GMCH STORIES

धन्वन्तरी जयंती — आयुर्वेद के अविर्भाव का दिव्य उत्सव

( Read 2570 Times)

16 Oct 25
Share |
Print This Page

धन्वन्तरी जयंती — आयुर्वेद के अविर्भाव का दिव्य उत्सव

भारतभूमि वह पवित्र धरा है जहाँ ज्ञान और विज्ञान दोनों को परमात्मा की देन माना गया है। यही वह भूमि है जहाँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को धर्म, विज्ञान और अध्यात्म से जोड़कर देखा गया है। इन्हीं में से एक शाश्वत विज्ञान है आयुर्वेद, जिसे ‘जीवन का वेद’ कहा गया है। आयुर्वेद के प्रणेता, देवताओं के वैद्य भगवान धन्वन्तरी का अविर्भाव दिवस धन्वन्तरी जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस न केवल चिकित्सा जगत के लिए, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक पवित्र प्रेरणा दिवस है।

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, जब देवता और दानवों ने समुद्र मंथन किया, तब चौदह रत्नों में से एक रूप में भगवान धन्वन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। उसी क्षण से उन्हें देव वैद्य कहा गया। उन्होंने आयुर्वेद शास्त्र का ज्ञान लोककल्याण हेतु मानव समाज को प्रदान किया। यह अवतार न केवल अमृत का प्रतीक है, बल्कि स्वास्थ्य और दीर्घायु के दिव्य सूत्र का भी द्योतक है।

धन्वन्तरी जी का यह अविर्भाव कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन हुआ, जो दीपावली से दो दिन पूर्व मनाई जाती है। यह दिन इसलिए भी विशेष है क्योंकि इसे ‘आयुर्वेद दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है।

भगवान धन्वन्तरी केवल वैद्य नहीं, बल्कि जीवन के संतुलन के अधिपति माने गए हैं। उन्होंने मानव को यह सिखाया कि शरीर, मन और आत्मा — ये तीनों जब संतुलित होते हैं तभी स्वास्थ्य संभव है। आयुर्वेद का मूल सिद्धांत — “समा दोषः, समा अग्निश्च, समा धातु मल क्रियाः, प्रसन्न आत्मेन्द्रिय मनः, स्वस्थ इत्यभिधीयते।” यही संतुलन धन्वन्तरी तत्त्व का प्रत्यक्ष रूप है।

आयुर्वेद का जन्म मानवता के आरंभ से जुड़ा है। यह केवल रोगनिवारण की पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। इसमें बताया गया है कि ऋतु, आहार, निद्रा, आचरण और द्रव्यों का संयमित उपयोग कैसे शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखता है। धन्वन्तरी ने हमें यह समझाया कि रोग तब उत्पन्न होता है जब मनुष्य प्रकृति के विरुद्ध जीवन जीता है।

आज जब आधुनिक जीवनशैली में असंतुलन, तनाव, अपच और अनियमित दिनचर्या के कारण नये-नये रोग बढ़ रहे हैं, तब धन्वन्तरी जयंती हमें पुनः स्मरण कराती है कि “स्वास्थ्य प्रकृति में है, औषधि उसके अनुसरण में।”

भारत सरकार ने 2016 से इस दिवस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इसका उद्देश्य है जनमानस में आयुर्वेद के प्रति विश्वास बढ़ाना, लोकजीवन में आयुर्वेदिक पद्धतियों को पुनः स्थापित करना और रोग से पूर्व स्वास्थ्य की रक्षा के सिद्धांत को अपनाना। इस दिन देशभर के आयुर्वेद चिकित्सालयों, संस्थानों और विश्वविद्यालयों में विशेष धन्वन्तरी पूजन, जनजागरण रैलियाँ, स्वर्ण प्राशन संस्कार, पंचकर्म शिविर तथा आयुर्वेदिक प्रदर्शनियाँ आयोजित की जाती हैं।

भगवान धन्वन्तरी का संदेश केवल भारतीय नहीं, बल्कि सार्वभौमिक है। उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति अपने जीवन का चिकित्सक स्वयं है। उनका उपदेश था — “नित्यं हिताहारविहारसेवी, समानचित्तः, नित्यपर्यटकः। सत्यप्रियो धर्मपरायणश्च, रोगान्न विन्दत्ययुर्वेदवित्।” अर्थात जो व्यक्ति हितकर आहार-विहार अपनाता है, सत्य और धर्म का पालन करता है, वह कभी रोगी नहीं होता।

आज का समाज वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत आगे बढ़ा है, परंतु मानसिक तनाव, प्रदूषण, अव्यवस्थित आहार और अनिद्रा जैसी समस्याएँ मनुष्य के सुख को छीन रही हैं। ऐसे समय में धन्वन्तरी का आरोग्य दर्शन अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य का मूल केवल औषधि नहीं, बल्कि संतुलित जीवनशैली है।

आज वेलनेस उद्योग अरबों डॉलर का हो चुका है, परन्तु इसका मूल सिद्धांत वही है जो आयुर्वेद हज़ारों वर्ष पहले सिखा चुका है — रोग से पहले रोकथाम।

धन्वन्तरी पूजन के समय शुद्धता, संयम और सात्त्विकता को प्रमुखता दी जाती है। आयुर्वेद के अनुसार यह दिन शरीर शोधन और मन की स्थिरता का प्रतीक है। इस दिन दीपदान, तैलाभ्यंग, स्नान, सुगंधित द्रव्यों का प्रयोग, औषध दान और ब्राह्मण पूजन जैसे कर्म करने से शरीर में त्रिदोषों का संतुलन और मन में प्रसन्नता बढ़ती है।

मेवाड़ की धरती पर आयुर्वेद की परंपरा सदियों पुरानी है। यहाँ के राजवैद्य, रसशास्त्रज्ञ और वैद्यराजों ने आयुर्वेद को लोकजीवन से जोड़ा। आज भी यहाँ अनेक औषधालयों, आयुर्वेदिक शिविरों और पंचकर्म केंद्रों में धन्वन्तरी जयंती विशेष श्रद्धा से मनाई जाती है। स्वर्ण प्राशन संस्कार, औषध वितरण, तथा रोगनिवारण शिविर इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

धन्वन्तरी जयंती हमें यह स्मरण कराती है कि चिकित्सा केवल पेशा नहीं, बल्कि सेवा है। आयुर्वेदिक चिकित्सक जब रुग्ण के जीवन में स्वास्थ्य और संतुलन लाता है, तब वह धन्वन्तरी की कृपा का माध्यम बनता है।

हम सबका कर्तव्य है कि इस दिव्य दिन पर हम यह संकल्प लें — हम आयुर्वेद को जीवन का हिस्सा बनाएँगे, प्राकृतिक जीवनशैली अपनाएँगे, और स्वास्थ्य के देवता धन्वन्तरी के मार्ग पर चलेंगे।

धन्वन्तरी जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आरोग्य संस्कृति का पुनर्जागरण है। यह वह दिन है जब हम अपने भीतर के वैद्य, संतुलन और करुणा को जाग्रत करते हैं। आयुर्वेद के माध्यम से जब मनुष्य अपने जीवन में अनुशासन, संयम और संतुलन लाता है, तभी वह धन्वन्तरी के आशीर्वाद का पात्र बनता है।

अतः इस पावन अवसर पर हम सब भगवान धन्वन्तरी से यही प्रार्थना करें —
“ओम् नमो भगवते वासुदेवाय धन्वन्तरये,
अमृतकलशहस्ताय सर्वामयविनाशनाय,
त्रैलोक्यनाथाय श्रीमहाविष्णवे नमः।”

यह धन्वन्तरी जयंती सम्पूर्ण मानवता के लिए स्वास्थ्य, शांति और दीर्घायु का संदेश लेकर आए।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like