपरागत ऊर्जा के संसाधनों में आती है तथा बिजली का उत्पादन मुख्य रूप से दो तरीकों से होता है एक बहते जल से और दूसरा कोयला पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस को ईधन के रूप में इस्तेमाल करके टरबाइन चलाया जाता है और उसे बिजली का उत्पादन किया जाता है । देश में मुख्य पनबिजली उत्पादक  भाखड़ा नांगल कोमा दामोदर वैली कारपोरेशन कोपली हाइडल प्रोजेक्ट हैं। वर्तमान में देश में 300 से ज्यादा थर्मल पावर स्टेशन हैं।
               गैर परंपरागत या नवीनीकृत ऊर्जा श्रोतों में परमाणु विखंडन से ऊर्जा का निर्माण किया जाता है जिसके निर्माण के लिए यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है। इससे बहुत भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती है जिसका उपयोग बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है। सौर ऊर्जा को ऊर्जा है जो सीधे सूरज की रोशनी से प्राप्त होती है सौर ऊर्जा को विद्युत में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है भारत में सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा प्लांट भुज के निकट माधवपुर में है ।  हवा द्वारा जो ऊर्जा प्राप्त की जाती है उसे पवन ऊर्जा कहते हैं इससे इसमें पवन चक्कियों द्वारा हवा की शक्ति को इस्तेमाल करके टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली पैदा की जाती है भारत को विश्व का पवन सुपर पावर माना जाता है पवन ऊर्जा के मामले में आंध्र प्रदेश, कर्णाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और तामिलनाडु भी अहम हैं। समुद्र में आने वाले ज्‍वारों का इस्तेमाल करके ज्वारीय ऊर्जा पैदा की जाती है इसके लिए समुद्र पर जहां ज्वार आते हैं वहां बांध बनाकर ज्‍वारों को रोक लिया जाता है और जब ज्‍वार चला जाता है तो गेट को खोला जाता है जब पानी समुद्र की ओर वापस जाता है तो पानी के बहाव के कारण टरबाइन चलते हैं और बिजली पैदा होती है कच्छ की खाड़ी में 900 मेगा वाट का एक ज्वारीय ऊर्जा प्लांट बनाया गया है इसे नेशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन ने बनाया  है।धरती के अंदर कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहां धरती के नीचे लावा गर्म होने से ऊष्मा दरारों में वाष्‍प का धरती की सतह पर आती है और भूमिगत जल भाप बनकर भाग के रूप में ऊपर उठता है ।इस पप का इस्तेमाल टरबाइन चलाने में किया जाता है और बिजली पैदा की जाती है भारत में अभी प्रयोग के तौर पर भूतापीय ऊर्जा से बिजली बनाने के लिए केवल दो संयंत्र स्थापित किए गए हैं पहला हिमाचल प्रदेश में मनीकरण के निकट पार्वती घाट में है और दूसरा लद्दाख में पूगा घाटी में स्थित है  गाय भैंस के गोबर खरपतवार को कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया उपयोगी बायोगैस में बदल देते हैं चूंकि इस उपयोगी गैस का उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) द्वारा होता है, इसलिए इसे जैविक गैस (बायोगैस) कहते हैं। मिथेन गैस बायोगैस का मुख्य घटक है। भारत में ग्रामीणों द्वारा बायोगैस प्लांट को व्यक्तिगत तौर पर भी बनाया जा रहा है बायोगैस प्लांट से ऊर्जा के साथ-साथ खाद की प्राप्ति भी होती है।
               भारतीय विद्युत उत्पादन एवं आपूर्ति के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा एक निश्चित एवं निर्णायक भूमिका है। किसी भी राष्ट्र के सम्पूर्ण विकास के लिए विद्युत की पर्याप्त तथा अबाधित आपूर्ति का होना आवश्यक है। विकासशील देश होने के कारण भारत की सम्पूर्ण विद्युत आवश्यकताओं का एक बड़ा भाग गैर पारम्परिक स्रोतों से पूरा किया जाता है क्योंकि पारम्परिक स्रोतों द्वारा बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता। भारत ने नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है। इसका श्रेय डॉ. होमी भाभा  द्वारा प्रारंभ किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों को जाता है जिन्होंने भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम की कल्पना करते हुए इसकी आधारशिला रखी। तब से ही परमाणु ऊर्जा विभग परिवार के समर्पित वेज्ञानिकों तथा इंजीनियरों द्वारा बड़ी सतर्कता के साथ इसे आगे बढ़ाया गया है।
  
               परमाणु ऊर्जा के विकास पर केंद्र सरकार का विशेष फोकस है और सरकार की प्राथमिकता में है यह कार्यक्रम। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रथम कार्यकाल से ही इस पर जोर दिया और फी हैंड दिया। कार्यक्रम से जुड़े अधिकारी प्रधान मंत्री के इसके प्रति दृश्टिकोण ने उत्साहित एवं आशान्वित हैं । भारत मे आज परमाणु ऊर्जा उत्पादन के कार्यो ने जिस तेजी से गति पकड़ी है उसे परमाणु ऊर्जा के विस्तार और विकास का स्वर्णिम समय कहे तो अतिशियोक्ति नहीं होगी। परंपरागत ऊर्जा श्रोतों के भंडारों की निरंतर हो रही कमी के मध्यनजर जरूरी भी हो गया है कि गैर परंपरागत नवीनीकृत श्रोतों परमाणु ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा की ओर हमारे कदम तेजी से आगे बढ़े । 
                ऊर्जा आर्थिक विकास और जीवनस्तर बेहतर बनाने में का एक आवश्यक साधन हैl भारत में विद्युत उत्पादन का विकास 19वीं सदी के अंत में, सन 1897 में दार्जिलिंग में बिजली आपूर्ति की शुरुआत से हुआ। ताप विद्युत, जल विद्युत और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के बाद भारत में परमाणु ऊर्जा बिजली का सबसे बड़ा स्रोत है। भारत में घरेलू यूरेनियम रिजर्व कम है और यूरेनियम आयात पर निर्भर है ताकि परमाणु ऊर्जा उद्योग को बढ़ावा दिया जा सके इसलिए, 1990 से, रूस भारत के लिए परमाणु ईंधन का प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है।
               भारत में महाराष्ट्र के तारापुर मेंन्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड  द्वारा संचालित 1400 मेगावाट क्षमता का उबलते पानी वाला रिएक्टर एवं दबाव वाले भारी जल रिएक्टर  विद्युत उत्पादन कर रहा है। तमिलनाडु के कुडनकुलम मेंन्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड  द्वारा 2000 मेगावाट उत्पादन क्षमता के रिएक्टर स्थापित हैं। कर्नाटक के कैगा में न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटिड द्वारा 880 मेगावाट क्षमता के भारी जल रिएक्टर विद्युत उत्पादन कर रहे हैं। गुजरात के काकरापार में 440 मेगावाट के रिएक्टर उत्पादन कर रहे हैं। राजस्थान के रावतभाटा में 1180 मेगावाट क्षमता का विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा तमिलनाडु के कलपक्कम में 440 मेगावाट एवं उत्तर प्रदेश के नोनेरा में 440 मेगावाट के रिएक्टर विद्युत उत्पादन कर रहे हैं।देश के 9 परमाणु बिजलीघरों का उपलब्धता फैक्टर 90 प्रतिशत रहा है तथा कैपिसिटी फेक्टर भी 90 से 100 प्रतिशत रहा है।

                भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन  की चली बयार की तेजी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में स्वीकृत- निर्माणाधीन 21 परमाणु रिएक्टरों से वर्ष 2031 तक देश मे परमाणु ऊर्जा उत्पादन की क्षमता बढ़ कर 15 हज़ार 700 मेगावाट तक पहुंचने  की संभावना का आंकलन किया गया है। देश की कुल ऊर्जा  उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का वर्तमान में 2 प्रतिशत योगदान है जिसके आने वाले 6 सालों में बढ़ कर उत्पादन क्षमता दुगुनी हो जाएगी। वर्तमान में परमाणु विद्युत विकास के लिए माही बांसवाड़ा-राजस्थान में 4 , गोरखपुर में 4, कुडनकुलम में 4, रावतभाटा-राजस्थान में 2, काकरापार में 2, चुटका-मध्य प्रदेश में 2, कलपक्कम फास्टरब्रीडर का एक रिएक्टर शामिल हैं। इनके निर्माण पर एक लाख पांच हज़ार करोड़ रुपये व्यय किये जायेंगे।  

             राजस्थान के दक्षिण- पूर्व में चम्बल नदी के किनारे रावतभाटा दूसरे बड़े परमाणु ऊर्जा उत्पादन का केंद्र बनने जा रहा है। यहां वर्तमान में स्थापित 6 दाबयुक्त भारी जल रिएक्टरों की उत्पादन क्षमता 1180 मेगावाट है। यहां परमाणु विद्युत उत्पादन परियोजना की शुरुआत 1963 में हुई जब कनाडा के सहयोग से 110-110 कुल 220 मेगावाट उत्पादन क्षमता की दो इकाइयां प्रारम्भ की गई। इन्होंने क्रमशः 16 दिसम्बर1973 एवं 1 अप्रैल 1981 से विद्युत उत्पादन प्रारम्भ किया। आण्विक विद्युत विस्तार के अंतर्गत 570 मिलियन डॉलर की लागत से स्थापित 220 मेगावाट की इकाई 3 ने 1 जून 2000 तथा  220 मेगावाट की इकाई 4 ने 23 दिसम्बर 2000 से विद्युत उत्पादन शुरू किया।अगले चरण में 220 -220 मेगावाट की इकाई 5 एवं इकाई 6 स्थापित की गई जिन्होंने क्रमशः 4 फरवरी 2010 एवं 31 मार्च 2010 से विद्युत उत्पादन शुरू किया। इनके संचलन के लिए परियोजना स्थल पर भारी पानी उत्पादन संयंत्र की स्थापना की गई।

              विस्तार के क्रम में इकाई न.7 एवं इकाई न.8 का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है । ये इकाइयां 700-700मेगावाट उत्पादन क्षमता की हैं। इनके पूर्ण होने पर रावतभता परमाणु विद्युत परियोजना की उत्पादन क्षमता बढ़ कर दुगुनी हो जाएगी। इकाई 7 का 90 प्रतिशत एवं इकाई 8 का 60 प्रतिशत कार्य पूरा हो गया है। इन इकाइयों के निर्माण पर 123.2 बिलियन रुपये का प्रावधान किया गया है। इकाई 7 को दिसम्बर 2020 एवं इकाई 8 को दिसम्बर 2021 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। इनसे बिजली उत्पादन शुरू होने पर न्यूकिलियर शहर रावतभाटा 2022 तक 2 करोड़ लोगों की आवश्यकता की बिजली उपलब्ध कराने लगेगा। इस समय तक करीब 20 हज़ार मिलियन यूनिट का उत्पादन रावतभाटा से होने लगेगा। बिजलीघर के स्थल निदेशक विजय कुमार जैन की माने तो भविष्य में रावतभाटा में राजस्थान परमाणु बिजली घर की 9वीं एवं 10वीं इकाई लगने भी संम्भावना है। यह 7वीं एवं 8वीं इकाई के पूर्ण होने पर ही तय हो पायेगा। हमारे पास जगह एवं संसाधनों की कोई कमी नही है। 

यूरेनियम फ्यूल बंडल कॉम्पलेक्स प्रोजेक्ट 

               रावतभाटा में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में एक ओर कदम बढ़ाया है। यहां देश के दूसरे यूरेनियम फ्यूल बंडल कॉम्पलेक्स प्रोजेक्ट की  नींव का पहला पत्थर 9 सितंबर 2017 को परमाणु ऊर्जा विभाग के अध्यक्ष डॉ. शेखर बसु ने रखा।  2400 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में 2021 के बाद प्रतिवर्ष 500 टन यूरेनियम फ्यूल बंडल बनेंगे। इससे राजस्थान परमाणु बिजलीघर की 7वीं 8वीं इकाई, काकरापार गुजरात की 7वीं 8वीं इकाई, उत्तरी भारत में भविष्य में लगने वाली सभी 700-700 मेगावाट के परमाणु बिजलीघरों को यूरेनियम फ्यूल बंडल की आपूर्ति रावतभाटा से की जाएगी।  जादू गौडा और देश की अन्य खानों से यूरेनियम यल्लोकेक के रूप में आएगा और यहां पर यूरेनियम फ्यूल बंडल बनाया जाएगा।  कुल 190 हेक्टर भूमि पर बनाई जा रही इस परियोजना के साथ-साथ 50 हेक्टर में टाउनशिप कॉलोनी भी बन रही है। इस परियोजना के पूर्ण होने पर करीब तीन हज़ार लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त होगा। इस परियोजना पर अब तक 120 करोड़ रुपये से ज्यादा व्यय किया जा चुका है। वर्तमान में 1971 में  हैदराबाद में स्थापित प्रथम फ्यूल कॉप्लेक्स से फ्यूल बंडल मंगाए जा रहे हैं ।
         परमाणु बिजलीघर एनटीसी के अधिकारी संजय माथुर की माने तो दुनियाभर के 31 देशों में 459 परमाणु रिएक्टर विद्युत उत्पादन कर रहे हैं। इनमें सर्वाधिक अमेरिका में 98 रिएक्टर , फ्रांस में 50,चीन में 48 , जापान में 37 रूस में 36 ,भारत में 22 रिएक्टर हैं। दुनिया के रिएक्टरों की विद्युत उत्पादन क्षमत 390 गीगावाट है तथा  11 प्रतिशत बिजली न्यूक्लियर से उत्पादित हो रही है। विश्व में इस समय 60 परमाणु बिजलीघर निर्माणाधीन है।इसमें अकेला चीन 20 परमाणु रिएक्टरों का निर्माण कर रहा है। भारत में 7 एवं पाकिस्तान में भी 3 परमाणु रिएक्टर निर्माणाधीन है।

          हम परमाणु ऊर्जा के विकास की पृष्ठ भूमि पर भी नज़र डालें तो परमाणु ऊर्जा के शांति पूर्ण उपयोग के लिए  नीतियां बनाने के लिए वर्ष 1948 गठित परमाणु ऊर्जा कमीशन ने नीतियों के क्रियान्वयन के लिए 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की। अपनी स्थापना से लेकर परमाणु ऊर्जा विभाग निरंतर इस दिशा में सक्रिय हो कर कार्य कर रहा है। इस विभाग के अधीन भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र महाराष्ट्र राज्य के मुम्बई में, इंदिरा गाँधी परमाणु अनुसन्धान केंद्र तमिलनाडु राज्य के लकपक्कम में, उन्नत तकनीकी केंद्र इंदौर में, वेरिएबल एनर्जी  साइक्लोट्रान केंद्र कोलकाता में एवं परमाणु पदार्थ अन्वेषण और अनुसन्धान निदेशालय हैदराबाद में संचालित हैं।

       परमाणु ऊर्जा विभाग सात संस्थानों को आर्थिक सहायता प्रदान करता है जिस में टाटा फंडामेंटल अनुसन्धान संस्थान-मुम्बई, टाटा स्मारक केंद्र-मुम्बई, साहा नाभकीय भोंतिकी संस्थान-कोलकाता, भोंतिकी संस्थान- भुवनेश्वर, हरिश्चन्द्र अनुसंधान संस्थान-इलाहाबाद, गणितीय विज्ञान संस्थान-चेन्नई एवं प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान-अहमदाबाद शामिल हैं।


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