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बली और शम्भू के माध्यम से बदलते रिश्तों, पारिवारिक टूटन को किया उजागर

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28 Apr 25
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बली और शम्भू के माध्यम से बदलते रिश्तों, पारिवारिक टूटन को किया उजागर


उदयपुर,  मौलिक संस्थान और सुखाड़िया विश्वविद्यालय के यूजीसी महिला केंद्र के तत्वाधान में मानव क़ौल के लिखे नाटक "बली और शम्भू" का मंचन विद्याभवन ऑडिटोरियम में किया गया। हाउस ऑफ़ थिंग्स से सहयोग प्राप्त इस नाटक का निर्देशन जतिन भरवानी ने किया।
वृद्धाश्रम में रहने वाले दो वृद्ध पुरुष की कहानी के माध्यम से परिवारों में टूटन और रिश्तों में बदलाव में बदलाव को दर्शाया गया। बली और शम्भू उम्र के उस दौर की कहानी है जब शरीर थक चुका होता है लेकिन मन अब भी दौड़ता है। जहाँ अकेलापन, अपमान और स्मृतियाँ मिलकर जीवन की एक नई व्याख्या करते हैं। नाटक में मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक टूटन, समाज में बदलते रिश्तों, पश्चाताप और माफ़ी जैसे मुद्दों को भावनात्मक गहराई और हास्य के मिश्रण से प्रस्तुत किया गया। नाटक के मंचन ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि जीवन के अंत में हमें सबसे ज़्यादा जिन चीज़ की ज़रूरत होती है वे हैं स्वीकार, स्नेह और संवाद।
मुख्य किरदार में सुधांशु आढ़ा और जयेश सिंधी ने अपने उम्दा अभिनय से बली और शम्भू को जीवंत कर दिया। गुनिशा मकोल, हिमांशी चौबीसा, पायल मेनारिया, शोना मलहोत्रा, झिलमिल, प्रियांशु सिंह राव, प्रवर खंडेलवाल, प्रियांशी जयसिंघानी, यशस्वी श्रीवास्तव, सौम्य जोशी, मिली गोयल ने अपनी-अपनी भूमिकाओं में जान डाल दी। निदेशक जतिन भा


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