उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी कृतार्थ प्रभा श्रीजी ने कहा कि परमात्मा की वाणी सिर्फ कानों से सुनना ही नही है उसे अपने जीवन में, हृदय में उतारना भी है। जिसने उतार लिया वो श्रावक है। अगर सुनी और दूसरे कान से निकल गई वो काम नही करेगी। प्रतिदिन एक सामायिक करने को परमात्मा ने कहा उसका मतलब उसकी समता अपने दिल में रहे। श्रोता हो या श्रावक ये आपको तय करना है। श्रावक वो जिसने सुना और सामायिक का संकल्प किया।
उन्होंने कहा कि श्रोता के लिए कान की जरूरत और और श्रावक के लिए हृदय की जरूरत है। कान खराब होने की दवाई डाली तो कान ठीक हुआ लेकिन जब वो अंदर गई, शरीर के खून में शामिल हुई तब ठीक हुआ न। उसी तरह परमात्मा की देशना को सिर्फ सुनना नहीं अंदर तक उतारना है। परमात्मा की वाणी से शास्त्र बने फिर बुक्स बनीं और उसमें से भी हैं थोड़ा सुनाते हैं।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि दिल बड़ा रखो। दिमाग खुला रखो। वाणी प्रिय रखो। भूलना सीखो और नज़रिया अपना अपना सबका होता है। जो छोटी बातें जीवन में बड़ा रूप धारण कर लेती है तब महाभारत होती है। अंधे का बेटा अंधा ही हो सकता है। यह बात कहने का तरीका और इसी से महाभारत हो गई। ऐसी छोटी छोटी बातों को भूलना सीखो। सबका नज़रिया अपना अपना होता है। कोई आपको अच्छा कहे तो कोई खराब भी कहेगा। उसके नज़रिए से आपकी इमेज बन गई। पिताजी ने घर में दो बेटों को कुछ कहा। एक नए सोचा कि बड़े हैं, मेरे अच्छे के लिए कह रहे हैं। एक सोचता है कि मैं बड़ा हूं। मुझे ऐसे कैसे कह सकते हैं। सम्यकत्व का हमेशा ध्यान रखना चाहिए। सम्यकत्व का अर्थ परमात्मा की देशना का सच्चे अर्थों में पालन करना।