उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि परमात्मा भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक है। सिर्फ 23वें का ही इतना प्रभाव क्यों है? परमात्मा के प्रति लगाव होता तो इस मोक्ष कल्याणक में अपना कुछ योगदान दे पाते। भगवान के 5-5 कल्याणक 500-500 कल्याणक के उजमणे भगवान ने किए। इसीलिए इनका इतना प्रभाव है। जब कल्याणक होता है तब हर श्रावक का मन आनंदित हो जाता है। जिस दिन आपका मन खुश हो तब मान लेना कि ऊपर लोक में किसी न किसी भगवान का कल्याणक मनाया जा रहा है। मोक्ष यानी सर्वश्रेष्ठ कल्याणक माना जाता है। पतमात्मा आखिर तीर्थंकर क्यों हुए? मैं स्वयं सत्य, दया, करुणा को जानूं और सबको उस मार्ग पर ले जाऊं, ऐसा भाव परमात्मा का रहा इसीलिए वे तीर्थंकर हुए।
उन्होंने कहा कि परमात्मा स्वयं मुक्त हुए और उन्होंने सब जीवों को भी संयम का पथ दिया। तीर्थंकर मात्र 24 हुए। कुक्षी में आने से पूर्व माता को स्वप्न में सर्प आता तहस। एक दिन वो मणि देकर चला गया। पार्श्व में दिखता था। परमात्मा का जन्म हुआ। धीरे धीरे बड़े हुए। घोर तपस्या कर रहा है। सूर्य का ऊपर से ताप। परमात्मा भी जिज्ञासा वश वहां पहुंचे। अहिंसा के नाम पर हिंसा हो रही है। दस भवों का वैर यानी राग-द्वेष साथ चलते हैं। परमात्मा ने अंतस में जाकर देखा तो लगा कि ये झूठा है। सिर्फ बाहर से दिखावा कर रहा है। लोगों को वश में करने के लिए तप कर रहा है।
साध्वीश्री जी ने कहा कि तपस्वी को लगा कि ये बालक कौन है जो मुझे झूठा, ढोंगी कह रहा है। 30 वर्ष की उम्र में पार्श्वनाथ प्रभु ने दीक्षा ली। शंखेश्वर पार्श्वनाथ की महिमा अपरंपार है।
आज दादावाड़ी में विराजित साध्वी श्री विरल प्रभा श्रीजी मा सा एवम् साध्वी श्री कृतार्थ प्रभा श्रीजी म.सा. की निश्रा में भगवान पार्श्वनाथ के मोक्ष कल्याणक दिवस को मनाया गया। मारवाड़ से आये महावीर भाई ने ऊवसघ्गहरम के पाठ से विशेष क्रिया को करा कर उपस्थित 500 श्रावक श्राविकाओं को कैसे आदिव्याधि से छुटकारा पाया जा सकता है,विधि पूर्वक बताया।