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कीर्तन दिवस पर अष्टदिवसीय अष्टाक्षरी अखंड कीर्तन संपन्न  

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08 Oct 25
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कीर्तन दिवस पर अष्टदिवसीय अष्टाक्षरी अखंड कीर्तन संपन्न  

उदयपुर:  आनंद मार्ग प्रचारक संघ, उदयपुर डायोसिस यूनिट के टेकरी-मादरी रोड स्थित जागृति परिसर में  दिनांक 1 अक्टूबर 2025 को 55वें कीर्तन दिवस के उपलक्ष्य में प्रारम्भ हुए अष्टदिवसीय एक प्रहरीय अष्टाक्षरी अखंड कीर्तन का समापन बुधवार दिनांक 8 अक्टूबर 2025 को सांयकाल छह बजे हुआ. 'बाबा नाम केवलम' अष्टाक्षरी सिद्ध महामंत्र के अविरत गान के साथ यह कीर्तन, एक प्रहर अर्थात तीन घंटे की अवधि के लिए दिनांक 1 अक्टूबर से 8 अक्टूबर 2025 अर्थात कीर्तन दिवस तक निरंतर चला.
भुक्ति प्रधान डॉ. एस. के. वर्मा ने बताया की अष्टाक्षरी सिद्ध महामंत्र 'बाबा नाम केवलम', आनंद मार्ग के प्रवर्तक श्री श्री आनंदमूर्ति जी द्वारा सर्वप्रथम 8 अक्टूबर 1970 को अमझरिया, जिला लातेहार, राज्य झारखण्ड में दिया गया था. इस संस्था के लगभग 180 देशों के अनुयायियों की दैनिक जीवनचर्या में कीर्तन एक अभिन्न अंग है. कीर्तन के विभिन्न प्रकार होते हैं जैसे अखंड कीर्तन, आवर्त कीर्तन,कथा कीर्तन तथा नगर कीर्तन. ज्ञातव्य हो की उदयपुर जागृति में अनवरत रूप से चल रहे साप्ताहिक एक प्रहरी कीर्तन की शृंखला में यह 555 वां अखंड कीर्तन है. उदयपुर जागृति के लिए यह एक गौरव की बात है की इस प्रकार का साप्ताहिक तथा अष्टदिवसीय एक प्रहरी अखंड कीर्तन विश्व की अन्य किसी जागृति में अभी तक नहीं हुआ है. इसके साथ ही बुधवार को कीर्तन दिवस के अवसर पर जागृति के आस-पास स्थित आवासीय कॉलोनियों में प्रातः पांचजन्य के पश्चात प्रभात फेरी का आयोजन भी किया गया.       
डायोसिस सचिव आचार्य रणदेवानन्द अवधूत ने कहा की कीर्तन करने से मानव मात्र का ही नहीं वरन चर-अचर, जीव-जंतु इत्यादि सभी का सर्वात्मक कल्याण होता है. यदि पूरे मनोयोग से ललित-मार्मिक मुद्रा में कीर्तन का गायन किया जाय तो कीर्तन की सिद्धि संभव है और उस अवस्था में भक्तगण ओंकार ध्वनि का श्रवण भी कर सकते हैं.  इस अवसर पर प्रयागराज से पधारे अधिवक्ता पारिजात मिश्र ने भी कीर्तन की महिमा और विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला.
कीर्तन के अंतिम दिवस पर मेवाड़ी समाज के सभी भक्तगणों के अतिरिक्त समाज के अन्य लोगों ने भी अनवरत कीर्तन से उत्पन्न धनात्मक मायक्रोवायटा से परिपूर्ण सकारात्मक परिवेश का आंनद उठाया. तत्पश्चात सभी साधकों ने मिलित ईश्वर प्रणिधान, वर्णाध्यान, और स्वाध्याय किया. इसके साथ ही सभी ने कीर्तन के भक्ति प्रवाह को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया. 


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